भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने उच्चतम न्यायालय में आवेदन दाखिल कर उधार लेने वालों की धोखाधड़ी के वर्गीकरण पर शीर्ष न्यायालय के फैसले को साफ करने का अनुरोध किया है। स्टेट बैंक कर्जदारों के साथ पूरी फोरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट साझा करने से छूट चाहता है। इस आवेदन पर अगले सप्ताह सुनवाई हो सकती है।
उच्चतम न्यायालय ने 27 मार्च, 2023 को एक फैसले में बैंकों के लिए अनिवार्य कर दिया था कि कर्जदारों के खाते को धोखाधड़ी वाला खाता घोषित करने के पहले व्यक्तिगत रूप से उनका पक्ष सुने जाने का मौका दिया जाए।
एसबीआई ने कहा है कि फैसले को पढ़ने पर इसके अलग अलग अर्थ निकाले जाने की संभावना है। इसके आधार पर कर्जदारों की ओर से मुकदमा किए जाने की आशंका है। बैंक ने तर्क दिया है कि उनकी चूक की वजह से बैंकों की वित्तीय स्थिति प्रभावित हो सकती है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा। भारत के मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली के पीठ ने 10 दिसंबर, 2020 के तेलंगाना उच्च न्यायालय के खंडपीठ के फैसले को बरकरार रखा था। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की अपील पर शीर्ष न्यायालय का यह फैसला आया था।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 2016 में एक मास्टर सर्कुलर जारी किया था, जिसमें बैंकों को जानबूझकर चूक करने वालों के खातों को बगैर सुनवाई किए धोखाधड़ी वाले खाते के रूप में वर्गीकृत करने का अधिकार दिया था। स्टेट बैंक ने शीर्ष न्यायालय से यह साफ करने का अनुरोध किया है कि यह फैसला भावी परिचालन में प्रभावी बनाया जाना चाहिए और इसका असर पहले के फैसलों पर नहीं होगा। देश के सबसे बड़े बैंक ने 13 अप्रैल को दायर अपनी याचिका में कहा है कि आवेदक 27 मार्च, 2023 के फैसले की समीक्षा करने की मांग नहीं कर रहे हैं। आवेदन में यह स्पष्ट करने अनुरोध किया गया है कि बैंक मामले की आवश्यकता के मुताबिक फैसले की समय सीमा के बारे में फैसला कर सकते हैं।
शीर्ष न्यायालय से यह भी साफ करने का अनुरोध किया गया है कि फोरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट का संबंधित अंश मुहैया कराकर 27 मार्च, 2023 के फैसले का पालन किया जा सकता है। बैंक का मानना है कि अगर पूरी फोरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट चूक करने वाले को सौंप दी जाती है तो यह कानून प्रवर्तन एजेंसियों की जांच को प्रभावित करेगा क्योंकि इससे गोपनीय या अहम सूचनाओं का खुलासा हो जाएगा। अगर उधारी लेने वाले के खिलाफ पूरी सामग्री सार्वजनिक कर दी जाती है तो इससे उधारी लेने वाले को जांच में देरी करने, साक्ष्यों को नष्ट करने और देश से भाग जाने का मौका मिल जाएगा। मौजूदा अपील के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए माननीय न्यायालय उपयुक्त व उचित लगने वाला आदेश आगे पारित कर सकता है।