बैंकों ने इस साल की शुरुआत में अपने प्राइम लेंडिंग रेट (पीएलआर) में कटौती की थी लेकिन अब वही बैंक बढ़ती महंगाई के मद्देनजर यह कटौती वापस लेने की सोच रही हैं।
जनवरी में वित्त मंत्री पी चिदंबरम की सलाह पर कई बैंकों ने अपने पीएलआर में कटौती की थी, हालांकि तब छोटे सरकारी बैंकों और निजी बैंकों ने कोई कटौती नहीं की थी। स्टेट बैंक के चेयरमैन ओपी भट्ट के मुताबिक बैंकों को पीएलआर की कटौती वापस लेनी पड़ सकती है क्योकि अगर वो बाजार के साथ नहीं चले तो उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है।
उनके मुताबिक फिलहाल मॉनेटरी पॉलिसी का इंतजार कर रहे हैं और अभी इस पर कोई फैसला नहीं लिया गया है। स्टेट बैंक ने अपना बेंचमार्क पीएलआर दो बार में आधा फीसदी घटा कर 12.25 फीसदी करक दिया था। एक अनुमान के मुताबिक इस कटौती से बैंक के मुनाफे पर करीब 100 करोड़ का असर पड़ सकता है।
हालांकि भट्ट ने इस कटौती पर कहा कि भारत का सबसे बड़ा बैंक होने के नाते स्टेट बैंक की कुछ सामाजिक जिम्मेदारियां भी हैं। उन्होने कहा, केवल लाभ कमाना हमारा उद्देश्य नहीं हो सकता। लेकिन हमें अपने फैसलों को बढ़ती महंगाई जैसे चीजों के मद्देनजर बदलना भी होगा। बैंक ने इस बात का भी ख्याल रखा है कि कर्ज की लागत कम रहे और कर्ज की दरों में इजाफा न हो। पंजाब नेशनल बैंक के चेयरमैन और एमडी केसी चक्रबर्ती के मुताबिक दरें और बढ़ेंगी हीं, केवल समय की बात है, हम बस संकेत मिलने का इंतजार कर रहे हैं।
पिछले महीने ही पीएनबी ने अपने बीपीएलआर में आधा फीसदी की कटौती कर इसे 12.5 फीसदी कर दिया था। बैंक ऑफ इंडिया ने भी इसमें आधा फीसदी की कमी की थी, उसका कहना है कि सभी संकेत यही कह रहे हैं कि दरें बढ़ेंगीं लेकिन इस पर अंतिम फैसला 29 अप्रैल को रिजर्व बैंक की मॉनिटरी पॉलिसी के ऐलान के बाद ही लिया जाएगा।
बैंक ऑफ इंडिया के ईडी के कामत के मुताबिक बैंक पहले इस पॉलिसी के असर का आकलन करेगा जैसे सीआरआर में इजाफे का पी ऐंड एल एकाउंट पर असर और उसके बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा। हालांकि उन्होने इस बात का कोई जिक्र नहीं किया कि दरें कितनी बढ़ सकती हैं। आईडीबीआई के चेयरमैन और एमडी योगेश अग्रवाल का भी यही मानना था कि बढ़ती महंगाई दर को देखते हुए बैंकों को दरों में की गई कटौती की फिर से समीक्षा करनी होगी।