देश में इलेक्ट्रिक मोटरसाइकलों (ई-बाइक) को बढ़ने में मुश्किल हो रही है। इसकी वजह है जटिल अनुसंधान और विकास (आरऐंडडी) जिससे लागत बढ़ जाती है। इसके अलावा भारतीय बाजार जैसी कीमत वाली ई-बाइक दुनिया में कहीं नहीं है। इसलिए बाइक बनाने के लिए आरऐंडडी शून्य से शुरू करनी पड़ती है। शक्ति, गति और रेंज के संबंध में उपभोक्ताओं की उम्मीदों को पूरा करने में तकनीक की दिक्कतें हैं। पुराने ब्रांड इस श्रेणी में पहल करने के बजाय तेजी से अनुसरण करने का विकल्प चुन रहे हैं। नीति आयोग के विश्लेषण में यह जानकारी मिली है।
देश के दोपहिया बाजार में मोटरसाइकलों की लगभग दो-तिहाई हिस्सेदारी है। इसके बावजूद इलेक्ट्रिक मोटरसाइकलों की पैठ न के बराबर है। कुल बिक्री में ई-बाइक का योगदान मुश्किल से 0.1 प्रतिशत है। इसके उलट दोपहिया बाजार में लगभग एक-तिहाई हिस्सेदारी करने वाले स्कूटर ने इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) में लगभग 15 प्रतिशत की पैठ बना ली है।
मोटरसाइकलों के इलेक्ट्रिफिकेशन में कई चुनौतियां होती हैं। पहली चुनौती उपभोक्ताओं की उम्मीद होती है। देश में मोटरसाइकलों को ज्यादा शक्ति, ज्यादा रफ्तार और राइडिंग की लंबी रेंज से जोड़ा जाता है तथा इलेक्ट्रिक मोटरसाइकल की मौजूदा तकनीक इतनी सक्षम नहीं है कि एक साथ इन सभी खूबियों को तेल-गैस इंजन वाले मॉडल के बराबर कीमत पर उपलब्ध करा सके।
नीति आयोग के दस्तावेज में यह बात कही गई है, जिसे कुछ महीने पहले तैयार किया गया था और हाल में बिजनेस स्टैंडर्ड ने इसकी समीक्षा की थी। इस दस्तावेज में कहा गया है कि तकनीकी और आर्थिक दिक्कतों के कारण यह बदलाव और जटिल हो जाता है।
इसमें कहा गया है, ‘मोटरसाइकलों के मामले में आरऐंडडी कहीं ज्यादा जटिल होती है। किसी तेल-गैस इंजन वाले वाहन की तरह ज्यादा शक्ति और रेंज दोनों उपलब्ध कराने के लिए बैटरियां बड़ी होनी चाहिए तथा ज्यादा जगह होनी चाहिए, जो मोटरसाइकल की चैसिस में दिक्कत की बात होती है।’
इससे वाहनों की कीमतें बढ़ जाती हैं। बढ़ी कीमतें किसी ऐसे बाजार में बड़ी बाधा होती हैं, जहां मोटरसाइकलों की लगभग 65 प्रतिशत बिक्री 110 सीसी से छोटी श्रेणी में है। खरीदार भी कीमतों के प्रति बहुत संवेदनशील हैं।
नीति आयोग ने इस बात पर जोर दिया कि इलेक्ट्रिक मोटरसाइकल विकास में अंतरराष्ट्रीय बाजार से सीखने का फायदा नहीं मिल रहा है। इलेक्ट्रिक स्कूटर (ई-स्कूटर) के उलट, जिन्हें चीन में मौजूदा मॉडल और आपूर्ति श्रृंखला से फायदा मिला है, इलेक्ट्रिक मोटरसाइकलों के मामले में तुलना करने वाला कोई वैश्विक संदर्भ पारिस्थितिकी तंत्र नहीं है, जिससे विनिर्माताओं को शुरू से ही बड़े स्तर पर आरऐंडडी क्षमताओं का निर्माण करना पड़ता है।
नीति आयोग ने कहा कि इसके अलावा मोटरसाइकलों के पुराने ब्रांड इलेक्ट्रिक मोटरसाइकल श्रेणी में ‘पहले करने वालों’ के बजाय ‘तेजी से अनुसरण करने’ का विकल्प चुन रहे हैं। ई-स्कूटर श्रेणी में भी इसी तरह का तरीका अपनाया गया था, जहां पुराने ब्रांडों ने स्टार्टअप कंपनियों को शुरुआती जोखिम उठाने दिया और स्वयं बाजार में आने से पहले उनकी गलतियों से सीख ली।
नीति आयोग ने कहा, ‘इसलिए पुराने ब्रांडों की दमदार मौजूदगी, वितरण नेटवर्क और आफ्टर-सेल सर्विस को देखते हुए इलेक्ट्रिक मोटरसाइकल स्टार्टअप कंपनियों के लिए यह लड़ाई मुश्किल है।’ फिलहाल भारत के ई-दोपहिया बाजार में इलेक्ट्रिक मोटरसाइकलों की मौजूदगी काफी कम है और ईवी का ज्यादातर इस्तेमाल स्कूटर पर ही केंद्रित है।