वित्तीय सेवाओं विभाग के सचिव एम. नागराजू ने गुरुवार को कहा कि भारत को 2047 तक विकसित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ते हुए बढ़ती उधारी और समावेशन जरूरतों को पूरा करने के लिए अधिक बैंकों की जरूरत होगी।
उन्होंने एसबीआई कॉन्क्लेव में बताया कि तेजी से डिजिटलीकरण होने के बावजूद बैंकों की सेवाओं की मांग महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ जाएगी। उन्होंने कहा, ‘वर्ष 2047 तक 32.9 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था की कल्पना कीजिए। सोचिए कि हमें कितने बैंकरों और संस्थानों की जरूरत होगी। हालांकि ज्यादातर लेन-देन डिजिटल होंगे। फिर भी हमें नए बैंकों की ज़रूरत होगी जो विभिन्न उद्योगों, क्षेत्रों और जनसंख्या वर्गों की जरूरतों को पूरा कर सकें।’
उन्होंने कहा कि भारत बैंकिंग पारिस्थितिकी तंत्र का विस्तार करने के लिए कई तरीके अपना सकता है। इसके तहत कुछ गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) और लघु वित्त बैंकों को यूनिवर्सल बैंकों में बदलना हो सकता है। उन्होंने कहा कि केवल डिजिटल बैंक भी वंचित बाजारों तक पहुंचने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं और वह भी खासकर तब जब एसबीआई जैसे बड़े ऋणदाता ऑनलाइन माध्यम से संपूर्ण सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।
हालांकि उन्होंने चेताया कि डिजिटल लेनदेन का अनिवार्य रूप से सावधानीपूर्वक प्रबंधन हो ताकि सेवा गुणवत्ता सुनिश्चित रहे और ग्राहकों के विश्वास से भी समझौता नहीं हो।
उन्होंने कहा कि कृषि, लघु, सूक्ष्म व मध्यम उद्यमों (MSME) और शिक्षा को अधिक धन मुहैया करवाया जाए ताकि समावेशी विकास हो। उन्होंने कहा, ‘कॉलेज में दाखिला लेने वाला छात्र को भी शिक्षा के लिए धन मिलना चाहिए। इससे हम एक आकांक्षी और उच्च मानदंडों वाले समाज की स्थापना कर सकते हैं।’ उन्होंने कहा कि इन क्षेत्रों में सतत ऋण वृद्धि अधिक परिवारों को मध्यम वर्ग में लाने के लिए महत्त्वपूर्ण है। सार्वजनिक क्षेत्र के कई बैंकों का प्रदर्शन महत्त्वपूर्ण रूप से सुधर गया है। कई ऋणदाताओं के लाभप्रदता के मानक वैश्विक मानदंडों के अनुकूल हैं।