राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के चेयरमैन शाजी केवी ने नई दिल्ली में रविवार को कहा कि वित्त वर्ष 2024-25 में कृषि ऋण वृद्धि दर 13 प्रतिशत से अधिक रहेगी और कृषि ऋण 27 से 28 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर जाएगा।
नाबार्ड के चेयरमैन ने कहा, ‘पिछले एक दशक से ज्यादा समय से कृषि ऋण लगातार औसतन 13 प्रतिशत बढ़ा है। हमारा अनुमान है कि वित्त वर्ष 2025 में कृषि ऋण बढ़कर 27 से 28 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा। यह अन्य सेक्टरों में हुई ऋण वृद्धि की तुलना में ज्यादा है। इसके साथ ही यह वृद्धि एक व्यापक दृष्टिकोण दिखाती है और इससे साफ होता है कि कृषि क्षेत्र की अनौपचारिक ऋण के स्रोतों पर निर्भरता काफी कम हुई है। इस बदलाव से संकेत मिलते हैं कि ग्रामीण इलाकों में ऋण औपचारिक हुआ है और इससे ग्रामीण इलाकों में रह रहे लोगों को लाभ मिल रहा है। औपचारिक स्रोतों से ऋण लेने पर लोगों को फायदा होता है क्योंकि साहूकारों का कर्ज महंगा पड़ता है।’
सरकार अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) और ग्रामीण सहकारी बैंकों के लिए कृषि क्षेत्र में जमीनी स्तर पर ऋण (जीएलसी) का सालाना लक्ष्य तय करती है। वित्त वर्ष 2024 में 25.1 लाख करोड़ रुपये (अनंतिम) दिए गए थे और यह 20 लाख करोड़ रुपये लक्ष्य से 25 प्रतिशत अधिक था।
ऋण में वृद्धि का उल्लेख करते हुए नाबार्ड के चेयरमैन ने कहा कि किसानों को ऋण संबंधी रिकॉर्ड देने होंगे और इसके लिए पूरा अपने ग्राहक को जाने (केवाईसी) प्रक्रिया उनकी कृषि गतिविधियों से जुड़ी होती है। बहरहाल कुछ इलाकों में भूमि रिकॉर्ड न होने से व्यवधान बना हुआ है।
उन्होंने कहा, ‘इससे निपटने के लिए सरकार एग्री स्टॉक पहल के माध्यम से भूमि रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण कर रही है। इस पहल में नाबार्ड साझेदार है, क्योंकि कृषि राज्यों के प्रशासनिक क्षेत्र में आता है। भारत सरकार ने एग्री स्टाक के लिए एक ढांचा मुहैया कराया है, जिसमें 3 प्रमुख लेयर, फॉर्म लेयर (भूमि रिकॉर्ड), फॉर्मर लेयर (केवाईसी) और क्रॉप लेयर शामिल है। इन लेयर्स के आंकड़े एग्री स्टाक में शामिल किए जाएंगे, हालांकि आंकड़ों के संग्रह में राज्यों का अलग परिपक्वता स्तर होता है।’ शाजी केवी ने कहा कि इंटरनेट कनेक्टिविटी में सुधार के कारण डिजिटल अर्थव्यवस्था बढ़ रही है। ऐसे में यह जरूरी है कि बदलाव के इस दौर में इन ग्रामीण वित्तीय संस्थानों का एकीकरण किया जाए।
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