आर्थिक संभावनाओं के परिदृश्य में हो रहे बदलाव को देखते हुए भारतीय बैंकों ने कंपनियों और सेक्टरों के रिस्क प्रोफाइल की समीक्षा करनी शुरू कर दी है।
बैंकों ने पिछले महीने ही यह काम शुरू कर दिया था लेकिन उनका कहना है कि रिस्क प्रोफाइल की समीक्षा करना एक सामान्य प्रक्रिया है। बैंकों अब भी यही कह रहे हैं कि उनके लोन 20 फीसदी से ज्यादा की दर से बढ़ रहे हैं हालांकि यह बात वो खुद भी इससे पूरी तरह से सहमत नहीं दिख रहे हैं।
स्टेट बैंक की एक एसोसिएट बैंक के एमडी के मुताबिक मांग में कमी आने के चलते कारोबारी प्रोजेक्शंस हो सकता है पूरे न हों, और नतीजतन उस कर्जे से जुड़ा जोखिम भी बढ़ सकता है। इस वजह से हमे एहतियाती कदम उठाने ही होंगे। लेकिन बैंकों के लिए परेशानी का सबब महज इतना ही नही है बल्कि उन्हें उद्योगों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों से भी कर्ज के भुगतान संबंधी मामलों के निपटारे में खासी जद्दोजहद करनी पड़ रही है।
बैंकों की असल परीक्षा की घड़ी तो अब आने वाली है कि 71,000 करोड़ रुपये के कर्ज माफी के बाद ग्रामीण इलाकों में कर्ज के भुगतान को लेकर क्या मानसिकता बनती है। उधर प्राइवेट बैंकों ने डेलीक्वेंसी दरों में बढ़ोत्तरी के कारण रिटेल लेंडिंग में कमी करने का फैसला किया है। बढ़ती ब्याज दरों और गिरते मांग के चलते नए प्रोजेक्टों का आना दूभर लग रहा है तब एसबीआई के एक वरिष्ठ एक्जीक्यूटिव का कहना है कि बैंक इस वक्त 300 बड़ी कंपनियों और अन्य मझौले आकार के औद्योगिक प्रतिष्ठानों की समीक्षा कर रहा है।
हालांकि बैंक इस मसले को लेकर देर से ज्यादा सतर्क हुआ है। लेकिन इस साल ज्यादा सतर्क होने के पीछे दो वजहें हैं , रिजर्व बैंक का विवेकपूर्ण यानि प्रूडेंशियल मानदंड और कैपिटल एडीक्वेसी की समीक्षा। इसके अलावा बढ़ती लागत कीमत और मंदी का डर वजह रहे हैं जिनके चलते बैंकों को इस कदम की ओर रूख करना पड़ा है।