12 नवंबर को खत्म हो रहे संवत में 10 वर्षीय सरकारी बॉन्ड का प्रतिफल 21 आधार अंक कम होकर बंद हुआ जबकि रुपया 0.79 फीसदी नरमी के साथ बंद हुआ। सोमवार से नया संवत शुरू होगा।
बाजार के भागीदारों ने कहा कि बीमा कंपनियों और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की ओर से जबरदस्त मांग के मद्देनजर सरकारी बॉन्ड का प्रतिफल पूरे साल कमोबेश स्थिर रहा है। पूरे साल बेंचमार्क 10 वर्षीय सरकारी बॉन्ड 6.96 से 7.51 फीसदी के दायरे में कारोबार करता रहा।
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति द्वारा दर में कटौती की उम्मीद में बॉन्ड प्रतिफल में गिरावट आई थी। मौद्रिक नीति समिति ने मई 2022 से फरवरी 2023 के बीच लगातार 6 बार दरों में इजाफा किया था, उसके बाद दर वृद्धि पर रोक लगाई थी। इस दौरान रीपो दर में कुल 250 आधार अंक की बढ़ोतरी की गई थी।
इस बीच उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति मार्च में नरम होकर 5.66 फीसदी पर आ गई थी, जो दिसंबर 2021 के बाद सबसे कम थी। मई में यह कम होकर 4.25 फीसदी रह गई थी।
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हालांकि मुद्रास्फीति के दबाव को देखते हुए दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों द्वारा दरों में बढ़ोतरी किए जाने से घरेलू बाजार में भी बॉन्ड प्रतिफल बढ़ने लगा। कुल मिलाकर घरेलू बाजार में बॉन्ड प्रतिफल में अमेरिका में बॉन्ड यील्ड की तुलना में कम उतार-चढ़ाव दिखा।
पीएनबी गिल्ट्स के वरिष्ठ कार्यकारी उपाध्यक्ष विजय शर्मा ने कहा, ‘बॉन्ड बाजार ट्रेडर की तुलना में निवेशक आधारित होने की वजह से बॉन्ड प्रतिफल में कम उतार-चढ़ाव रहा। निवेशक के तौर पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और बीमा कंपनियां बॉन्ड की बड़ी खरीदार रहीं।’
बीते चार साल में पहली बार विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भी 2023 में भारत के ऋण बाजार में शुद्ध खरीदार रहे। इससे पहले 2019 में उन्होंने बॉन्ड में 25,882 करोड़ रुपये का निवेश किया था। जेपी मॉर्गन के इमर्जिंग मार्केट बॉन्ड सूचकांक में घरेलू सरकारी बॉन्डों के शामिल होने से वैश्विक चुनौतियों के बीच घरेलू बाजार बॉन्ड बाजार में प्रवाह बढ़ेगा।
इस बीच अमेरिका में बॉन्ड यील्ड में तेजी और डॉलर के मजबूत होने से भारतीय मुद्रा रुपये पर भी दबाव देखा गया। संवत 2070 के अंतिम दिन डॉलर के मुकाबले रुपया 83.48 के सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुआ।
विनिमय दर में भारी उठापटक को काबू में करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक पूरे साल विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में सक्रिय दिखा। बाजार के भागीदारों का कहना है कि केंद्रीय बैंक द्वारा समय पर हस्तक्षेप करने से स्थानीय मुद्रा में डॉलर के मुकाबले ज्यादा गिरावट नहीं आई।
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कोटक सिक्योरिटीज में करेंसी डेरिवेटिव एवं ब्याज दर डेरिवेटिव के उपाध्यक्ष अनिंद्यय बनर्जी ने कहा, ‘इस संवत डॉलर-रुपये में उतार-चढ़ाव 2022 के बाद सबसे कम रहा।’ हालांकि उन्होंने कहा कि अगर रिजर्व बैंक का सहारा नहीं मिलता तो रुपया डॉलर के मुकाबले 84 के स्तर को छू सकता था।
2023 की पहली छमाही में भारतीय मुद्रा काफी हद तक स्थिर बनी रही। विदेशी निवेशकों के प्रवाह से इस साल पहले छह महीने में रुपये में 0.16 फीसदी की मजबूती भी आई थी। अगस्त में युआन में नरमी के कारण रुपया भी थोड़ा कमजोर दिखा।
अक्टूबर की शुरुआत में पश्चिम एशिया में युद्ध और कच्चे तेल की कीमतों में तेजी से विदेशी निवेशक अपना निवेश निकालने लगे जिससे रुपये में नरमी आई। चालू वित्त वर्ष में डॉलर के मुकाबले रुपया 1.4 फीसदी नरम हो चुका है जबकि पूरे साल में अभी तक इसमें 0.7 फीसदी की नरमी आई है।