अति धनाढ्य लोगों और परिवार कार्यालयों के बढ़ते रुझान के कारण वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ) के लिए कुल निवेश प्रतिबद्धता जून 2025 तक बढ़कर 14.2 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गई। इसमें सालाना आधार पर 20 फीसदी और तिमाही आधार पर 5 फीसदी की वृद्धि हुई है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के आंकड़ों के अनुसार जुटाई गई कुल धनराशि भी 6 लाख करोड़ रुपये के करीब पहुंच गई जबकि कुल निवेश 5.72 लाख करोड़ रुपये रहा।
एआईएफ उच्च निवेश वाले विशिष्ट वर्ग की जरूरतों को पूरा करने वाले सामूहिक निवेश का एक माध्यम हैं। हाल में बाजार नियामक ने कुछ योजनाओं के निवेशकों के एक्रिडिशन पर जोर दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार प्रारंभिक चरण के स्टार्टअप, गैर-सूचीबद्ध परिसंपत्तियों और जटिल कारोबारी रणनीतियों में निवेश को विविधता देने की क्षमता के कारण एआईएफ लोकप्रिय हुए हैं।
निजी इक्विटी, ऋण, अन्य गैर-सूचीबद्ध परिसंपत्तियों पर ध्यान केंद्रित करने वाली कैटिगरी-2 एआईएफ ने 10.78 लाख करोड़ रुपये की उच्चतम प्रतिबद्धताओं के साथ इस क्षेत्र में अपना दबदबा कायम रखा। हालांकि कैटिगरी-3 एआईएफ की ओर भी झुकाव बढ़ रहा है जिसमें हेज फंड शामिल हैं।
उद्योग संघ आईवीसीए की रिपोर्ट के अनुसार चालू वित्त वर्ष में कुल पेशकश में कैटिगरी-3 एआईएफ का हिस्सा 47 फीसदी रहा। निवेश के संदर्भ में रियल एस्टेट का कुल निवेश में करीब 12.5 फीसदी हिस्सा है जो अन्य सभी क्षेत्रों की तुलना में सबसे अधिक है। इसके बाद वित्तीय सेवाएं, आईटी, एनबीएफसी और बैंक आते हैं।
पिछले महीने, आरबीआई ने बैंकों और एनबीएफसी जैसी अपनी नियमन वाली संस्थाओं के एआईएफ में निवेश मानदंडों को आसान बनाने की घोषणा की थी। इसके तहत योजनाओं में संचयी निवेश की सीमा 20 फीसदी तथा योजना के कोष में एकल संस्था के निवेश की सीमा 10 फीसदी तय की गई थी।
उद्योग जगत के लोगों का मानना है कि इस कदम से अधिक निवेश को बढ़ावा मिलेगा क्योंकि इससे पहले के निर्देशों के कारण ऋणों की निरंतरता की चिंताओं के बीच निवेश में कटौती की गई थी। इसके अतिरिक्त आरबीआई ने एआईएफ में आरई के डाउनस्ट्रीम निवेश के हिस्से के रूप में इक्विटी इंस्ट्रूमेंट को प्रावधानों के दायरे से बाहर रखा है।