कांग्रेस ने तीन राज्यों में निराशाजनक प्रदर्शन किया मगर देश के सबसे युवा प्रदेश ‘चारमीनार’ की नगरी तेलंगाना में देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए आशा की एक नई किरण दिखी। इस दक्षिणी राज्य में सत्ता पर काबिज होने के लिए 60 सीटों की दरकार रहती है और कांग्रेस यहां 64 सीटों पर जीतकर सत्तारूढ़ पार्टी बनने की ओर अग्रसर है। कांग्रेस की जीत का एक बड़ा कारण हैदराबाद के बाहर की ग्रामीण सीटें हैं।
साल 2014 में राज्य के गठन के बाद यह पहला मौका है जब के चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के अलावा कोई अन्य पार्टी सत्तासीन हो रही है। हालांकि, राजनीति के जानकारों को लगता है कि तेलंगाना कांग्रेस प्रमुख रेवंत रेड्डी और विधायक दल के नेता मल्लू भट्टी के बीच सत्ता का संघर्ष हो सकता है।
स्थानीय मीडिया का कहना है कि पार्टी के संकटमोचक के रूप में पड़ोसी राज्य कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार पूरी तरह मुस्तैद हैं और नए विधायकों को एकजुट कर रहे हैं। हालिया रिपोर्ट बताती हैं कि कांग्रेस का वोट प्रतिशत साल 2018 के विधानसभा चुनाव के 28 फीसदी से बढ़कर 39 फीसदी हो गया है।
इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का वोट प्रतिशत 7 फीसदी से दोगुना होकर 14 फीसदी हो गया है। साथ ही पिछली बार एक सीट पर सिमटने वाली पार्टी के इस बार 8 सीटों पर विधायक हो गए हैं।
वहीं दूसरी ओर सबसे ज्यादा नुकसान बीआरएस को हुआ है। बीआरएस का वोट प्रतिशत पिछले विधानसभा चुनाव के 47 फीसदी से कम होकर 38 फीसदी रह गया है और पार्टी को 49 सीटों का नुकसान भी हुआ है। पिछली बार सत्ता में रही बीआरएस ने 88 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जो इस बार 39 सीटों पर सिमट गई।
असद्दुदीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) का वोट प्रतिशत 3 फीसदी से 2 फीसदी हो गया मगर पार्टी अपनी सभी सातों सीट बचाने में कामयाब रही है।
बीआरएस नेता केटी रामाराव ने कहा, ‘आज के नतीजों से दुखी नहीं हूं, लेकिन निराश हूं।’ हालांकि, सत्ता का संघर्ष जारी है मगर कांग्रेस को जिससे फायदा मिला वह हैदराबाद और उसके आसपास के इलाकों को छोड़कर तेलंगाना के ग्रामीण इलाकों से मिले वोट का रहा। इस ग्रामीण-शहरी विभाजन को ऐसे देखा जाना चाहिए कि प्रदेश के राजस्व में हैदराबाद का करीब 45 फीसदी योगदान रहता है। हैदराबाद की 15 सीटों में एक सीट पर कांग्रेस आगे चल रही है।
केसीआर को बड़ा झटका देते हुए कामारेड्डी विधानसभा सीट से कटिपल्ली वेंकट रमण रेड्डी चुनाव जीत गए। राज्य के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रामकृष्ण संगम कहते हैं, ‘इस चुनाव की सबसे बड़ी कहानी यही रही कि भाजपा ने अपना वोट प्रतिशत दोगुना कर 14 फीसदी कर लिया। मुझे लगता है कि रेवंत रेड्डी मुख्यमंत्री बन जाएंगे क्योंकि उनके पास पहले से ही अधिकांश विधायकों का समर्थन हो सकता है और दलितों भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए पार्टी विक्रमार्क को प्रदेश सरकार में उपमुख्यमंत्री बना सकती है।’
उस्मानिया विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख आर चंद्रू ने कहा कि परिवार को प्राथमिकता देना और भ्रष्टाचार का आरोप एक पार्टी के रूप में बीआरएस के खिलाफ चला गया। केसीआर के परिवार के कई लोग राजनीति में हैं। इनमें उनके बेटे केटी रामा राव पार्टी अध्यक्ष हैं, बेटी के कविता तेलंगाना विधान परिषद की सदस्य हैं, केसीआर के भानजे टी हरीश राव प्रदेश सरकार के वित्त और स्वास्थ्य मंत्री है और केसीआर की पत्नी शोभा की बहन के बेटे जोगिनपल्ली संतोष कुमार भी राज्यसभा सदस्य हैं।
चंद्रू ने कहा, ‘केसीआर कैडर से नहीं मिल रहे हैं। दिलचस्प बात है कि ग्रामीण इलाकों में वह विकास नहीं पहुंच रहा था जो हैदराबाद में देखने को मिल रहा था।’