प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को आरोप लगाया कि द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) ने तमिलनाडु के मुछुआरों के हितों की रक्षा के लिए कोई कदम नहीं उठाया। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक अखबार में छपी खबर का लिंक भी शेयर किया, जिसमें कहा गया कि कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को सौंपने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने द्रमुक नेतृत्व को विश्वास में लिया था।
एक्स पर प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस और द्रमुक को ‘परिवार यूनिट’ बताया जो केवल अपने बेटे-बेटियों की परवाह करते हैं। उन्होंने कहा कि कच्चातिवु पर दोनों दलों की लापरवाही का खमियाजा गरीब मछुआरों को भुगतना पड़ा है। प्रधानमंत्री ने इसी मुद्दे पर एक दिन पहले कांग्रेस पर तगड़ा हमला बोला था। मालूम हो कि कांग्रेस और द्रमुक दोनों ही इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं और तमिलनाडु में मिलकर सरकार चला रहे हैं।
दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्रियों एम. करुणानिधि और जे. जयललिता के बीच हमेशा विवाद की जड़ रहा कच्चातिवु द्वीप का भावनात्मक मुद्दा लोक सभा चुनाव से ऐन पहले एक बार फिर गरमा गया है। इस द्वीप को भारत सरकार ने 1974 में श्रीलंका को सौंप दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस तथा उसके सहयोगी दल द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) को आड़े हाथों लिया जो समझौते के वक्त सत्ता में थे।
इसके बाद तमिलनाडु में लोक सभा चुनाव के लिए 19 अप्रैल को होने वाले मतदान से कुछ दिनों पहले यह मुद्दा अब केंद्र में आ गया। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सोमवार को दावा किया कि कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों ने कच्चातिवु द्वीप को लेकर उदासीनता दिखाई और भारतीय मछुआरों के अधिकार छीन लिए।
फिलहाल लड़ाई केवल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस-द्रमुक गठबंधन के बीच ही प्रतीत होती है। भाजपा इस द्वीप को श्रीलंका को सौंपने के लिए कांग्रेस तथा द्रमुक को जिम्मेदार ठहरा रही है।
इस बीच, वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी को कच्चातिवु के बजाय भारतीय क्षेत्र पर ‘चीनी कब्जे’ पर बोलना चाहिए। चिदंबरम ने कहा कि अच्छे संबंध बनाए रखने और लाखों तमिलों की जान बचाने के लिए यह द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया गया था।
उल्लेखनीय है कि तमिल मछुआरों की लगातार गिरफ्तारी और उत्पीड़न के साथ कच्चातिवु वापस लेने का मुद्दा द्रविड़ राजनीति के दिग्गजों के बीच गहन बहस का विषय रहा है।
जयललिता ने एक बार मछुआरों की परेशानियों को समाप्त करने के लिए द्वीप को पुनः प्राप्त करने का संकल्प लिया था और उनकी पार्टी ने हमेशा इसे रोकने के वास्ते कुछ नहीं करने के लिए द्रविड मुनेत्र कषगम (द्रमुक) को दोषी ठहराया है, हालांकि वर्ष 1974 में सत्ता की बागडोर उसी के पास थी।
करुणानिधि ने कहा था कि उन्होंने कभी भी द्वीप को सौंपे जाने को स्वीकार नहीं किया और न ही वह इसके लिए सहमत हुए। उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए अपना विरोध जताया था। द्रमुक ने हमेशा कहा है कि कच्चातिवु को सौंपे जाने के विरोध में उसने राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन किया था।
वास्तव में सत्तारूढ़ द्रमुक और अन्नाद्रमुक, दोनों ने कच्चातिवु को फिर से प्राप्त करने का समर्थन किया है। कच्चातिवु को वापस लेने का मुद्दा प्रमुख द्रविड़ दलों के बीच तीखी बहस का विषय रहा है। केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार के दौरान 1974 और 1976 में श्रीलंका को द्वीप को देने के लिए समझौते किए गए।
वर्ष 1971 के चुनाव में द्रमुक ने गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था। जयललिता ने अपनी निजी हैसियत से इस द्वीप को वापस पाने के लिए 2008 में उच्चतम न्यायालय का रुख किया था।