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और भी हैं अभी तरकश में तीर!

Last Updated- December 08, 2022 | 1:02 AM IST

वित्तीय संकट से निपटने के लिए सरकार और वित्तीय संस्थाओं के अधिकारी विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रहे हैं।


इसके तहत ईसीबी नियमों में ढील देने के साथ-साथ विदेशी संस्थागत निवेशकों सहित प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करना है। इन कदमों के जरिए सरकार का मकसद कंपनियों के लिए वाह्य स्रोतों से धन प्राप्ति को आसान बनाने के साथ ही कॉरपोरेट सिक्यूरिटीज में विदेशी निवेश की अड़चनों को दूर करना है।

इसके तहत सरकार विदेशी संस्थागत निवेशकों को क्वालिफाइड विदेशी निवेशकों से मुक्त करने का विचार कर रही है। अब तक विदेशी निवेशकों को तमाम तरह की अड़चनों का सामना करना पड़ता था, उन्हें परमिट लेना होता है, जिसे सरल बनाने की कवायद चल रही है।

सरकार व्यक्तिगत विदेशी निवेशकों को इस बात की अनुमति देने पर विचार कर रही है कि वह भारतीय डिपॉजिटरी में डी-मैट अकाउंट खोल कर शेयर बाजार में निवेश कर सकें। इससे यह फायदा होगा कि विदेशी निवेशक विदेश में कहीं भी बैठ कर भारतीय शेयर बाजार में कारोबार कर सकते हैं। उसके बाद रिजर्व बैंक जब भी चाहे, भारतीय बैंक में मौजूद इनके अकाउंट से लेन-देन के बारे में पता लगा सकता है।

सरकार भारतीय कंपनियों को बाहरी स्रोतों से कर्ज की व्यवस्था आसान बनाने के लिए वाह्य वाणिज्यिक उधारी नियम (ईसीबी) में ढील देने के लिए समीक्षा कर  रही है। ऋण मुहैया कराने वाले वित्तीय संस्थाओं को भी विदेशों से पूंजी जुटाने की अनुमति देने की योजना है।

हालांकि इसके लिए नियमों में बदलाव लाना होगा, क्योंकि वित्तीय संस्थाएं कर्ज देने के लिए विदेशों से पैसा उधार नहीं ले सकती हैं। सरकार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति की व्यापक समीक्षा कर रही है। जिन क्षेत्रों में विदेशी निवेश की अनुमति देने की बात चल रही है, उनमें विमानन सेवा, प्रसारण, सेवा क्षेत्र, बीमा और प्रिंट मीडिया शामिल है।

First Published - October 22, 2008 | 12:22 AM IST

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