वित्त मंत्रालय ने रविवार को स्पष्ट किया कि देश से बाहर जाने के मामले में कर भुगतान प्रमाणपत्र सिर्फ गंभीर वित्तीय अनियमितता करने वालों और भारी कर बकाया रखने वाले भारतीयों के लिए ही अनिवार्य है।
यह स्पष्टीकरण नए कानून के कारण असमंजस और सोशल मीडिया पर फूट पड़े भारी रोष के बीच आया है। दरअसल, काला धन अधिनियम के तहत देश से बाहर जाने वाले भारतीयों के लिए कर भुगतान प्रमाणपत्र प्राप्त करना अनिवार्य किया गया है। वित्त अधिनियम 2024 में काला धन अधिनियम को उन अधिनियमों की सूची में शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है, जिसके तहत निवासी अपनी बकाया कर देनदारियों का भुगतान कर सकते हैं।
वित्त मंत्रालय ने कहा कि कर भुगतान प्रमाणपत्र केवल उन भारतीयों के लिए अनिवार्य है जो गंभीर वित्तीय अनियमितताओं में शामिल हैं या जिनके ऊपर10 लाख रुपये से अधिक की कर देनदारियां हैं, बशर्ते इन भुगतान पर किसी प्राधिकरण ने रोक नहीं लगाई हो। यह कानून 1 अक्टूबर से लागू होगा। इसका ध्येय अघोषित विदेशी संपत्तियों के संबंध में कर चोरी रोकना है।
मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति को कर निकासी प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए केवल कारण दर्ज करने तथा प्रधान मुख्य आयकर आयुक्त या मुख्य आयकर आयुक्त से अनुमोदन प्राप्त करने के बाद ही कहा जा सकता है। मंत्रालय ने आयकर विभाग की 2004 की अधिसूचना का हवाला देकर कहा, ‘प्रस्तावित संशोधन (आयकर अधिनियम की धारा 230) के तहत सभी निवासियों को कर भुगतान प्रमाणपत्र लेने की आवश्यकता नहीं है।’
मंत्रालय ने इस बात को दोहराया कि कर भुगतान प्रमाणपत्र भारत के निवासियों के लिए ‘केवल चुनिंदा स्थितियों में’ आवश्यक है। यह भी स्पष्ट किया गया कि आयकर अधिकारी ऐसे प्रमाणपत्र जारी करते हैं। इसमें यह जानकारी दी जाती है कि उक्त व्यक्ति की आयकर अधिनियम, या संपदा कर अधिनियम 1957, या उपहार कर अधिनियम 1958 या व्यय कर अधिनियम 1987 के तहत कोई देनदारी नहीं है।
कर प्रमाणपत्र यह प्रमाणित करेगा कि व्यक्ति विशेष की कर देनदारियां नहीं है या उसने देश छोड़ने से पहले ऐसे बकाया का निपटान करने के लिए समुचित इंतजाम कर दिए हैं।