सरकार का लक्ष्य अगले पांच वर्षों में प्रमुख सरकारी बंदरगाहों के लिए 50,000 करोड़ रुपये की लागत वाली सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) की परियोजनाएं विकसित करने पर है। इससे बंदरगाहों पर भीड़ कम होगी और वे बेहतर ढंग से तैयार भी होंगे। इन मसलों के कारण ही भारत में लॉजिस्टिक्स की लागत अधिक रहती है।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया, ‘बंदरगाहों के आधुनिकीकरण के लिए अगले पांच वर्षों में 25,000 करोड़ रुपये की 40 से अधिक परियोजनाओं को पूरा करने की योजना है। इसके अलावा राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की मदद के लिए कांडला, तूतीकोरिन और पाराद्वीप में तीन हाइड्रोजन हब विकसित करने की योजना है। अगले तीन वर्षों में पीपीपी पहल के तहत निर्माण शुरू होने की उम्मीद है।’ केंद्र अपनी प्रमुख परियोजनाओं जैसे वधावन बंदरगाह को भी साकार करने पर कार्य करेगा।
केंद्र का दावा है कि यह बंदरगाह बन जाने के बाद विश्व के शीर्ष 10 बंदरगाहों में होगा और यह भारत में प्रवेश का बंदरगाह (गेटवे पोर्ट) बनकर अर्थव्यवस्था की बढ़ती जरूरतों को पूरा करेगा। मौजूदा जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह अपनी पूर्ण क्षमता को शीघ्र हासिल कर लेगा और अब इसके विस्तार की सीमित संभावनाएं हैं।
अधिकारी ने बताया कि ग्रेट निकोबार ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल बनने के ऐलान के बाद से ही यह पर्यावरण संबंधित दिक्कतों का सामना कर रहा है। भारत को ट्रांसशिपमेंट हब बनाने के लिए इस पर भी काम किया जाएगा।
इस मामले के जानकार दूसरे अधिकारी ने बताया, ‘50,000 करोड़ रुपये की पीपीपी परियोजनाओं में भूमि का मुद्रीकरण भी शामिल होगा। हम बंदरगाह की जमीन के वाणिज्यिक इस्तेमाल के लिए निजी पक्षों के साथ कार्य की संभावना देख रहे हैं।’ केंद्र सरकार ने भूमि संसाधनों से अधिक राजस्व सृजित करने के लिए इस पहल को बढ़ावा दिया है। सरकार प्रमुख बंदरगाहों से सटे जलीय क्षेत्र और भूमि के इस्तेमाल की नीति पर भी कार्य कर रही है। सरकार राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) के दूसरे संस्करण पर भी कार्य कर रही है और इसका पहला चरण इस वित्त वर्ष में समाप्त हो चुका है।