केंद्रीय वित्त मंत्रालय के वित्त विभाग (DoE) ने भारी उद्योग मंत्रालय (MHI) की ₹7,350 करोड़ की PLI योजना पर सवाल उठाए हैं। यह योजना देश में दुर्लभ पृथ्वी स्थायी चुंबक (REPM) का घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए बनाई गई है। वित्त विभाग ने कहा कि योजना से चीन से चुंबक आयात पर निर्भरता कम हो सकती है, लेकिन इसके कारण भारत को दूसरे देशों से दुर्लभ पृथ्वी ऑक्साइड पर निर्भर होना पड़ सकता है।
वित्त विभाग ने चेतावनी दी है कि इतनी बड़ी सब्सिडी मिलने से कंपनियों को कुशल बनने या लागत कम करने की प्रेरणा कम हो सकती है। अगर पूरा लागत अंतर सब्सिडी से कवर किया गया, तो निजी कंपनियों को लागत घटाने या नवाचार करने का दबाव नहीं रहेगा।
DoE ने यह भी सवाल उठाया कि अगर हर बार ऑटोमोबाइल कंपोनेंट में संकट आने पर अलग PLI योजना बनाई जाएगी, तो यह एक नजीर बन जाएगी। साथ ही, विभाग ने पूछा कि REPM निर्माण के लिए अलग योजना क्यों बनाई जा रही है, इसे नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन (NCMM) के तहत क्यों नहीं लाया गया।
PLI योजना के तहत 5 प्लांट बनाए जाएंगे, जिनकी कुल क्षमता 6,000 टन REPM प्रति वर्ष होगी। इसके लिए लगभग 1,500 टन दुर्लभ पृथ्वी ऑक्साइड की जरूरत होगी। भारत में केवल Indian Rare Earths Ltd (IREL) ऑक्साइड उपलब्ध कराती है और वह अधिकतम 500 टन ही दे सकती है। बाकी की कमी अन्य देशों से पूरी करनी होगी।
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वित्त विभाग ने कहा कि बड़ी घरेलू बाजार उपलब्धता कंपनियों को इनोवेशन करने का दबाव कम कर सकती है। इससे कंपनियां सिर्फ सब्सिडी पर निर्भर रह सकती हैं और उत्पादन में सुधार या लागत कम करने की जरूरत नहीं होगी।
दुनिया भर में उद्योग REPM के विकल्प तलाश रहा है। कुछ शोध के अनुसार, 2035 तक इलेक्ट्रिक वाहनों का लगभग 30% हिस्सा REPM-रहित मोटरों की ओर जा सकता है। यूरोपीय कंपनियां नई तकनीकें जैसे आयरन नाइट्राइड मैग्नेट और स्ट्रॉन्शियम-फेराइट मिश्रधातु विकसित कर रही हैं, जो पारंपरिक REPM के समान शक्ति प्रदान कर सकती हैं।
वित्त विभाग ने MHI से योजना की लॉन्टगर्म रणनीति और भारत में REPM पर निर्भरता को कम करने की स्पष्टता देने को कहा है।