घरेलू आर्थिक वृद्धि की संभावनाएं आशाजनक बनी हुई हैं और मुद्रास्फीति में नरमी के बीच घरेलू वित्तीय बचत वित्त वर्ष 2024 में सकल शुद्ध आय का 5.1 फीसदी रही जो इससे पिछले वित्त वर्ष में कई वर्षों के निचले स्तर पर आ गई थी। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने वित्त वर्ष 2025 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी। रिपोर्ट में कहा गया है कि हाल के महीनों में खुदरा मुद्रास्फीति में नरमी आई है जिससे आरबीआई को भरोसा है कि 12 महीनों के दौरान मुद्रास्फीति उसके 4 फीसदी के दायरे में ही रहेगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सकल घरेलू बचत सकल राष्ट्रीय डिस्पोजेबल आय (जीएनडीआई) के 30.3 फीसदी पर स्थिर रही, जिसका मुख्य कारण सरकार के सामान्य बचत में गिरावट है। सकल राष्ट्रीय डिस्पोजेबल आय का मतलब वह आय है जो देश के निवासियों के पास सही मायने में खर्च करने या बचाने के लिए उपलब्ध है। इसके अलावा परिवारों की देनदारियां जीएनडीआई के 6.1 फीसदी तक बढ़ने के बावजूद घरेलू सकल वित्तीय बचत वित्त वर्ष 2024 में बढ़कर 11.2 फीसदी हो गई, जो इससे पिछले वित्त वर्ष में 10.7 फीसदी थी। इससे शुद्ध आधार पर घरेलू वित्तीय बचत वित्त वर्ष 2024 में जीएनडीआई के 5.1 फीसदी पर पहुंच गई जो इससे पिछले वित्त वर्ष में 4.9 फीसदी थी।
रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2024 में बचत और निवेश के बीच अंतर कम हुआ है, जो सरकार द्वारा कम खर्च, परिवारों और गैर-वित्तीय कंपनियों द्वारा निवेश मांग में नरमी का संकेत देता है।
अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2025 में शुद्ध वित्तीय बचत में और सुधार होगा। भारतीय स्टेट बैंक के समूह मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने कहा, ‘घरेलू क्षेत्र की शुद्ध वित्तीय बचत वित्त वर्ष 2024 में सुधरकर जीएनडीआई का 5.1 फीसदी हो गई। मौजूदा रुझान को देखते हुए हमारा अनुमान है कि वित्त वर्ष 2025 में शुद्ध वित्तीय बचत 22 लाख करोड़ रुपये या जीएनडीआई का 6.5 फीसदी हो सकता है।’
मजबूत आर्थिक परिदृश्य के बावजूद आरबीआई ने उभरते वैश्विक आर्थिक हालात के प्रति आगाह भी किया है। आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2026 में बाजार की नजर अमेरिकी व्यापार नीतियों और अन्य देशों द्वारा जवाबी कार्रवाई के प्रभाव पर रहेगी। नीतियों में अनिश्चितता के कारण वैश्विक वित्तीय बाजारों में भी उठापटक देखी जा सकती है।
केंद्रीय बैंक ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा, ‘मुद्रास्फीति में नरमी के संकेत और मध्यम वृद्धि दर के कारण मौद्रिक नीति को वृद्धि को बढ़ावा देने वाला होना चाहिए। इसके साथ ही तेजी से उभरती वैश्विक आर्थिक स्थितियों के प्रति भी सतर्क रहना चाहिए।’
रिपोर्ट के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था 2025-26 के दौरान सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बनी रहेगी। आपूर्ति श्रृंखला पर दबाव कम होने, जिसों के दाम घटने और मॉनसून के सामान्य से बेहतर रहने का अनुमान मुद्रास्फीति के लिहाज से भी अच्छा संकेत है। भारत का सेवा व्यापार संतुलन और बाहर से धनप्रेषण प्राप्तियों के मजबूत परिदृश्य से चालू खाता घाटा 2025-26 के दौरान टिकाऊ सीमा के भीतर बना रह सकता है।