महाराष्ट्र में रायगढ़ के किसानों ने हाल में उस जनमत संग्रह में मतदान किया जिसमें यह बताया जाना था कि वे अपनी भूमि पर विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) चाहते हैं या नहीं। रिलायंस इंडस्ट्रीज ने इस जनमत संग्रह को निरर्थक करार दिया। वाणिज्य मंत्रालय ने कहा है कि यदि राज्य सरकार की ओर से भूमि का जबरन अधिग्रहण किया जाता है तो वह एसईजेड के लिए मंजूरी नहीं देगा।
केरल सरकार ने एक एसईजेड नीति बनाने का फैसला किया था, लेकिन वह इस नीति के कार्यान्वयन को लेकर विफल रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने उस याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया जिसमें एसईजेड के लिए राज्य सरकारों को भूमि अधिग्रहण करने से रोकने का अनुरोध किया गया था। समाजवादी पार्टी ने एसईजेड नीति को निरस्त करने की मांग की है। दूसरी ओर बोर्ड ऑफ एप्रूवल्स 27 और एसईजेड को मंजूरी दे चुका है। यह एसईजेड नीति लचर बुनियादी ढांचे, उच्च ब्याज दर, इंस्पेक्टर राज, कराधान की विविधता, कठोर श्रम कानून आदि को लेकर भारतीय व्यवसायियों की शिकायतों की एक प्रतिक्रिया है। सरकार द्वारा चलाए जाने वाले मुक्त व्यापार क्षेत्र अपेक्षित परिणाम देने में विफल रहे हैं। नीति में बदलाव को लेकर 1998 में बहस की गई और निजी क्षेत्र की ओर से एसईजेड के विकास के अनुकूल बनाए जाने के लिए मौजूदा कानूनों में संशोधन किया गया था। फिर भी बहुत कम एसईजेड अस्तित्व में आए।
इस बीच चीन अपने तटीय एसईजेड में बड़ा निवेश आकर्षित कर रहा था। भारत निवेश और निर्यात–केंद्रित रणनीति के जरिये बड़े रोजगार सृजन के मोर्चे पर पिछड़ रहा था। काफी विचार–विमर्श के बाद एसईजेड एक्ट, 2005 और एसईजेड रूल्स, 2005 अस्तित्व में आए।
नए नियामक कार्य ढांचे के तहत बार–बार नीति में बदलाव के खिलाफ कई सुरक्षा उपाय अपनाए गए और इससे निजी क्षेत्र का ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ। चीन के विपरीत सरकार बुनियादी सुविधाओं के निर्माण से दूर रही और एसईजेड डेवलपरों को प्रोत्साहन दिया गया जिससे रियल एस्टेट और भवन निर्माताओं को बढ़ावा मिला। नीति में औद्योगिक घरानों के एसईजेड को अनुमति दी गई जिससे बुनियादी सुविधाओं का निर्माण नहीं हुआ। नीति में विभिन्न क्षेत्रों के लिए अलग–अलग भूमि जरूरतों की अनुमति दी गई और एक भेदभावपूर्ण कर व्यवस्था बनाई गई जिससे एसईजेड, खासकर सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में घरेलू इकाइयों के पलायन को बढ़ावा मिलेगा। निवेश को आकर्षित करने के लिए राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा से नेताओं और व्यवसायियों के बीच सह–अपराध के आरोपों और सार्वजनिक हित के बहाने कृषि भूमि के जबरन अधिग्रहण के आरोपों को बढ़ावा मिला है। अप्रैल 2007 में केंद्र सरकार ने औद्योगिक उद्देश्यों और विस्थापित लोगों के पुनर्वास के लिए भूमि अधिग्रहण के संबंध में दिशा–निर्देश तय किए थे। फिर भी विवाद जारी है।
भूमि अधिग्रहण सिर्फ एसइजेड–केंद्रित मुद्दा नहीं है जिसका पता पश्चिम बंगाल में नैनो के सिंगुर संयंत्र से चल जाता है। भूमि के अधिग्रहण का मुद्दा उद्योग–केंद्रित मुद्दा भी नहीं है, क्योंकि आवासीय उद्देश्यों के लिए भी भूमि का अधिग्रहण किया जाता रहा है।
जो अब नई दिल्ली है वह कुछ दशक पहले बेहद उपजाऊ
भूमि थी।
कहने का मतलब है कि किसी भी नीति के सकारात्मक और नकारात्मक पहलू हो सकते हैं। इस पर सख्त बहस होनी चाहिए। एक बार जब इस पर बहस और चर्चा हो जाएगी, अनिश्चितता का अंत हो जाएगा। गोवा सरकार ने एसईजेड में बड़े निवेश की अनुमति दी और फिर इसके खिलाफ हो गई। व्यवसायों के लिए भी विकल्प हैं। व्यवसायी उन इलाकों की तरफ रुख करेंगे जहां कानूनी ढांचे की अधिक निश्चितता हो और अच्छा कारोबारी माहौल हो।