मारुति सुजूकी के चेयरमैन आर सी भार्गव ने कहा है कि प्रति एक हजार की आबादी पर कारों की संख्या (इनकी पैठ का मापक) हर साल 3 से 5 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है, और भारत को इस संदर्भ में चीन की बराबरी करने में करीब 40 साल लगेंगे।
संयंत्रों के बंद होने तथा महामारी के दौरान बिक्री प्रभावित होने से की वजह से पिछले पांच साल में कारों की औसत पैठ 1,000 आबादी पर महज एक तक बढ़ी। खासकर छोटी कारों की खरीदारी पर ऊंचे कर और नियामकीय अनुपालन की बढ़ती लागत का प्रभाव पड़ा है। भार्गव का मानना है कि मौजूदा समय में, भारत में कारों का स्वामित्व अनुपात प्रति 1,000 आबादी पर 30 कार है, जबकि चीन में यह आंकड़ा प्रति 1,000 आबादी पर 221 कार है।
उन्होंने कहा, ‘इस गणना के आधार पर हमें चीन की बराबरी करने में करीब 40 साल लग जाएंगे। इससे स्पष्ट पता चलता है कि भारतीय कार बाजार उतनी तेजी से नहीं बढ़ रहा है, जितनी गति इसे बढ़ना चाहिए।’ उन्होंने कहा, ‘इस सदी 2000-2010 के पहले दशक में, यात्री कार बाजार करीब 10-12 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ा। उसके बाद 12 वर्षों में, औसत वृद्धि महज 3-4 प्रतिशत रही।’
भार्गव ने कहा कि जर्मनी जैसे अन्य विकसित देशों के विपरीत, भारत कारों को लगातार लक्जरी के तौर पर मानता रहा है। जर्मनी जैसे देश वाहन उद्योग में अपनी निर्माण क्षमता के लिए जाने जाते हैं।
उन्होंने कहा, ‘सरकारी नीतियां ऐसी हैं जिनकी वजह से कारों को लक्जरी समझा जाता है, जिससे ज्यादा कर लगाने की जरूरत होगी।’ उन्होंने कहा, ‘जापान में कारों पर कर 10 प्रतिशत, यूरोप में 19 प्रतिशत है। जीएसटी के अलावा, भारत में स्पोर्ट्स यूटिलिटी वाहनों पर उपकर, राज्य कर, और एकमुश्त पथकर कुल मिलाकर 40 से 60 प्रतिशत के बीच है। इस पर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है।’
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मौजूदा समय में, चारपहिया पर 28 प्रतिशत जीएसटी लागू है और वाहन की श्रेणी के आधार पर 1 से 22 प्रतिशत के बीच अतिरिक्त कर लगते हैं। आयातित कारों पर उनके इंजन आकार और कीमत, बीमा आदि के आधार पर 60 प्रतिशत और 100 प्रतिशत के बीच शुल्क लगते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि खासकर छोटी और सस्ती कारों पर नियामकीय अनुपालन (बीएस-6 मानकों के क्रियान्वयन) की लागत भी बढ़ी है। जहां इस तरह की लागत दोनों आकार की कारों के लिए समान हो चुकी है, वहीं लागत के प्रतिशत के तौर पर छोटी कार पर इसका प्रभाव ज्यादा पड़ता है।