Indian startup: साल की शुरुआत में देसी स्टार्टअप फर्मों का मूल्यांकन लगातार घट रहा था और तमाम निवेशक इन फर्मों में अपने निवेश की कीमत कम करते जा रहे थे। मगर पिछले महीने अमेरिकी निवेशक फिडेलिटी ने अपने निवेश वाली एक स्टार्टअप का मूल्यांकन बढ़ाया है। 31 अगस्त को फिडेलिटी ने जुलाई तक ई-कॉमर्स फर्म मीशो में अपने निवेश का अंकित मूल्य 14.3 फीसदी बढ़ाकर 4.32 करोड़ डॉलर कर दिया है। इससे मीशो का मूल्यांकन करीब 5.04 अरब डॉलर हो गया है।
इससे तीन दिन पहले अमेरिका की परिसंपत्ति प्रबंधन फर्म बैरन कैपिटल ने भी ऑनलाइन ऑर्डर पर खाने-पीने का सामान पहुंचाने वाले प्लेटफॉर्म स्विगी में अपनी हिस्सेदारी का मूल्य 31 मार्च की तुलना में 33.9 फीसदी बढ़ा दिया और कंपनी का मूल्यांकन 8.54 अरब डॉलर आंका। बैरन ने पाइनलैब्स में भी अपने निवेश का मूल्य 10 फीसदी बढ़ा दिया जिससे 30 जून को कंपनी का मूल्यांकन 4.93 अरब डॉलर रहा। ऐसा करने वाली वह पहली विदेशी कंपनी बनी।
पिछले कुछ समय में जेप्टो और परफियोस जैसी कंपनियों ने भारी-भरकम पूंजी जुटाई है, जिससे भारतीय स्टार्टअप में जोश बढ़ गया है। लेकिन सवाल है कि भारतीय स्टार्टअप के दिन क्या वाकई बहुरने लगे हैं?
शुरुआती दौर में निवेश करने वाली फर्म 100एक्स डॉट वीसी के संस्थापक एवं पार्टनर निनाद कार्पे ने कहा, ‘सकारात्मक वृहद आर्थिक कारकों के साथ ही स्टार्टअप के लिए उपलब्ध अवसरों को देखते हुए इन फर्मों के मूल्यांकन में इजाफा जारी रहने की उम्मीद है।’
उन्होंने कहा कि मूल्यांकन में सुधार से निवेशक अधिक भरोसे के साथ स्टार्टअप में पूंजी डाल सकेंगे। कार्पे ने कहा, ‘धन का प्रवाह बढ़ने से ज्यादा संख्या में स्टार्टअप को पूंजी मिलेगी और इसका सकारात्मक प्रभाव अन्य स्टार्टअप पर भी पड़ेगा।’ स्टार्टअप के मूल्यांकन में सुधार की वजह पूछें तो एकमात्र जवाब है – मुनाफा और आर्थिक स्थिति में सुधार।
फिनटेक पर केंद्रित वैश्विक वेंचर कैपिटल फर्म क्यूईडी इन्वेस्टर्स के एशिया प्रमुख और पार्टनर संदीप पाटिल ने कहा, ‘मुनाफा कमाने की क्षमता निवेशकों को स्टार्टअप के टिकाऊ होने का भरोसा दिला रहा है और व्यापक आर्थिक कारकों के साथ यह भी मूल्यांकन में सुधार की प्रमुख वजह है।’
मीशो इस साल जुलाई में मुनाफे में आने वाली पहली ई-कॉमर्स फर्म है। ऑर्डर में 43 फीसदी और आय में 54 फीसदी का इजाफा होने तथा खर्च में कटौती के उपाय करने से कंपनी को मुनाफे में आने में मदद मिली। हालांकि खर्च में कटौती करने वाली मीशो अकेली कंपनी नहीं है।
साल की शुरुआत से स्विगी ने भी खर्च कम करने के लिए छंटनी से लेकर कुछ कारोबार बंद करने जैसे उपाय किए हैं। कंपनी ने सभी उपयोगकर्ताओं से 2 रुपये प्लेटफॉर्म शुल्क भी वसूलना शुरू किया है। इससे कंपनी के फूड डिलिवरी कारोबार को मार्च तिमाही में मुनाफे में आने में मदद मिली। हर महीने प्रचार पर स्विगी का खर्च भी घटकर 2 करोड़ डॉलर रह गया, जो 2021 में 3.5 से 5 करोड़ डॉलर होता था।
इसी तरह पाइन लैब्स को भी वृद्धि का पूरा भरोसा है। कंपनी के सीईओ बी अमरीश राव ने मई में बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा था, ‘2022-23 में हमने अपने कारोबार से करीब 1,600 करोड़ रुपये की शुद्ध आय अर्जित की थी। मुझे नहीं लगता कि चालू वित्त वर्ष में भी वृद्धि की कोई समस्या आएगी।’ मीशो, पाइन लैब्स और स्विगी से इस बारे में जानकारी के लिए ईमेल भेजे गए लेकिन जवाब नहीं आया।
भारतीय कंपनियां मुनाफा कमाने की क्षमता पर जोर दे रही हैं, जिससे साफ है कि अब संस्थापकों की प्राथमिकताएं बदल रही हैं। पिछली कुछ तिमाहियों से निवेशक भी कहने लगे हैं कि संस्थापकों के साथ उनकी बातचीत मूल्यांकन के बजाय कारोबार की बुनियादी चीजों पर अधिक केंद्रित हो गई है।
शुरुआती चरण की निवेश फर्म मेरक वेंचर्स के पार्टनर मनु रिख्ये ने कहा, ‘हम कारोबार की बुनियादी चिंताओं- व्यापार रणनीति, ठोस कारोबारी मॉडल और वास्तविक लाभप्रदता पर अधिक जोर देख रहे हैं। यह कुछ समय की बात नहीं है बल्कि इससे ऐसे परिपक्व परिवेश का संकेत मिलता है जहां स्टार्टअप अल्पकालिक तेजी के बजाय दीर्घकालिक मूल्य पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।’
मुनाफे पर जोर तब है, जब स्टार्टअप को धन आसानी से नहीं मिल रहा। तमाम परिस्थितयों को ध्यान में रखते हुए निवेशकों का रुख पहले से सख्त हो गया है और उन्होंने जोखिम से बचने के लिए मुट्ठी भींच ली है।
साल 2021 में स्टार्टअप जगत को रिकॉर्ड 44.3 अरब डॉलर निवेश मिला था। उसके बाद वृहद आर्थिक अनिश्चितताओं के मद्देनजर निवेश काफी कम हो गया। ट्रैक्सन के आंकड़ों के अनुसार 2022 में निवेश करीब 39 फीसदी घटकर 27.1 अरब डॉलर रह गया। इसी तरह 2023की पहली छमाही के दौरान भारतीय स्टार्टअप ने महज 5.5 अरब डॉलर जुटाए, जो 2022 की पहली छमाही से 72 फीसदी कम रहा।
ऐसे में कई विदेशी निवेशकों ने अधिक खर्च करने वाली प्रमुख भारतीय स्टार्टअप कंपनियों का मूल्यांकन घटा दिया। इनमें स्विगी, ओला, फार्मईजी और पाइन लैब्स प्रमुख रहीं।