अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में लगी आग ने पिछले कुछ हफ्तों से देश में पेट्रोल की कीमतों को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें प्रति बैरल 135 डॉलर के करीब बनी हुई हैं और भारतीय तेल विपणन कंपनियों के लिए अब तेल का खेल भारी घाटे का सौदा हो गया है।
देसी बाजार में तेल कंपनियां अभी करीब 45 से 51 रुपये प्रति लीटर की दर पर पेट्रोल और करीब 30 से 36 रुपये प्रति लीटर की दर पर डीजल बेच रही हैं। ऐसे में उन्हें प्रति लीटर पेट्रोल की बिक्री पर 20 से 25 रुपये और डीजल पर प्रति लीटर 30 से 35 रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है।
भारत कुल तेल की खपत का 70 फीसदी आयात करता है और जून 2006 के बाद से अब तक बस एक बार इस साल फरवरी में तेल की कीमतें बढ़ाई गई हैं। ऐसे में तेल कंपनियों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है और हालत ऐसी है कि इनके पास लंबे समय तक तेल की खरीद के लिए पैसा भी नहीं बचा है।
सरकार अब तक पेट्रोल पदार्थों पर सब्सिडी देती आई है और यह तेल कंपनियों को बॉन्ड्स के तौर पर जारी किया जाता है ताकि आम लोगों को सस्ती दर पर ईंधन मिल सके। पर अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें इतनी अधिक बढ़ चुकी हैं कि सरकार कंपनियों का घाटा कम करने के लिए और अधिक बॉन्ड्स जारी करने की स्थिति में नहीं है।
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2007-08 के दौरान भारत ने 12.167 करोड़ टन कच्चे तेल का आयात किया है और सरकार ने ऑयल सब्सिडी के तौर पर 2007 में 8.7 अरब डॉलर चुकाए हैं जो जीडीपी का 0.7 फीसदी है। पर इस आंकड़े के यहीं सिमटने की गुंजाइश नहीं है।
अनुमान के मुताबिक इस वर्ष तेल पर सब्सिडी तीन गुना होकर 2.2 फीसदी पर पहुंच जाएगी। ऐसा माना जा रहा है कि 2008 में जब जीडीपी के बढ़कर 13.4 डॉलर खरब होने की उम्मीद है, प्रति बैरल 100 डॉलर की कीमत पर सब्सिडी 18.1 अरब डॉलर पर पहुंच जाएगी।
अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत को प्रति बैरल 115 डॉलर पर रखें तो सब्सिडी 23.4 अरब डॉलर और मौजूदा कीमत पर 29.2 अरब डॉलर हो जाएगी। ऐसे में सरकार के लिए बहुत लंबे समय तक इस दर पर सब्सिडी उठाना संभव नहीं लग रहा। वर्तमान समय में सरकार के अधिकार वाली तेल कंपनियों इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम को पेट्राल, डीजल, केरोसिन और घरेलू एलपीजी की बिक्री से 2,25,040 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है।
यहां यह समझना जरूरी है कि तेल कंपनियों को बिक्री से राजस्व में जितना नुकसान हो रहा है, सरकार सब्सिडी के तौर पर उसकी पूरी भरपाई नहीं करती है। इस नुकसान का 50 फीसदी भार सरकार तेल बॉन्ड्स जारी कर उठाती है। सरकार ने 2007-08 में आईओसी, बीपीसीएल और एचपीसीएल को 35,290 करोड़ रुपये के बॉन्ड्स जारी किए थे।
कीमतें बढने का असर
यूं तो तेल कंपनियां पेट्रोल की कीमतों में प्रति लीटर 10 रुपये और डीजल की कीमतों में प्रति लीटर 5 रुपये की बढ़ोतरी की मांग कर रही हैं, पर सरकार इतना अधिक बोझ आम लोगों के कंधों पर डालने के पक्ष में नहीं दिख रही।
अगर पेट्रोल और डीजल दोनों की कीमतों में प्रति लीटर एक रुपये की बढ़ोतरी की जाती है तो इस वित्त वर्ष के बचे हुए 10 महीनों में क्रमश: 1,036 करोड़ रुपये और 4,575 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होगा। वहीं एलपीजी के हर सिलेंडर पर 20 रुपये अधिक लेने से करीब 1,200 से 13,00 करोड़ रुपये सालाना का राजस्व प्राप्त होगा।