भारत और यूनाइटेड किंगडम (UK) के बीच आज ऐतिहासिक फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) पर हस्ताक्षर हो गए हैं। यह समझौता दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ाने और कई सामानों को सस्ता करने का रास्ता खोलेगा। खास तौर पर ब्रिटेन से आने वाली व्हिस्की, कारें और कई अन्य उत्पाद अब भारत में पहले से कम कीमत पर उपलब्ध होंगे। इस समझौते पर भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और उनके ब्रिटिश समकक्ष जोनाथन रेनॉल्ड्स ने हस्ताक्षर किए। यह डील प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ब्रिटेन यात्रा के दौरान लंदन में अंतिम रूप दी गई। इस समझौते का लक्ष्य 2030 तक दोनों देशों के बीच व्यापार को दोगुना करके 120 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचाना है। आइए जानते हैं कि इस डील से क्या-क्या बदलने वाला है और इसका आम लोगों की जेब पर क्या असर पड़ेगा।
भारत में स्कॉच व्हिस्की के शौकीनों के लिए यह समझौता अच्छी खबर लेकर आया है। अभी तक ब्रिटेन से आयात होने वाली स्कॉच व्हिस्की और जिन पर भारत में 150 प्रतिशत का भारी आयात शुल्क लगता था। इस समझौते के तहत यह शुल्क तुरंत घटकर 75 प्रतिशत हो जाएगा और अगले दस सालों में इसे धीरे-धीरे 40 प्रतिशत तक लाया जाएगा। इसका मतलब है कि ब्रिटेन की मशहूर स्कॉच व्हिस्की, जैसे जॉनी वॉकर, चिवास रीगल और ग्लेनफिडिक आदि अब भारत में पहले से काफी सस्ती मिलेंगी। स्कॉच व्हिस्की एसोसिएशन के CEO मार्क केंट ने इसे एक ऐतिहासिक कदम बताया है, क्योंकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा व्हिस्की बाजार है।
हालांकि, यह सस्ती शराब देसी शराब कंपनियों के लिए चुनौती बन सकती है। भारत में बिकने वाली शराब का करीब 97 प्रतिशत हिस्सा देसी ब्रांड्स का है, जबकि स्कॉच का हिस्सा सिर्फ 3 प्रतिशत है। सस्ती स्कॉच की उपलब्धता से ग्राहक विदेशी ब्रांड्स की ओर आकर्षित हो सकते हैं, जिससे भारतीय शराब कंपनियों की बिक्री पर असर पड़ सकता है। इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का कहना है कि सरकार को देसी कंपनियों को बचाने के लिए कुछ कदम उठाने होंगे। इसके अलावा, ब्रिटिश बीयर पर भी सीमित छूट दी जाएगी, लेकिन वाइन पर कोई खास रियायत नहीं मिलेगी।
इस समझौते से ऑटोमोबाइल सेक्टर में भी बड़ा बदलाव आएगा। ब्रिटेन से आयात होने वाली कारों पर अभी 100 प्रतिशत से अधिक का आयात शुल्क लगता है, जिसे अब कुछ चुनिंदा कारों के लिए 10 प्रतिशत तक घटाया जाएगा। इससे जगुआर, लैंड रोवर, रोल्स-रॉयस, और बेंटले जैसी लग्जरी कारें भारत में सस्ती हो सकती हैं। खासकर टाटा समूह की कंपनी जगुआर-लैंड रोवर को इस डील से बड़ा फायदा होने की उम्मीद है। हालांकि, यह छूट सीमित कोटे के तहत दी जाएगी, यानी सभी कारों पर एक जैसी रियायत नहीं मिलेगी।
इसके साथ ही, इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों के लिए भी नई संभावनाएं खुलेंगी। भारत की कंपनियां, जैसे टाटा मोटर्स और महिंद्रा, अब ब्रिटेन के इलेक्ट्रिक वाहन बाजार में आसानी से प्रवेश कर सकेंगी। इस डील से भारतीय निर्माताओं को वहां के बाजार में अपनी पैठ बनाने का मौका मिलेगा, जिससे रोजगार और निवेश के नए अवसर पैदा होंगे। लेकिन दूसरी ओर, ब्रिटेन से आने वाली कुछ हाई-एंड गाड़ियों और बाइकों की कीमतें बढ़ सकती हैं, क्योंकि इन पर छूट का दायरा सीमित रखा गया है।
यह समझौता सिर्फ शराब और कारों तक सीमित नहीं है। ब्रिटेन से आने वाले कई अन्य सामानों, जैसे कपड़े, जूते, गहने, चॉकलेट, बिस्किट, और मेडिकल डिवाइसेज पर भी आयात शुल्क कम होगा। भारत UK से आने वाले 90 प्रतिशत सामानों पर टैक्स में कटौती करेगा, जिससे ये चीजें भारतीय बाजार में सस्ती हो जाएंगी। उदाहरण के लिए, ब्रिटिश ब्रांड्स के फैशन आइटम्स, लेदर जैकेट, बैग, और जूते अब किफायती दामों पर मिल सकेंगे। साथ ही, कॉस्मेटिक्स और सैल्मन मछली जैसे उत्पाद भी पहले से सस्ते होंगे।
दूसरी ओर, भारत से UK जाने वाले 99 प्रतिशत उत्पादों पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। इससे भारतीय कपड़े, चमड़े के उत्पाद, टेक्सटाइल, और ज्वेलरी जैसे श्रम-प्रधान सामानों को ब्रिटिश बाजार में सस्ते दामों पर बेचा जा सकेगा। इससे भारतीय निर्यातकों को फायदा होगा और खासकर टेक्सटाइल, फुटवेयर, और जेम्स एंड ज्वेलरी सेक्टर में रोजगार के नए अवसर बनेंगे। हालांकि, कुछ सेक्टरों में चुनौतियां भी हैं। मेटल और स्टील जैसे उत्पादों की कीमतें बढ़ सकती हैं, क्योंकि भारत अब ब्रिटेन के हाई-क्वालिटी मेटल को अपने बाजार में जगह देगा, जिससे देसी उद्योगों पर दबाव बढ़ेगा।
इस समझौते में भारत ने अपने कृषि और डेयरी सेक्टर को सुरक्षित रखने की पूरी कोशिश की है। संवेदनशील कृषि उत्पादों, जैसे डेयरी, सेब, पनीर, जई, और वनस्पति तेल पर कोई खास छूट नहीं दी गई है। इसका मतलब है कि इन उत्पादों की कीमतों पर इस डील का कोई सीधा असर नहीं पड़ेगा। भारत ने यह सुनिश्चित किया है कि उसके किसानों और डेयरी उद्योग को नुकसान न हो। हालांकि, कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि लंबे समय में ब्रिटिश उत्पादों की बढ़ती मांग देसी बाजारों पर दबाव डाल सकती है।