सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने प्रस्तावित नए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) श्रृंखला में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से मुफ्त में वितरित खाद्य वस्तुओं को शामिल करने पर प्रतिक्रिया मांगी है। यह मंत्रालय का दूसरा चर्चा पत्र है। यह श्रृंखला अगले साल फरवरी में शुरू होने वाली है।
चर्चा पत्र में पीडीएस की कीमतों (कुछ राज्यों में मुफ्त या सब्सिडी वाली) को खुले बाजार मूल्यों के साथ मिलाकर विभिन्न खाद्य वस्तुओं के लिए एक कमोडिटी इंडेक्स बनाने का प्रस्ताव है। इसमें सुझाव दिया गया है कि पीडीएस खाद्य वस्तुओं के लिए एक अलग सूचकांक बनाना ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं होगा, क्योंकि उनकी कीमतें सरकार द्वारा विनियमित होती हैं और वे मूल्य में होने वाले वास्तविक परिवर्तनों को नहीं दिखा सकते हैं।
इस पद्धति पर अगस्त में तकनीकी सहायता मिशन के तहत अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के एक विशेषज्ञ के साथ चर्चा की गई थी।
चर्चा पत्र में कहा गया है, ‘आईएमएफ विशेषज्ञ का विचार था कि प्रस्तावित विधि पीडीएस के माध्यम से वितरित चावल, गेहूं और अन्य वस्तुओं के लिए मूल्य परिवर्तनों को कम नहीं करती है। यदि पीडीएस उत्पादों के लिए नाममात्र कीमतें पेश की जाती हैं तो यह मूल्य परिवर्तनों को पूरी तरह से प्रतिबिंबित करेगा। यह पद्धति मूल्य परिवर्तनों को बढ़ा-चढ़ाकर या विकृत नहीं करती है।’
इसी सुझाव के मुताबिक मंत्रालय ने सीपीआई की गणना में समग्र पीडीएस की सामग्री को शामिल करने के प्रस्तावित तरीके पर प्रतिक्रियाएं मांगी हैं।
पिछले साल दिसंबर में मंत्रालय ने एक चर्चा पत्र जारी किया था, जिसमें विचार मांगे गए थे कि क्या मुफ्त सामाजिक अंतरण और पीडीएस के तहत आपूर्ति किए गए अनाज को भारत की खुदरा महंगाई दर की गणना में शामिल किया जाना चाहिए।
मौजूदा सीपीआई श्रृंखला में उन खाद्य सामग्रियों को शामिल नहीं किया जाता है, जिन्हें मुफ्त वितरित किया जाता है। इसकी वजह यह है कि परिवारों को उसके लिए अपनी जेब से कोई खर्च नहीं करना पड़ता है।
ऐसी वस्तुओं को कोई पॉजिटिव भारांक नहीं मिलता और उनकी आधार व वर्तमान कीमतें दोनों ही शून्य दर्ज की जाती हैं। इसकी वजह से इन्हें उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की श्रेणी से बाहर रखा जाता है।