Madhya Pradesh के किसानों में नकदी फसल होने के कारण औषधीय पौधों की खेती का चलन तेजी से बढ़ रहा है। सरकारी अधिकारियों के मुताबिक कई बड़ी दवा निर्माता कंपनियों की ओर से भी इन फसलों की मांग आ रही है।
प्रदेश के इंदौर जिले के एक किसान राम सिंह परमार ने एक बीघा जमीन पर अश्वगंधा की खेती करके करीब दो लाख रुपये की आय अर्जित की जबकि उनकी लागत करीब 40,000 रुपये आई थी।
Madhya Pradesh का आयुष विभाग देवारण्य योजना का संचालन कर रहा है जिसके तहत वनोपज संग्रह का काम कई जिलों में बने छोटे-छोटे संगठनों द्वारा किया जा रहा है। विभाग की योजना एक बड़ा मंच बनाने की भी है ताकि औषधीय पौधों सहित इस संग्रहीत वनोपज को बाजार मुहैया कराया जा सके। सरकार ऐसा करके राज्य के जनजातीय इलाकों में रोजगार के नए अवसर उत्पन्न करना चाहती है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हाल ही में जोर देकर कहा कि फसल नुकसान कम करने तथा कृषि को मुनाफे का सौदा बनाने के लिए फसल उत्पादन के तरीके में बदलाव करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘पारंपरिक फसलों के अलावा औषधीय पौधों जैसी वाणिज्यिक फसलों पर भी जोर देने की जरूरत है। यह प्रयसा भी किया जा रहा है कि कृषि आधारित उद्योगों में निवेश किया जाए ताकि किसानों को अच्छी कीमत मिले और स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सके।’
आयुष विभाग के प्रमुख सचिव प्रतीक हजेला ने हाल ही में कहा था कि 52 औषधीय पौधों की खेती को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम में शामिल किया गया है।
देवारण्य योजना को अनूपपुर, नर्मदापुरम, सतना, झाबुआ, डिंडोरी, बैतूल समेत कई जिलों में लागू किया जा रहा है। प्रदेश के 21 विकासखंडों के 140 से अधिक स्वयं सहायता समूह मध्य प्रदेश ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं। इस बीच डाबर, महर्षि आयुर्वेद, ओमनीएक्टिव, बॉटनिक हेल्थकेयर, नैचुरल रिमेडीज और इमामी जैसी कंपनियों से संपर्क किया जा रहा है ताकि इन पौधों को बाजार पहुंच दिलाई जा सके।
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