सप्ताह-दर-सप्ताह जारी होने वाले महंगाई दर के सरकारी आंकड़े भले ही 8 फीसदी के स्तर को दिखा कर हौलनाक मंजर पेश कर रहे हों, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की नजर में महंगाई लगभग आधी ही है।
आईएमएफ की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में मुद्रास्फीति की दर को मापने के लिए एक माह पहले मूल्य सूचकांकों में आए बदलाव के आधार माना जाता है। जबकि आईएमएफ ने मूल्य सूचकांकों में मासिक बदलाव को तो आधार बनाया, लेकिन उसमें मौसमी प्रभाव, जैसे-फसलों की उपलब्धता को मुद्रास्फीति की दर अलग कर दिया।
यही नहीं, आईएमएफ की रिपोर्ट में साप्ताहिक आंकड़ों में भी मौसमी प्रभाव को शामिल किया गया है। इसके तहत पिछले पांच हफ्ते की महंगाई दर के औसत को 52 से गुणा कर सालाना मुद्रास्फीति दर की गणना की गई। इसके आधार पर वार्षिक महंगाई दर 4.7 फीसदी रही, जो राहत की बात है।
आईएमएफ के मुताबिक, मुद्रास्फीति दर भले ही सुकून पहुंचाने वाली हो, लेकिन अध्ययन से यह भी पता चलता है कि अगर साल-दर-साल महंगाई दर बढ़ती रही, तो यह बहुत अधिक हो सकती है। आईएमएफ के अध्ययन को इकरा के आर्थिक सलाहकार और प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार समिति के सदस्य सौमित्र चौधरी खारिज करते हुए कहते हैं कि मौसमी प्रभाव के आधार पर महंगाई दर की गणना करना काफी जटिल होगा और अंत में इसके परिणाम बेतुके साबित हो सकते हैं।
जेपी मॉर्गन ने भी वर्ष 2006 से आईएमएफ की तरह ही महंगाई दर की गणना की है, लेकिन मार्च-अप्रैल 2008 में इसका आंकड़ा आईएमफ से मेल खाता नजर नहीं आता है। क्रेडिट रेटिंग कंपनी क्रिसिल के निदेशक और मुख्य अर्र्थशास्त्री डी. के. जोशी का कहना है कि आईएमएफ के मुताबिक, साल-दर-साल महंगाई दर 4.7 फीसदी रही, लेकिन आरबीआई के लिए यह राहत की बात नहीं है, क्योंकि यह आंकड़ा साल-दर-साल का है न कि मासिक।
वैसे ऑक्सस इन्वेस्टमेंट के प्रमुख सुरजीत भल्ला आईएमएफ से सहमत हैं। देश के प्रमुख सांख्यिकीविद् प्रोनव सेन का कहना है कि उन्होंने आईएमएफ की रिपोर्ट नहीं देखी है, लेकिन इतना तय है कि महंगाई दर उच्च स्तर पर है।
बहरहाल, सरकार में शामिल लोग यह कह रहे हैं कि मानसून के बाद महंगाई दर पर काबू पा लिया जाएगा और इसमें गिरावट आएगी। कुछ का मानना है कि निर्यात पांबदी और आपूर्ति में सुधार लाकर महंगाई को रोका जा सकता है, वहीं कुछ लोगों का कहना है कि आपूर्ति में सुधार के जरिए काबू पाया जा सकता है।