काम के अधिक घंटे और कम कमाई के कारण देश के गिग कामगारों को घर चलाने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा उनके लिए प्लेटफॉर्म पर अपनी आईडी निष्क्रिय होने अथवा रद्द होने का खतरा भी रहता है। साथ ही वे मानसिक तनाव से भी गुजरते हैं।
काम के अधिक घंटे और कम कमाई के कारण देश के गिग कामगारों को घर चलाने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा उनके लिए प्लेटफॉर्म पर अपनी आईडी निष्क्रिय होने अथवा रद्द होने का खतरा भी रहता है। साथ ही वे मानसिक तनाव से भी गुजरते हैं। यह जानकारी इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स (IFAT) के सहयोग से पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय द्वारा तैयार की गई सर्वेक्षण रिपोर्ट से मिली है।
सोमवार को जारी प्रिजनर्स ऑन व्हील्स रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब 83 फीसदी कैब ड्राइवर एक दिन में 10 घंटे से अधिक काम करते हैं और 78 फीसदी डिलिवरी पर्सन भी इतने ही घंटे रोजाना काम करते हैं।
इसके अलावा 43 फीसदी कैब ड्राइवरों ने कहा कि वे हर महीने 15 हजार रुपये (भोजन, ईंधन, वाहन रखरखाव और बैंक को देने वाली ईएमआई के बाद) से भी कम कमाते हैं। डिलिवरी पर्सन की मासिक आमदनी बमुश्किल 10 हजार रुपये है। इसकी वजह से करीब 70 फीसदी कैब ड्राइवरों और डिलिवरी पर्सन को अपना घर चलाने में भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कम आमदनी का मुख्य कारण अनुचित किराया, एग्रीगेटरों द्वारा कमीशन दरें और मनमानी कटौती हैं। सर्वेक्षण में शामिल हर तीन में से एक व्यक्ति ने कहा कि कंपनियां प्रति राइड 31 से 40 फीसदी कमीशन लेती हैं जबकि कंपनियों ने आधिकारिक तौर पर 20 फीसदी कमीशन लेने की जानकारी दी है।’
रिपोर्ट में ऐप आधारित गिग और प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था में कामकारों की कमाई और कामकाजी परिस्थितियों के रुझान को दर्शाया गया है। देश के 8 शहरों (दिल्ली, लखनऊ, जयपुर, इंदौर, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद और बेंगलूरु) में 10,000 से अधिक कैब ड्राइवरों और डिलिवरी पर्सन को इस सर्वेक्षण में शामिल किया गया था।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि करीब 41 फीसदी कैब ड्राइवर और 48 फीसदी डिलिवरी पर्सन को सप्ताह में एक दिन भी छुट्टी नहीं मिलती है। इस कारण वे अपने परिवार को पूरा वक्त नहीं दे पाते हैं। उल्लेखनीय है कि 86 फीसदी डिलिवरी पर्सन का कहना है कि 10 मिनट में डिलिवरी वाली योजना उन्हें स्वीकार्य नहीं है।
सोमवार को जारी प्रिजनर्स ऑन व्हील्स रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब 83 फीसदी कैब ड्राइवर एक दिन में 10 घंटे से अधिक काम करते हैं और 78 फीसदी डिलिवरी पर्सन भी इतने ही घंटे रोजाना काम करते हैं।
इसके अलावा 43 फीसदी कैब ड्राइवरों ने कहा कि वे हर महीने 15 हजार रुपये (भोजन, ईंधन, वाहन रखरखाव और बैंक को देने वाली ईएमआई के बाद) से भी कम कमाते हैं। डिलिवरी पर्सन की मासिक आमदनी बमुश्किल 10 हजार रुपये है। इसकी वजह से करीब 70 फीसदी कैब ड्राइवरों और डिलिवरी पर्सन को अपना घर चलाने में भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कम आमदनी का मुख्य कारण अनुचित किराया, एग्रीगेटरों द्वारा कमीशन दरें और मनमानी कटौती हैं। सर्वेक्षण में शामिल हर तीन में से एक व्यक्ति ने कहा कि कंपनियां प्रति राइड 31 से 40 फीसदी कमीशन लेती हैं जबकि कंपनियों ने आधिकारिक तौर पर 20 फीसदी कमीशन लेने की जानकारी दी है।’
रिपोर्ट में ऐप आधारित गिग और प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था में कामकारों की कमाई और कामकाजी परिस्थितियों के रुझान को दर्शाया गया है। देश के 8 शहरों (दिल्ली, लखनऊ, जयपुर, इंदौर, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद और बेंगलूरु) में 10,000 से अधिक कैब ड्राइवरों और डिलिवरी पर्सन को इस सर्वेक्षण में शामिल किया गया था।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि करीब 41 फीसदी कैब ड्राइवर और 48 फीसदी डिलिवरी पर्सन को सप्ताह में एक दिन भी छुट्टी नहीं मिलती है। इस कारण वे अपने परिवार को पूरा वक्त नहीं दे पाते हैं। उल्लेखनीय है कि 86 फीसदी डिलिवरी पर्सन का कहना है कि 10 मिनट में डिलिवरी वाली योजना उन्हें स्वीकार्य नहीं है।