मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) वी अनंत नागेश्वरन ने मंगलवार को कहा कि भारत के पास वृद्धि-अनुकूल परिवेश बनाने के लिए एक आधुनिक और प्रभावी नियामकीय ढांचा होना चाहिए। इसका कारण यह है कि वैश्विक वृद्धि पर दबाव के कारण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का प्रवाह प्रभावित हुआ है।
नागेश्वरन ने बजट बाद ‘भारत को निवेश के अनुकूल बनाना’ शीर्षक से आयोजित एक वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि देश पसंदीदा निवेश गंतव्य के रूप में उभरा है। यह सकल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह से पता चलता है। उन्होंने कहा, ‘‘हमें विनियामकीय स्पष्टता में सुधार, व्यापार संचालन को सुगम बनाने और यह सुनिश्चित करने पर ध्यान देने की जरूरत है कि विनियामक ढांचे की योजना सुधारों की व्यापक दृष्टि से मेल खाती हो।’’
नागेश्वरन ने कहा कि पिछले एक महीने में विभिन्न सरकारों द्वारा उठाये गये कदमों से यह बिल्कुल साफ है कि दुनियाभर में वृद्धि पर दबाव है। उन्होंने कहा कि भारत को देश के भीतर ‘रचनात्मक आशावाद के माहौल’ को बनाए रखने के लिए घरेलू स्तर पर जो कुछ भी किया जा सकता है, वह करना होगा। नागेश्वरन ने कहा कि एक मजबूत निवेश परिवेश आवश्यक है, खासकर जब वैश्विक स्तर से जोखिम से बचने के कारण वैश्विक एफडीआई प्रवाह प्रभावित होने की आशंका हो।
मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा, ‘‘निवेश माहौल को बनाए रखने की जरूरत है क्योंकि यह पूंजी निर्माण में मदद करेगा, रोजगार पैदा करेगा और आर्थिक वृद्धि को बनाए रखेगा। ऐसा करने के लिए एक आधुनिक और प्रभावी नियामकीय ढांचा आवश्यक है। वृद्धि-अनुकूल निवेश माहौल तैयार करने के लिए यह एक पूर्व-शर्त है।’’ बीमा क्षेत्र में एफडीआई सीमा 74 प्रतिशत से बढ़ाकर 100 प्रतिशत करने पर नागेश्वरन ने कहा कि इससे अधिक पूंजी, प्रतिस्पर्धा और नवोन्मेष आएगा।
यूनियन बजट-2025 के पहले जनवरी में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नीति में किसी भी तरह की समस्या दूर करने के प्रयास में उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) ने उद्योग संगठनों, विधि विश्लेषकों और नियामकीय प्रतिनिधियों से सुझाव मांगे थे। उस आयोजित बैठक में विभाग ने उद्योग संगठनों- सीआईआई, फिक्की, एसोचैम -और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के प्रतिनिधियों से मुलाकात की और देश में आने वाले निवेश से जुड़े मानकों पर चर्चा की।
बैठक में मौजूद एक कानूनी विश्लेषक ने बताया, ‘सरकार ने उन क्षेत्रों के बारे में सुझाव मांगे हैं जहां एफडीआई नीति को और उदार बनाया जा सकता है। उन स्थितियों पर भी सुझाव मांगे गए हैं जहां स्पष्टता की आवश्यकता है। चर्चा में न्यूनतम पूंजीकरण मानदंड, लाभकारी स्वामित्व निर्धारण मानदंड और डाउनस्ट्रीम निवेश शामिल थे।’
वित्त वर्ष 2021 में निवेश 4.42 लाख करोड़ रुपये की ऊंचाई पर पहुंच गया और तब से इसमें गिरावट जारी रही। वित्त वर्ष 2024 में यह 3.67 लाख करोड़ रुपये था। डीपीआईआईटी से इस बारे में और स्पष्टता मांगी गई थी कि विदेशी स्वामित्व वाली और नियंत्रित कंपनी (एफओसीसी) क्या कर सकती है और क्या नहीं। कानूनी विशेषज्ञों ने कौशल आधारित गेमिंग उद्योग में भी एफडीआई को लेकर स्पष्टता की मांग की।
नवंबर 2024 में भारत की आउटवर्ड फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (FDI) कमिटमेंट्स लगभग आधी होकर $2.28 बिलियन रह गईं जो नवंबर 2023 में $4.17 बिलियन थीं। अक्टूबर 2024 में यह आंकड़ा $3.43 बिलियन था। यह जानकारी भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़ों से सामने आई थी।
आउटबाउंड एफडीआई को तीन हिस्सों में बांटा गया है: इक्विटी, कर्ज और गारंटी।
इक्विटी कमिटमेंट्स: नवंबर 2024 में इक्विटी कमिटमेंट्स घटकर $743.29 मिलियन रह गईं जो नवंबर 2023 में $1.2 बिलियन और अक्टूबर 2024 में $783.5 मिलियन थीं।
कर्ज कमिटमेंट्स: कर्ज कमिटमेंट्स नवंबर 2024 में बढ़कर $967.7 मिलियन हो गईं जो नवंबर 2023 में $179.2 मिलियन थीं। हालांकि, यह अक्टूबर 2024 के $1.3 बिलियन से कम है।
गारंटी: नवंबर 2024 में विदेशी यूनिट्स के लिए गारंटी कमिटमेंट्स में भारी गिरावट आई और यह $568.9 मिलियन पर आ गईं जो नवंबर 2023 में $2.78 बिलियन और अक्टूबर 2024 में $1.35 बिलियन थीं।
नवंबर 2024 में आउटवर्ड एफडीआई के सभी कंपोनेंट में गिरावट देखने को मिली, जिससे यह आंकड़ा पिछले साल की तुलना में लगभग आधा हो गया।
(एजेंसी इनपुट, श्रेया जय, अभिजित लेले के साथ)
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