भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने आज कहा कि वृहद आर्थिक स्थिरता मौद्रिक और राजकोषीय दोनों अधिकारियों की साझा जिम्मेदारी है और कई प्रतिकूल झटकों के बावजूद कारगर राजकोषीय-मौद्रिक समन्वय भारत की सफलता की बुनियाद है। दास ने कहा, ‘2020 से 2023 के दौरान खाद्य पदार्थों और तेल की कीमतों में अप्रत्याशित तेजी आई थी जिसने मौद्रिक नीति संचालन को चुनौतीपूर्ण बना दिया था। राजकोषीय नीति के साथ प्रभावी समन्वय के माध्यम से इन झटकों के प्रभाव को बेअसर करना जरूरी था।’
उन्होंने कहा कि मौद्रिक नीति ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और मांग आधारित दबाव को कम करने पर काम किया जबकि सरकार ने आपूर्ति श्रृंखला का दबाव कम किया और लागत-प्रेरित मुद्रास्फीति को काबू में करने का प्रयास किया।
दास ने यह भी कहा कि स्थिर मुद्रास्फीति निरंतर वृद्धि का आधार है क्योंकि यह लोगों की क्रयशक्ति बढ़ाती है और निवेश के लिए अनुकूल माहौल प्रदान करती है। मुंबई में केंद्रीय बैंकों के उच्च स्तरीय नीति सम्मेलन को संबोधित करते हुए दास ने कहा, ‘गतिविधियों को बढ़ावा देने, अनिश्चितता और मुद्रास्फीति के जोखिम को कम करने, बचत तथा निवेश को प्रोत्साहित करने में कीमतों में स्थिरता का उतना ही महत्त्व है जितना कि विकास का, क्योंकि ये सभी अर्थव्यवस्था की संभावित वृद्धि दर को बढ़ावा देते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘लंबी अवधि में कीमतों में स्थिरता से उच्च वृद्धि को बल मिलता है। कीमतों का स्थिर रहना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ऊंची मुद्रास्फीति से गरीबों पर अनावश्यक बोझ पड़ता है।’
दास ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूत वृद्धि ने आरबीआई को मुद्रास्फीति पर ध्यान केंद्रित करने में सहूलियत प्रदान की। आरबीआई मुद्रास्फीति को 4 फीसदी के लक्ष्य पर लाने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि स्थिर मुद्रास्फीति लोगों और अर्थव्यवस्था दोनों के हित में है। आरबीआई गवर्नर का यह बयान ऐसे में आया है जब अक्टूबर में खुदरा मुद्रास्फीति मौद्रिक नीति समिति के सहज स्तर से पार पहुंच गई है।
अक्टूबर में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रास्फीति 6.2 फीसदी रही जो सितंबर में 5.5 फीसदी थी। अक्टूबर में मौद्रिक नीति समिति की बैठक में रीपो दर को यथावत रखने का निर्णय किया गया था मगर नीतिगत रुख को बदलकर ‘तटस्थ’ कर दिया गया था। इससे कयास लगाया जा रहा था कि दिसंबर में रीपो दर में कटौती की जा सकती है।
सितंबर और अक्टूबर में मुद्रास्फीति ऊंची बने रहने के कारण बाजार के भागीदारों ने दिसंबर में रीपो दर में कटौती की संभावना से इनकार किया है। अब फरवरी में भी दर कटौती को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है और कई लोग कयास लगा रहे हैं कि दर में कटौती अप्रैल में ही शुरू हो सकती है।
घरेलू वृद्धि में भी नरमी को लेकर चिंता जताई जा रही है। मगर आरबीआई की ओर से नवंबर में जारी बुलेटिन में वृद्धि का भरोसा जताया गया है और इसमें कहा गया है कि निजी खपत में सुधार से घरेलू मांग बढ़ रही है।