सरकार ने जब से 2 हजार रुपये के नोट को चलन से बाहर करने की घोषणा की है तब से करेंसी इन सर्कुलेशन, डिजिटल लेनदेन, ब्लैक मनी, डिजिटल इकॉनमी वगैरह को लेकर चर्चा फिर से जोर पकड़ने लगी है। लोग जानना चाहते हैं कि आखिर सरकार के इस कदम का मकसद क्या आगामी विधानसभा चुनावों और आम चुनाव 2024 से ठीक पहले ब्लैक मनी रखने वालों पर करारा चोट करना है। अगर यही मकसद है तो लोगों का 2016 की नोटबंदी के संदर्भ में सरकार के इस कदम पर सवालिया निशान खड़ा करना भी स्वाभाविक ही है।
दूसरी तरफ यह बात भी सही है कि 2016 की नोटबंदी के परिणाम कुछ मामलों में सकारात्मक रहे हैं, खासकर डिजिटल लेनदेन में। हालांकि डिजिटल लेनदेन के बढ़ने से नकदी के चलन में कमी आई हो ऐसा अभी तक तो नहीं दिख रहा है।
आंकड़े बताते हैं कि जहां एक तरफ डिजिटल लेनदेन को लेकर पिछले 4-5 सालों में जबरदस्त तेजी आई है। वहीं दूसरी ओर कैश के सर्कुलेशन यानी नकदी के चलन में भी लगातार इजाफा हो रहा है।
डिजिटल लेनदेन के अलावा भी देश की अर्थव्यवस्था से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण इंडिकेटर हालांकि इस बात को दर्शा रहे हैं कि 2016 में उठाए गए कदम और उसके बाद के प्रयासों के मद्देनजर देश की इकॉनमी ज्यादा फॉर्मल (औपचारिक) हुई है। यानी शैडो इकॉनमी का जोर ढीला पड़ा है। हालांकि इस बात पर बहुत सारे जानकार सहमत नहीं भी हो सकते हैं।
पक्ष और विपक्ष जो तस्वीर बयां कर रहे हैं, उसी की सच्चाई जानने के लिए आज हम पड़ताल कर रहें हैं कि आखिर 2016 की नोटबंदी के बाद देश की अर्थव्यवस्था में नकदी की उपलब्धता (करेंसी इन सर्कुलेशन), डिजिटल लेनदेन लेकर स्थितियां कितनी बदली हैं।
करेंसी इन सर्कुलेशन/चलन में मौजूद करेंसी (सीआईसी)
आरबीआई से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 23 दिसंबर 2022 तक देश में नकदी 32.42 लाख करोड़ रुपये सर्कुलेशन में था। जबकि नोटबंदी से ठीक पहले यानी 4 नवंबर 2016 को 17.74 लाख करोड़ सर्कुलेशन में था। यानी उस समय से कैश के सर्कुलेशन में 83 फीसदी से ज्यादा की बढोतरी हुई है।
करेंसी इन सर्कुलेशन/चलन में मौजूद करेंसी (CIC) (लाख करोड़ रुपये में)
कब | कितना |
दिसंबर 23, 2022 | 32.42 |
मार्च 2022 | 31.05 |
मार्च 2021 | 28.26 |
मार्च 2020 | 24.20 |
मार्च 2019 | 21.10 |
मार्च 2018 | 18.03 |
मार्च 2017 | 13.1 |
मार्च 2016 | 16.42 |
(स्रोत: आरबीआई)
वहीं सालाना आधार पर देखें तो पिछले वित्त वर्ष (2022-23) के दौरान करेंसी इन सर्कुलेशन (नकदी के चलन) में 7.9 फीसदी की तेजी आई। वित्त वर्ष 2021-22, 2020-21, 2019-20, 2018-19 और 2017-18 में यह कमश: 9.8 फीसदी, 16.6 फीसदी, 14.5 फीसदी, 16.8 फीसदी और 37 फीसदी रही। जबकि 2016-17 के दौरान इसमें 19.7 फीसदी की कमी आई, क्योंकि इसी वर्ष नोटबंदी की घोषणा हुई थी।
करेंसी इन सर्कुलेशन / चलन में मौजूद करेंसी (% सालाना ग्रोथ)
वर्ष | वृद्धि |
2022-23 | +7.9 |
2021-22 | +9.8 |
2020-21 | +16.6 |
2019-20 | +14.5 |
2018-19 | +16.8 |
2017-18 | +37 |
2016-17 | -19.7 |
2015-16 | +14.9 |
2014-15 | +11.3 |
(स्रोत: आरबीआई)
जानकारों का यह भी मानना है कि कोरोना महामारी के बीच लोगों में कैश रखने की प्रवृत्ति बढी। वहीं कोरोना महामारी के बाद लॉकडाउन के पूरी तरह हटने के बाद एकाएक तेजी से निकली मांग यानी पेंट-अप डिमांड से भी कैश सर्कुलेशन को बढावा मिला। करेंसी सर्कुलेशन के साथ-साथ कैश टू जीडीपी रेश्यो (नकदी-जीडीपी अनुपात) के आंकड़े भी इस बात की की पुष्टि करते हैं। 2020-21 में करेंसी सर्कुलेशन में 4 लाख करोड रुपये से ज्यादा का इजाफा हुआ, जबकि कैश टू जीडीपी रेश्यो बढ़कर 14.5 फीसदी तक ऊपर चला गया। कोरोना के मद्देनजर जीडीपी ग्रोथ के नेगेटिव रहने की वजह से भी 2020-21 में नकदी-जीडीपी अनुपात में इतनी तेजी आई। ठीक इसके अगले वर्ष यानी 2021-22 में करेंसी सर्कुलेशन में सालाना आधार पर 2.80 लाख करोड रुपये की बढ़ोतरी देखी गई। जबकि कैश टू जीडीपी रेश्यो 13.27 फीसदी रहा। लेकिन ताजा आंकड़ों के अनुसार बीते वित्त वर्ष (2022-23) के दौरान नकदी-जीडीपी अनुपात घटकर 12.4 फीसदी यानी कमोबेश 2015-16 के स्तर पर आ गया। आने वाले समय में करेंसी सर्कुलेशन और नकदी-जीडीपी अनुपात में और भी कमी आ सकती है।
कैश टू जीडीपी रेश्यो (नकदी-जीडीपी अनुपात, %)
वर्ष | अनुपात |
2022-23 | 12.4 |
2021-22 | 13.27 |
2020-21 | 14.5 |
2019-20 | 12.05 |
2018-19 | 11.2 |
2017-18 | 10.7 |
2016-17 | 8.7 |
2015-16 | 12.1 |
2014-15 | 11.6 |
(स्रोत: आरबीआई)
सौ गुना बढ़ा डिजिटल लेनदेन
सरकार की तरफ से आए आंकड़ों के मुताबिक डिजिटल लेनदेन की संख्या में पिछले नौ वर्षों में 100 गुना इजाफा हुआ है। वित्त वर्ष 2013-14 में जहां महज 127 करोड डिजिटल लेनदेन हुए थे। वहीं यह आंकड़ा 2022-23 में (23 मार्च तक) बढ़कर 12,735 करोड़ तक जा पहुंचा है। एसबीआई की एक ताजा शोध रिपोर्ट बताती है कि वित्त वर्ष 2015-16 में जहां टोटल डिजिटल पेमेंट नॉमिनल जीडीपी (मुद्रास्फीति छोडकर) का 668 फीसदी था, वह वित्त वर्ष 2022-23 में बढकर 767 फीसदी हो गया है। देश की भुगतान प्रणाली (पेमेंट सिस्टम) में भी नकदी का हिस्सा वित्त वर्ष 2015-16 में 88 फीसदी से घटकर 2021-22 में 20 फीसदी पर आ गया और अनुमान इसके 2026-27 में 11.15 फीसदी तक नीचे जाने का है। नतीजतन, डिजिटल लेनदेन का हिस्सा 2015-16 में 11.26 फीसदी से लगातार बढ़कर 2021-22 में 80.4 फीसदी तक जा पहुंचा है। 2026-27 में इसके 88 फीसदी तक पहुंचने की उम्मीद है।
डिजिटल लेनदेन की संख्या/वॉल्यूम (करोड़)
वर्ष | लेनदेन |
2017-18 | 2,071 |
2018-19 | 3,134 |
2019-20 | 4,572 |
2020-21 | 5,554 |
2021-22 | 8,840 |
2022-23 (23 मार्च तक) | 12,735 |
(स्रोत: आरबीआई)
डिजिटल (वैल्यू- लाख करोड़ रुपये में)
वर्ष | लेनदेन |
2017-18 | 1,962 |
2018-19 | 2,482 |
2019-20 | 2,953 |
2020-21 | 3,000 |
2021-22 | 3,021 |
2022-23 (दिसंबर 31 तक) | 2,050 |
(स्रोत: आरबीआई)
यूपीआई की धाक
इन सबके बीच, हाल के वर्षों में यूपीआई डिजिटल लेनदेन के सबसे लोकप्रिय और पसंदीदा जरिये (मोड/विकल्प) के तौर पर उभरा है। भारत में कुल डिजिटल लेनदेन (वॉल्यूम) में यूपीआई का हिस्सा बढ़कर तकरीबन 73 फीसदी हो गया है। वित्त वर्ष 2016-17 में यूपीआई के जरिए 1.8 करोड़ लेनदेन हुए थे। जो 2022-23 में बढ़कर 8,375 करोड़ तक जा पहुंचा है। इसी अवधि के दौरान यूपीआई से लेनदेन के वैल्यू में भी 2,004 गुना उछाल आया और यह 6,947 करोड़ रुपये से बढ़कर 139 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया।
वित्त वर्ष | वॉल्यूम (करोड़) | वैल्यू (करोड़ रुपये) |
2016-17 | 1.79 | 6,947 |
2017-18 | 91.52 | 1,09,832 |
2018-19 | 535.34 | 8,76,970 |
2019-20 | 1,251.86 | 21,31,730 |
2020-21 | 2,223.07 | 41,03,653 |
2021-22 | 4,596.75 | 84,17,572 |
2022-23 | 8,375.11 | 1,39,20,678 |
(स्रोत: आरबीआई)
यूपीआई ने एटीएम से कैश विड्रॉल को धकेला पीछे
करेंसी की खुदरा मांग (वैल्यू) में यूपीआई की हिस्सेदारी भी बढ़कर 83 फीसदी तक हो गई है जबकि एटीएम से कैश विड्रॉल (नकद निकासी) का हिस्सा घटकर 17 फीसदी रह गया है। यह स्पष्ट संकेत है कि लोग कैश की जगह अब यूपीआई को तरजीह देने लगे हैं। यूपीआई के बढ़ते चलन का एक और प्रमाण है – जीडीपी के मुकाबले एटीएम से कैश विड्रॉल के आंकड़े। वित्त वर्ष 2016-17 के मुकाबले जहां देश की जीडीपी 2022-23 में 1.8 गुना बढकर 272 लाख करोड़ रुपये तक पहुंची है वहीं एटीएम से डेबिट कार्ड के जरिए लेनदेन (वैल्यू) कमोबेश 30-35 लाख करोड रुपये के बीच स्थिर रहा है। वित्त वर्ष 2016-17 में एटीएम से कैश विड्रॉल (वैल्यू) नॉमिनल जीडीपी का जहां 15.4 फीसदी था वहीं यह 2022-23 में घटकर 12.1 फीसदी रह गया।
फिर भी क्यों बरकरार है कैश का जलवा…
कैश के चलन को लेकर देश में दो तरह की स्थितियां हैं। एक तरफ शैडो इकॉनमी है जहां लोग जानबूझकर कैश (एक हद तक अवैध भी कह सकते हैं) का इस्तेमाल करते हैं ताकि वे सिस्टम की पकड़ से दूर रहें। यही शैडो इकोनॉमी (वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन और व्यापार जानबूझकर सिस्टम से छुपाया जाता है) देश में अत्यधिक करेंसी सर्कुलेशन के लिए एक हद तक जिम्मेदार है। वहीं दूसरी तरफ एक बड़ा तबका ऐसा भी है जिसके पास न तो डिजिटल लेनदेन की समझ है और न जरूरी संसाधन, यानी ये डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर से महरूम हैं। एक बड़ा तबका मजबूरी में अभी भी कैश पर निर्भर है। इसलिए सरकार की कोशिश देश में इस डिजिटल डिवाइड को कम से कम करने की होनी चाहिए। एक्सपेंडिचर (व्यय) की कुल मात्रा में नकदी का हिस्सा औपचारिक अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट पर है, लेकिन यह अभी भी छोटे लेनदेन के लिए बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है, खासकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में।
‘द 2020 मैकिन्से ग्लोबल पेमेंट्स रिपोर्ट’ के अनुसार, भारत में वॉल्यूम के हिसाब से सभी लेनदेन लगभग 89 प्रतिशत नकदी में होता है। सैन फ्रांसिस्को-स्थित नरवर के एक अध्ययन में कहा गया है कि भारत में ई-रिटेल प्लेटफॉर्म पर 65 फीसदी कारोबार कैश ऑन डिलीवरी (सीओडी) से होता है। टियर-1 और टियर-2 शहरों में तो 80 फीसदी तक ऑर्डर कैश ऑन डिलीवरी पर किए जा रहे हैं। ई-कॉमर्स कंपनियां अगर सीओडी को हतोत्साहित करती हैं तो वॉल्यूम खोने का जोखिम है। कुल मिलाकर कहें तो ग्रामीण और छोटे शहरों में लेनदेन का सबसे पसंदीदा जरिया कैश है।
अप्रैल 2022 में प्रकाशित भारत के प्रमुख ग्रामीण वाणिज्य नेटवर्क 1ब्रिज (1Bridge) द्वारा किए गए एक फील्ड रिसर्च से पता चलता है कि भारत की मात्र 3-7 फीसदी ग्रामीण आबादी लेनदेन के लिए किसी भी यूपीआई प्लेटफॉर्म का सक्रिय रूप से इस्तेमाल करती है।
विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित ग्लोबल फाइंडेक्स (Global Findex) 2021 के निष्कर्ष भी बताते हैं कि देश की 22 फीसदी वयस्क आबादी के पास कोई बैंक खाता नहीं है। जबकि सिर्फ 35 फीसदी वयस्कों ने 2021 में डिजिटल लेनदेन के लिए अपने बैंक खातों का इस्तेमाल किया। इसके अलावा, भारत में लेनदेन को लेकर भी लैंगिक असमानता है। इसी रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि डिजिटल लेनदेन के मामले में पुरुषों के मुकाबले 13 फीसदी कम महिलाएं रूचि लेती हैं।
हमारी चुनावी प्रणाली में जिस तरह से बेहिसाब धन का प्रयोग होता है आखिर कैश के सर्कुलेशन को ही हवा देता है।
कैश लेनदेन को लेकर एक सेक्टर जो बहुत ज्यादा बदनाम है वह है रियल एस्टेट सेक्टर। कहा भी जाता है इस देश में प्रॉपर्टी का सौदा बिना कैश लेनदेन के होना बहुत मुश्किल है। सामुदायिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोकल सर्कल्स द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि रियल एस्टेट सेक्टर में लेनदेन में सबसे ज्यादा नकदी का इस्तेमाल होता है। सर्वेक्षण में शामिल 8 फीसदी उत्तरदाताओं ने माना कि उन्होंने प्रॉपर्टी के लेनदेन में 50 फीसदी से अधिक नकद भुगतान किया था। तकरीबन 15 फीसदी उत्तरदाताओं ने लेनदेन की राशि का 30-50 फीसदी नकद में भुगतान किया था, 13 फीसदी ने 10-30 फीसदी नकद भुगतान किया था और शेष 8 फीसदी ने कुल कीमत का 10 फीसदी तक नकद में भुगतान किया था। कुल मिलाकर 44 फीसदी उत्तरदाताओं ने प्रॉपर्टी सौदों में नकद भुगतान की बात मानी।
जीएसटी के भुगतान से बचने के लिए नकद लेनदेन की बात किसी से छिपी नहीं है। केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड ने जीएसटी की शुरुआत से अब तक 62,000 करोड़ रुपये से अधिक के राजस्व से जुड़े 8,200 से अधिक मामले दर्ज किए हैं।