भारत का पसंदीदा रसोई गैस ईंधन आम लोगों को राहत दे सकता है। नरेंद्र मोदी सरकार आने वाले महीनों में तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) को एकमुश्त सब्सिडी देने पर विचार कर रही है, जिससे इनके बढ़ते घाटे की भरपाई हो सके। इस मसले पर आंतरिक बातचीत में शामिल लोगों ने यह जानकारी दी।
उच्च स्तरीय चर्चा में शामिल दो सूत्रों ने कहा कि केंद्र सरकार रसोई गैस (एलपीजी) बेचने से ओएमसी को हुए अनुमानित रूप से 40,000 करोड़ रुपये घाटे के उल्लेखनीय हिस्से की भरपाई कर सकती है। केंद्र ने इस साल 1 फरवरी को पेश बजट में रिकॉर्ड घाटे की भरपाई के लिए धन का आवंटन नहीं किया है। बाजार से जुड़े सूत्रों को उम्मीद है कि सरकार साल के मध्य में 18,000 से 25,000 करोड़ रुपये तक का भुगतान कर सकती है। रिफाइनिंग से जुड़े सूत्रों और इक्विटी विश्लेषकों ने कहा कि ऐसा न किए जाने पर सरकारी रिफाइनरों को वित्तीय दबाव का सामना करना पड़ सकता है।
केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप पुरी सहित बैठक में शामिल शीर्ष अधिकारियों को ओएमसी के घाटे की भरपाई सरकार द्वारा किए जाने का भरोसा है। सूत्रों ने कहा कि किसी निश्चित राशि के भुगतान का वादा नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि राशि और इसके भुगतान के तरीके के बारे में फैसला वित्त मंत्रालय करेगा। पुरी ने पिछले महीने मुंबई में हुई बैठक के बाद संवाददाताओं से बातचीत में केंद्रीय बजट में एलपीजी मुआवजे की उम्मीद जताई थी।
मूडीज से जुड़ी रेटिंग एजेंसी इक्रा में वाइस प्रेसीडेंट प्रशांत वशिष्ठ ने कहा, ‘हमारा अनुमान पूरे साल के लिए 38,000 से 40,000 करोड़ रुपये का है और घाटा अगले वित्त वर्ष में भी करीब ऐसा ही रहेगा।’ उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि अगर रूसी तेल पर छूट समाप्त हो जाती है तो अगले वित्त वर्ष में कर, मूल्यह्रास और परिशोधन से रिफाइनिंग क्षेत्र की ब्याज से पहले आमदनी पर 16,000 करोड़ का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। विश्लेषकों ने कहा कि इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (बीपीसीएल) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन 2 वित्त वर्ष के दौरान बिक्री से हुई 80,000 करोड़ रुपये के नुकसान की भरपाई करने की स्थिति में नहीं हैं, खासकर ऐसी स्थिति में जब बजट दस्तावेजों के मुताबिक 2025-26 के लिए पूंजीगत व्यय की प्रतिबद्धता बढ़कर 65,000 करोड़ रुपये हो गई है।
कंपनी के आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल से दिसंबर के दौरान कुल अंडर रिकवरी 29,000 करोड़ रुपये से कम थी। वित्त वर्ष 2022-23 में अक्टूबर में केंद्र ने बजट प्रावधान नहीं करने के बाद 22,000 करोड़ रुपये मुहैया कराए थे।
अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के चीन के साथ शुल्क युद्ध के कारण इस साल ईंधन की कीमतें बढ़ सकती हैं, अगर अमेरिका की आपूर्ति पर चीन शुल्क लगाता है। ऐसा 2018 के व्यापार युद्ध में भी हुआ था। इसकी वजह से पेट्रोकेमिकल्स संयंत्रों को पश्चिम एशिया के आपूर्तिकर्ताओं के लिए प्रतिस्पर्धा करनी पड़ सकती है।
भारत अपनी एलपीजी जरूरतों के लिए 67 प्रतिशत आयात पर निर्भर है। इसकी पश्चिम एशिया पर पूरी तरह निर्भरता ने सऊदी अरब के मासिक कॉन्ट्रैक्ट मूल्य (सीपी) के प्रति संवेदनशील बना दिया है। एलपीजी में मिश्रण के लिए 2024 में 213 लाख टन प्रोपेन और ब्यूटेन का आयात हुआ, जिसमें से 97 प्रतिशत खाड़ी देशों से आया है। संयुक्त अरब अमीरात सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। उसके बाद कतर, कुवैत और सऊदी अरब का स्थान है। सबके कांट्रैक्ट की शर्तों में सऊदी सीपी को बेंचमार्क रखा गया है।अमेरिका गैस का बड़ा आपूर्तिकर्ता है, लेकिन ढुलाई की लागत बड़ी चुनौती है। बहरहाल ट्रंप अमेरिका से ईंधन निर्यात बढ़ाने की कवायद कर रहे हैं, जिसके तहत भारत को ज्यादा आपूर्ति की जा सकती है। भारत के तेल मंत्रालय को उम्मीद है कि अगले वित्त वर्ष एलपीजी की खपत 4.8 प्रतिशत बढ़कर 330 लाख टन हो सकती है, जिससे निर्यात पर निर्भरता और बढ़ेगी और घरेलू उत्पादन स्थिर होने के कारण वित्तीय नुकसान उठाना पड़ेगा।