भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) वी अनंत नागेश्वरन ने गुरुवार को कहा कि निजी पूंजी ऊर्जा में बदलाव की प्रक्रिया में धन लगाने से जुड़े जोखिमों और अवसरों को पूरी तरह अपनाने को तैयार नहीं है। ऐसे में इसे जोखिम मुक्त करने के लिए बहुपक्षीय एजेंसियों या सरकारों द्वारा जोखिम की लागत को इसमें शामिल करना पड़ सकता है। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की ओर से आयोजित रायसीना डॉयलाग 2024 में अपने संबोधन के दौरान नागेश्वरन ने यह बात कही।
जी-20 की भारत की अध्यक्षता में बनी स्वतंत्र विशेषज्ञों के समूह की सिफारिशों के मुताबिक निजी पूंजी आकर्षित करने के लिए बहुपक्षीय विकास बैंकों को काम करने का अनुरोध करते हुए सीईए ने कहा, ‘ऊर्जा में बदलाव और जलवायु परिवर्तन की जरूरतों के लिए धन जुटाने को लेकर बहुत बातचीत हुई है। लेकिन हकीकत तो यह है कि बातें सिर्फ बातें ही रह जाती हैं।’
नागेश्वरन ने कहा कि भारत द्वारा जारी सॉवरिन ग्रीन बॉन्ड के यील्ड पर डिस्काउंट महज एक या दो आधार अंक है। उन्होंने कहा, ‘ग्रीन बॉन्ड के मानदंडों को पूरा करने वाली परियोजनाओं की पहचान करने और रेटिंग पाने के लिए की गई सभी कवायदों और किए गए खर्च का परिणाम एक या दो आधार अंकों के रूप में आता है।’
सीईए ने कहा कि इस समय वित्तीय संसाधनों से ज्यादा जरूरी है कि फाइनैंसरों व विकसित देशों को पेरिस समझौते की ओर जाएं और याद रखें कि यह सामान्य, लेकिन अलग तरह की जिम्मेदारी है। उन्होंने यह भी कहा कि यह स्वीकार करने की जरूरत है कि हमारे देशों के लिए ऊर्जा की उपलब्धता सुनिश्चित करने बनाम ऊर्जा बदलाव करने को लेकर आर्थिक मसला भी इससे जुड़ा हुआ है।
नागेश्वरन ने यह भी उल्लेख किया कि निजी पूंजी आकर्षित करना और वास्तविक धन प्राप्त करना प्राथमिक रूप से कठिन है, क्योंकि तकनीकी अभी व्यापक रूप से अप्रमाणित बनी हुई है और संसाधनों के लिए एक या कुछ देशों पर निर्भरता भी एक चुनौती है।
बहुपक्षीय एजेंसियों और विकसित देशों द्वारा मिले जुले वित्तपोषण पर जोर देते हुए नागेश्वरन ने कहा, ‘सभी देशों का नेट जीरो की तरफ बढ़ना भी एक चुनौती है क्योंकि इससे समस्या बढ़ती है।
विडंबना यह है कि निजी संसाधन प्राप्त करना बहुत कठिन है।’ उन्होंने कहा कि विदेशी मुद्रा के जोखिम का बोझ कौन उठाएगा, इसकी व्यवस्था नहीं बन सकी है।
उन्होंने कहा, ‘इनमें से तमाम सवालों के ब्योरों पर अभी फैसला नहीं हो सका है। जब आप इन चीजों पर खर्च करना शुरू करते हैं तो जीवाश्म ईंधन से जुड़ी कुछ शिकायतें वैकल्पिक ईंधन पर भी लागू होती हैं।’
नागेश्वरन ने कहा कि उदाहरण के लिए अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं में अन्य विकल्पों की तुलना में ज्यादा जमीन की जरूरत होती है। सीईए ने कहा, ‘हमारे जैसे देश में, जहां जी-20 देशों की तुलना में प्रति वर्ग किलोमीटर जनसंख्या घनत्व सबसे ज्यादा है, इसकी लागत बहुत ज्यादा हो जाती है।’
उन्होंने कहा कि पूंजी आकर्षित करने या जोखिम कम करने के तरीके पूरी तरह पारदर्शी होने चाहिए। नागेश्वरन ने कहा, ‘जब कर्जदाता और कर्ज लेने वाले के बीच सूचनाएं पूरी रहेंगी और सही आर्थिक लागत पता रहेगी तो धन आने लगेगा।’
सीईए ने यह भी कहा कि छोटे और मझोले उद्यमों के कंधे पर उत्सर्जन संबंधी दायित्वों का बोझ डाले जाने से पहले उन्हें अनुकूलन के लिए वक्त दिया जाना चाहिए।