शहीद सैनिकों के ताबूत खरीदने के मामले में
कैग ने इस परियोजना को काफी खराब तरीके से नियोजित योजनाओं में से एक बताया है। इस परियोजना पर 628.87 करोड़ रुपये के अतिरिक्त खर्च होने का अनुमान है।नालंदा में ऑर्डनेंस फैक्टरी का काम जून 2005 से रुका पड़ा है। इसमें दक्षिण अफ्रीका की कंपनी डेनेल(पीटीवाई)लिमिटेड को बतौर सहयोगी रखा गया था लेकिन इस कंपनी को भारत ने बंकर ध्वस्त करने वाली राइफलों की खरीद में भ्रष्टाचार के कारण काली सूची में रखा दिया था। कैग रिपोर्ट संख्या सीए, 2008(रक्षा सेवाओं)को जब शुक्रवार को संसद पटल पर रखा गया तो इस परियोजना की कई और बातों पर प्रकाश डाला गया।
इस रिपोर्ट में बताया गया कि इस परियोजना को 2005 में ही पूरा होना था, लेकिन अब तक मात्र 25 प्रतिशत ही काम हो सका है। इस पूरे हुए कामों में आवासीय व्यवस्था, खुला थियेटर, शॉपिंग केंद्र, क्लब,आदि का निर्माण और कार ,बस और एयरकंडीशनर की खरीद शामिल है। इस परियोजना के अंतर्गत तकनीकी इमारतों का कोई निर्माण कार्य नहीं हो सका है। प्लांट की स्थापना और मशीनों की खरीद तो दूर की बात है। नालंदा आर्डनेंस फैक्टरी क ी बात आते ही तीन विवादास्पद तथ्य सामने आते हैं–पहला रक्षा मंत्रालय, दूसरा फर्नांडीज (जो इस परियोजना के सूत्रधार माने जाते हैं) और डेनेल लिमिटेड (बोफोर्स गन बनाने वाली कंपनी)।
कैग के पास नालंदा की इस फैक्टरी के निर्माण के संदर्भ में डेनेल को दी गई
66.14 करोड़ रुपये की देनदारी का कोई सबूत नहीं है। यह रकम इस कंपनी को ऑर्डनेंस फैक्टरी बोर्ड (ओएफबी) से प्राप्त हुआ था। हालांकि कैग ने इस बात का खुलासा तो कर दिया है कि रक्षा मंत्रालय ने इस परियोजना को तेजी से कार्यान्वित करने की बात भी कही थी। फरवरी 1999 में जब रक्षा मंत्रालय से इस फैक्टरी को बनाने के लिए हरी झंडी मिल गई थी तो मंत्रालय ने ओएफबी को निर्देश दिया था कि दूसरी परियोजना पर हो रहे खर्चों में से 15 करोड़ रुपये की इस परियोजना को उपलब्ध कराया जाए।शुरूआती तेजी बाद में धीमी रफ्तार में तब्दील हो गयी और इस पर आने वाले खर्च भी बढ़ गए। इसी वजह से विस्तृत परियोजना रिपोर्ट
(डीपीआर) में बताया गया खर्च 531.42 करोड़ रुपये था, जो बढ़कर 847.94 करोड़ रुपये हो गया। पूरे काम के लिए आबंटित राशि का 86 प्रतिशत राशि यानी लगभग 300 करोड़ रुपये का काम तो शुरू भी हो चुका है। इसके बाद और ज्यादा आबंटन की मांग की जा रही है। फर्नांडीज ने अपने लोकसभा क्षेत्र को एक आर्डनेंस फैक्टरी तो दे दी, लेकिन इस फैक्टरी के अंदर कोई दुकान नहीं है, वहां 693 आवासीय क्वार्टर खाली हैं। और तो और इस परियोजना के तहत उस कंपनी से हाथ मिलाया गया है, जो पहले से ही काली सूची में दर्ज हो चुकी है।तााुब तो तब हुआ जब कारगिल युद्ध में बोफोर्स के गोलों क ो इजरायल से मंगाया गया था। हालांकि इसी उद्देश्य से नालंदा में इस फैक्टरी को लगाया जाना था। फील्ड आर्टिलेरी रैशनेलाइजेशन प्लान के तहत
2025 तक 3600 आर्टिलरी गन खरीदने की योजना है। आज सेना के पास 410 बोफोर्स गन हैं और अगली खेप उस समय रुक गई जब 1980 में इसकी खरीद को लेकर घोटाले का पर्दाफाश हो गया था।आज जब नालंदा की यह परियोजना अधर में लटकी हुई है
, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मानना है कि इससे बिहार को काफी फायदा पहुंचता। रक्षा मंत्रालय ने इस परियोजना के अतिरिक्त खर्च के लिए नये प्रस्तावों की बात कही है। हालांकि डेनेल के साथ काम करने की बात पर मंत्रालय ने चुप्पी साध ली है। कैग ने कहा है कि इस परियोजना में जहां 941 करोड़ रुपये खर्च होने थे, वहीं आज इसके खर्च में 67 प्रतिशत की वृद्धि अनुमानित है यानी अब यह खर्च 1570 करोड़ रुपये होने का अनुमान है।