अर्थ का अर्थ के पिछले अंक में हमने लाभकारी ऋणों की चर्चा की थी। इस बार इसी चर्चा को आगे बढ़ाते हुए हम बताएंगे कि अलाभकारी या फंसे हुए ऋण क्या होते हैं।
परिभाषा
अगर देनदार (मुख्य तौर पर बैंक) की ओर से देखें तो ऐसे कर्ज जिनकी वसूली की उम्मीद नहीं के बराबर हो, उन्हें अलाभकारी ऋण कहते हैं। बैंक ऐसे ऋणों को बही खाता बनाते वक्त खर्च के तौर पर दर्ज कर लेते हैं। इन्हें गैर निष्पादित परिसंपत्ति के तौर पर भी जाना जाता है।
ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2006 में भारत के कुल अलाभकारी या फंसे हुए ऋण की राशि 40 अरब डॉलर यानी 1 लाख 60 हजार करोड़ रुपये के करीब थी। इसमें सालाना 3 अरब डॉलर की दर से वृद्धि होने का अनुमान है। कई बार बैंकों के लिए यह निर्धारित कर पाना मुश्किल हो जाता है कि कोई ऋण वास्तव में अलाभकारी ऋण है या नहीं।
सामान्य मानदंडों के अनुसार अगर 3 साल तक किसी ऋण की किश्त बिना किसी ठोस कारण के न चुकाई जाए तो बैंक उसे अलाभकारी ऋण मान लेते हैं। पर इसे किसी आखिरी समय सीमा के रूप में नहीं समझा जा सकता। ऋण किन शर्तों पर लिया गया है, यह भी महत्वपूर्ण है।
लेनदारों की ओर से देखें तो कह सकते हैं कि ऐसे ऋण जिनके इस्तेमाल का उद्देश्य मुनाफा कमाना नहीं हो, जो शौकिया लिए गए हों या फिर जिनसे आय के स्रोत पैदा न हों, उन्हें अलाभकारी ऋण कहते हैं। अलाभकारी ऋण का सबसे बेहतरीन और आम उदाहरण क्रेडिट कार्ड है। इसके साथ एक नुकसानदायक पहलू यह भी है कि क्रेडिट कार्ड पर लगने वाली ब्याज दर काफी अधिक होती है।
कई दफा अलाभकारी ऋण को समझने के लिए एक बारीक सा अंतर ही होता है। उदाहरण के लिए अगर आपने कोई मकान खरीदने या बनवाने के लिए ऋण लिया है, तो आपको फर्नीचर और दूसरे घरेलू उपकरणों के लिए भी पैसे की जरूरत होगी।
ध्यान रखने वाली बात यह है कि मकान के लिए लिया गया ऋण लाभकारी ऋण की श्रेणी में आता है। ऐसा इसलिए क्योंकि देश में जिस दर से अचल संपत्ति की कीमतें बढ़ रही हैं, उसे देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर आगे चलकर आप अपने मकान को बेचते हैं तो आप फायदे में ही रहेंगे। कम से कम आपको घाटा होने की उम्मीद तो नहीं के बराबर है। पर मकान की साज सज्जा, फर्नीचर और घरेलू उपकरणों के दाम समय के साथ घटेंगे ही, उनके बढ़ने की संभावना नहीं के बराबर है।
ऐसे में आपके ऋण पर जो ब्याज लग रहा है, उसका भार आपको ज्यादा महसूस होगा। इसका मतलब यह नहीं कि इन वस्तुओं के लिए आप पैसा ही न खर्च करें, पर इनके लिए उतने ही खर्च का बजट तैयार करें, जितना पैसा आपके पास हो। या फिर इन जरूरतों के लिए आपको कम से कम ऋण लेना पड़े।
फंसे हुए ऋण से पीछा छुड़ाएं
कर्ज से निकलने के लिए पहले ये जरूरी है कि आपको ठीक ठीक पता हो कि आपके ऊपर कितना कर्ज है। तभी आप कर्ज को लाभकारी और अलाभकारी की श्रेणी में बांट सकेंगे। कर्ज की प्रकृति क्या है, इस पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है कि ब्याज दर क्या होगी। अगर ऋण आसानी से लिया जा सकता हो और सुरक्षा राशि के एवज में कोई खास मांग नहीं हो तो आपको इस ऋण के लिए अधिक ब्याज दर चुकानी पड़ेगी।
अगर आप ऋण को चुकाने का विचार कर रहे हैं तो पहले उन ऋणों को चुकता करें जिनके लिए अधिक ब्याज दर चुकानी पड़ रही है। भले ही यह ऋण छोटा ही क्यों न हो। ऊंची ब्याज दरों वाले ऋण को चुकाने के लिए अगर आपको अपेक्षाकृत कम ब्याज दर पर ऋण भी लेना पड़े तो यह घाटे का सौदा नहीं होगा।