बंबई उच्च न्यायालय के फैसले का डेवलपरों ने स्वागत किया है। उनका कहना है कि न्यायालय के इस निर्णय से लागत के दबाव में कमी आएगी, परियोजना की व्यावहारिकता में सुधार होगा और मकान के खरीदारों को कीमतों का बेहतर अनुमान लगा पाने में मदद मिलेगी। न्यायालय ने एक फैसले में कहा है कि संयुक्त विकास समझौतों (जेडीए) में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) सिर्फ संपत्ति हस्तांतरण के चरण में ही लागू होगा।
हालांकि कानूनी विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि इनपुट टैक्स क्रेडिट की पात्रता के मसले पर स्पष्टता की जरूरत है, जिसे उच्चतम न्यायालय के फैसले के साथ देखा जाना चाहिए, क्योंकि इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
द चैंबर्स ऑफ भरत चुघ में पार्टनर मयंक अरोड़ा ने कहा कि जीएसटी संग्रह में केंद्र सरकार की राजकोषीय हिस्सेदारी होती है, ऐसे में इस मामले में उच्चतम न्यायालय में अपील की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
उन्होंने कहा, ‘जीएसटी अधिकारियों ने खुद कहा है कि निर्णय में बरकरार रखी गई व्याख्या कानून की सही स्थिति है, जिससे इस विषय पर मुकदमेबाजी कम हो रही है। लेकिन अंतिम फैसला नहीं हुआ है। जीएसटी संग्रह में केंद्र की राजकोषीय हिस्सेदारी को देखते हुए उच्चतम न्यायालय में अपील की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।’
रस्तोगी चैंबर्स के संस्थापक अभिषेक रस्तोगी ने कहा, ‘यह बहस इस बात तक भी जाती है कि कर का बोझ अगर बरकरार रखा जाता है तो यह जमीन के मालिक को देना होगा या डेवलपर को देना होगा। साथ ही ऐसे अधिकारों का मूल्यांकन किस तरीके से निर्धारित किया जा सकता है जब किसी तथाकथित सेवा के लिए किसी अलग शुल्क पर विचार नहीं किया गया है। उच्चतम न्यायालय के अंतिम निर्धारण के बाद, इनपुट टैक्स क्रेडिट की पात्रता के संबंध में जटिलता की एक और परत सामने आएगी, जिसे कार्यक्षमता और आवश्यकता सिद्धांतों की कसौटी पर परखा जाना होगा।’ उन्होंने कहा कि इस फैसले से डेवलपरों को राहत मिली है, लेकिन तथ्यों पर आधारित जांच की जरूरत होगी, जिससे यह मसला अधिक जटिल हो जाएगा। व्हाइट ऐंड ब्रीफ-एडवोकेट्स ऐंड सॉलिसिटर के पार्टनर प्रतीक बंसल ने कहा कि यह फैसला निर्माण अवधि के दौरान वित्तीय दबाव कम करेगा, जिससे जेडीए मॉडल और अधिक आकर्षक हो जाएगा।खेतान ऐंड कंपनी के पार्टनर आयुष मेहरोत्रा ने कहा कि इससे दोहरे कराधान से बचा जा सकेगा।