आवागमन क्षेत्र में क्रांति को बढ़ावा देने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) पर दांव लगाते हुए हिमाद्रि स्पेशलिटी केमिकल ने ईवी बैटरी के एक प्रमुख घटक लीथियम आयरन फॉस्फेट (एलएफपी) कैथोड एक्टिव सामग्री के लिए देश के पहले वाणिज्यिक संयंत्र की घोषणा की है। ईशिता आयान दत्त के साथ बातचीत में हिमाद्रि स्पेशलिटी केमिकल के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक तथा मुख्य कार्याधिकारी अनुराग चौधरी ने लीथियम आयन बैटरी के घटकों में कंपनी के विविधीकरण के बारे में बताया और इस बारे में भी जानकारी दी कि राजस्व को बढ़ाते हुए यह किस तरह कंपनी को बदल देगा। प्रमुख अंश:
भारत उच्च तापमान वाला उष्णकटिबंधीय देश है, इसलिए सुरक्षा के नजरिये से एलएफपी सबसे अच्छा रसायन है। एनएमसी (निकल-मैंगनीज-कोबाल्ट) के मामले में अगर तापमान अधिक होता है, तो कोबाल्ट ऑक्साइड निकलता है, जो जहरीला होता है और किसी अनहोनी की आशंका हो सकती है। यह चीन, अमेरिका, यूरोप के लिए ठीक है।
उत्पादन लागत भी एक कारक है। एनएमसी कैथोड सामग्री में निकल और कोबाल्ट का इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए लागत काफी ज्यादा होती है। और हमारा मानना है कि ज्यादातर मांग निचले हिस्से या किफायती कार से आएगी। वहां लागत लाभ की वजह से एलएफपी का अधिक इस्तेमाल किया जाएगा और हिमाद्रि इसी पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
आपने 40,000 टन क्षमता वाले संयंत्र के पहले चरण के वाणिज्यिक उत्पादन के लिए 27 से 36 महीने की समयसीमा दी है। क्या आप क्षमता के लिए घरेलू मांग को आकार लेते हुए देख रहे हैं?
हमें इस बारे में ज्यादा स्पष्टता नहीं है कि तब तक इतनी घरेलू मांग होगी या नहीं। लेकिन मुझे इस बात का विश्वास है कि हम वैश्विक कंपनियों को आसानी से यह सामग्री बेचने में सक्षम रहेंगे तथा हम अमेरिका और यूरोप को लक्ष्य बनाएंगे।
अभी तक हमारे पास ऐसा कोई करार नहीं है। लेकिन हम बातचीत कर रहे हैं। जब तक हम वाणिज्यिक उत्पादन शुरू करेंगे, तब तक हम इसे अंतिम रूप दे देंगे।
वे हमारी ग्राहक हैं। पिछले 30 से 35 साल में विश्व में तीन बड़ी क्रांतियां हुई हैं – इलेक्ट्रॉनिक, सोलर, मोबाइल। इन तीनों में भारत कहीं भी नहीं है। हम केवल असेंबलर बने रहे हैं। चौथी जो सदी की क्रांति होगी, वह है इलेक्ट्रिक वाहन और स्थिर ऊर्जा भंडारण। सरकार ने सेल निर्माण के लिए पीएलआई योजना शुरू करके सही दिशा में कदम उठाया है। सेल की 52 प्रतिशत लागत में कैथोड सेल हिस्सा रहता है।
सेल बनाने के लिए आपको घटकों की आवश्यकता होगी। अगर घटकों का आयात किया जा रहा है, तो कोई मूल्यवर्धन नहीं होगा। यहीं पर हिमाद्रि अहम भूमिका निभाएंगी। हम इस क्षमता के साथ आगे बढ़ने वाले प्रथम हैं। इस परियोजना का मुख्य आकर्षण यह है कि यह आत्मनिर्भर भारत की दिशा में अग्रणी कदम है। हम एनोड पर भी काम कर रहे हैं, जिसमें सेल की 15 प्रतिशत लागत होती है।
हां, हम इसी पर काम कर रहे हैं। इसलिए हम अगली पीढ़ी के एनोड की घोषणा करेंगे।
पांच साल में हिमाद्रि आज की कंपनी से बिल्कुल अलग कंपनी होगी। हिमाद्रि में 2,00,000 टन की क्षमता के साथ बड़े स्तर पर कैथोड होगा, जो 100 प्रतिशत क्षमता उपयोग पर 20,000 करोड़ रुपये के राजस्व में तब्दील हो जाएगा। तब हमारे पास विभिन्न प्रकार के एनोड होंगे। मौजूदा कारोबार भी बढ़ रहा है और हिमाद्रि विशेष कार्बन ब्लैक में शीर्ष तीन कंपनियों में से एक होगी।
तो, हिमाद्रि विशेष रसायनों का बड़ा समूह होगी, जिसके अंतर्गत सभी कारोबार होंगे।
हम खनन की दिशा में नहीं जाना चाहते, हम कोई खनन कंपनी नहीं हैं। लेकिन अगर किसी कंपनी को यह मिलता है, तो हम खरीद-फरोख्त करार या अल्पांश हिस्सेदारी कर सकते हैं।