भारत के फार्मास्यूटिकल्स और चिकित्सा उपकरण उद्योग को अभी भी उम्मीद है कि अमेरिका के साथ चल रही व्यापार वार्ता दोनों पक्षों के लिए बेहतर हो सकती है। भारत की प्रमुख दवा कंपनियों के प्रबंध निदेशकों ने कहा कि उनका मानना है कि खुली वार्ता से मदद मिलेगी।
उन्होंने दोनों देशों के बीच व्यापार वार्ता पर अपनी उम्मीदें जताते हुए बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘हम भारत और अमेरिका के बीच दीर्घकालिक मित्रता और आर्थिक साझेदारी को महत्त्व देते हैं। हमारा मानना है कि विश्वास और सहयोग के लिए खुला संवाद और मुद्दों पर आपसी समझ आवश्यक है। हमें विश्वास है कि भू-राजनीतिक चिंताओं या व्यापार नीतियों और शुल्कों से संबंधित किसी भी मतभेद को दोनों देशों के पारस्परिक लाभ के लिए रचनात्मक और सम्मानजनक बातचीत के माध्यम से जल्द ही सुलझा लिया जाएगा।’
छोटे व मझोले आकार की दवा कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक उद्योग संगठन के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘हम अभी इंतजार करेंगे और हालात पर नजर रखेंगे। दवा को बाहर ही रखा जाएगा। हम विस्तृत ब्योरे की प्रतीक्षा कर रहे हैं।’
भारत की दवा कंपनियों के लिए अमेरिका बड़ा बाजार है। भारत के कुल 27.8 अरब डॉलर दवा निर्यात का 31.35 प्रतिशत अमेरिका भेजा जाता है। वहीं भारत 80 करोड़ डॉलर का फॉर्मा फॉर्म्युलेशंस अमेरिका से आयात करता है।
बहरहाल उद्योग को लगता है कि अगर शुल्क लागू भी हो जाता है तो स्थानीय निर्यातकों की प्रतिस्पर्धात्मकता पर कोई ज्यादा असर नहीं पड़ेगा क्योंकि भारत को कम मूल्य वाली जेनेरिक दवाओं के मामले में लाभ मिलेगा। कई सीईओ का मानना है कि जेनेरिक दवाओं को शुल्क के दायरे से बाहर रखा जाएगा क्योंकि इसकी कीमतों में बढ़ोतरी का अमेरिका के आम नागरिकों पर सीधा असर पड़ेगा। गुजरात की एक मझोले आकार की कंपनी के प्रवर्तक ने कहा, ‘चीन जेनेरिक दवाओं के क्षेत्र में उतरने को उत्सुक नहीं है। उसने नए बॉयोटेक पर ध्यान केंद्रित किया है। इसलिए जेनेरिक दवाओं के लिए शायद ही कोई अन्य प्रमुख आपूर्तिकर्ता है।’
ग्रांट थॉर्नटन भारत में पार्टनर और टैक्स कंट्रोवर्सी मैनेजमेंट लीडर मनोज मिश्र ने कह कि दवा अभी 25 प्रतिशत शुल्क में शामिल नहीं हैं, जिसकी घोषणा अमेरिका ने की है। यह भारत के दवा निर्यातकों के लिए बड़ी राहत है। उन्होंने कहा, ‘बहरहाल जिस तरह राष्ट्रपति ट्रंप ने कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया है दवा आयात पर जिस तरह की जांच चल रही है, इसका मतलब यह है कि जोखिम अभी खत्म नहीं हुआ है।’
उधर मेडिकल उपकरण बनाने वालों को लगता है कि चीन के मुकाबले भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता पर कोई असर नहीं पड़ेगा। मेडिकल टेक्नॉलजी एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एमटीएआई) के चेयरमैन पवन चौधरी ने कहा कि कि शुल्क पर रुख नरम होगा क्योंकि अमेरिका का मुख्य प्रतिस्पर्धी भारत नहीं, बल्कि चीन है। उन्होंने कहा, ‘समझदार अमेरिकी प्रशासन भारत को चीन और रूस के पाले में रखने के बजाय अपने पक्ष में रखना चाहेगा। मुझे लगता है कि ऐेसे में शुल्क और एक दूसरे के बाजारों में पहुंच पर एक उचित समझौता हो पाएगा।’
एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री (एआईएमईडी) के फोरम कोऑर्डिनेटर राजीव नाथ ने कहा कि जब तक अधिसूचना द्वारा कोई निश्चित घोषणा नहीं की जाती, तब तक टिप्पणी करना जल्दबाजी और अटकलबाजी होगी।