ईरान पर इजरायल के हमलों के कारण अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आया है। आशंका है कि आने वाले दिनों में यह संघर्ष और बढ़ेगा, जिससे अशांत पश्चिम एशियाई क्षेत्र में वैश्विक तेल आपूर्ति पर दबाव बढ़ेगा और कच्चा तेल महंगा हो जाएगा। यदि हालात इसी अनुमान के मुताबिक आगे बढ़े तो इससे देश की ऊर्जा सुरक्षा बाधित हो सकती है।
ऐसा इसलिए, क्योंकि भारत अपने कच्चे तेल की 85 प्रतिशत से अधिक जरूरत आयात से पूरी करता है। हालांकि इससे कुछ हद तक ही असर पड़ेगा, क्योंकि भारत ने सफलतापूर्वक अपने तेल आयात के स्रोतों का विस्तार कर लिया है और जरूरत के हिसाब से इन स्रोतों का उपयोग किया जाएगा।
भारत के कुल आयात मूल्य में कच्चे तेल के आयात की हिस्सेदारी अप्रैल, 2018 से बीते 7 वर्षों के दौरान तमाम उतार-चढ़ाव के बीच कम होती गई है। वित्त वर्ष 19 से अब तक भारतीय बास्केट के तेल की कीमतें औसत वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों के करीब ही रही हैं।
यूक्रेन के साथ युद्ध के कारण प्रतिबंध लगने के बाद रूस ने रियायती कीमतों पर अपना कच्चा तेल बेचना शुरू किया था। इस मौके का फायदा उठाते हुए कच्चा तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी बढाई गई। दूसरी ओर, पश्चिम एशिया से आयात कम हो गया।