भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के कर्मचारियों द्वारा तैयार एक स्टडी रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि हाल के महीनों में जारी लघु एवं मझोले उद्यमों के आईपीओ (SME IPOs) में लिस्टिंग के समय तेज बढ़त देखने को मिलती है, लेकिन कुछ ही समय में रिटर्न नेगेटिव हो जाते हैं। यह गिरावट उन आईपीओ में और ज्यादा स्पष्ट रूप से देखी गई है जिनमें खुदरा निवेशकों की मजबूत भागीदारी रही है।
स्टडी में कहा गया है कि कई एसएमई कंपनियां लिस्टिंग के बाद अपने शेयरों पर पॉजिटिव रिटर्न बनाए रखने में असफल रही हैं। इन शेयरों में खुदरा निवेशकों की बढ़ती रुचि और तेज लिस्टिंग गेन और उसके बाद गिरते दामों के इस पैटर्न ने बाजार नियामक की चिंता बढ़ा दी है। इस स्थिति को देखते हुए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने एसएमई आईपीओ बाजार में स्थिरता लाने के लिए नए नियामकीय उपायों की तैयारी शुरू कर दी है।
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स्टडी में कहा गया है कि “कुछ शेयरों की भारी मांग और सीमित आवंटन के चलते निवेशक जब शेयर पाने की होड़ में लग जाते हैं, तो उनके दाम कृत्रिम रूप से बढ़ जाते हैं।” भाग्यश्री चट्टोपाध्याय और श्रोमोना गांगुली ने इस स्टडी रिपोर्ट को लिखा है। उन्होंने बताया कि खुदरा निवेशक तेज लिस्टिंग गेन की उम्मीद में अक्सर कंपनियों के मूलभूत पहलुओं (fundamentals) को नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे शेयरों का मूल्यांकन (valuation) वास्तविक से कहीं अधिक बढ़ जाता है।
स्टडी के अनुसार, वित्त वर्ष 2024 और वित्त वर्ष 2025 में लिस्टेड 100 एसएमई कंपनियों के प्राइस-टू-अर्निंग (P/E) रेश्यो की तुलना उनके संबंधित उद्योगों के औसत से करने पर कई शेयरों में ओवर वैल्यूएशन (अधिक मूल्यांकन) के संकेत मिले हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग 20 फीसदी शेयरों का पी/ई रेश्यो अपने उद्योग साथियों की तुलना में काफी अधिक गुना पाया गया है।
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स्टडी में कहा गया है कि, “एसएमई आईपीओ (SME IPOs) अनुकूल परिस्थितियों में अच्छे रिटर्न दे सकते हैं, लेकिन मंदी के दौरान इनमें उच्च अस्थिरता और जोखिम रहता है, इसलिए सावधानीपूर्वक जांच-पड़ताल (due diligence) बेहद जरूरी है। निवेशकों को निवेश करने से पहले कंपनी के मूलभूत पहलू (fundamentals), विकास की संभावनाओं (growth prospects) और जोखिम कारकों (risk factors) का ध्यानपूर्वक मूल्यांकन करना चाहिए।”
स्टडी के अनुसार, भारत में एसएमई आईपीओ बाजार ने वित्त वर्ष 2024 और वित्त वर्ष 2025 में खुदरा निवेशकों की भागीदारी और अनुकूल बाजार भावना के चलते मजबूत तेजी देखी।
आंकड़ों के अनुसार, अपनी स्थापना के बाद से BSE और NSE के SME सेगमेंट में गतिविधियों में व्यापक रूप से वृद्धि देखी गई है, सिवाय 2018-2021 के दौरान देखी गई एक संक्षिप्त मंदी के दौर के। लिस्टिंग वित्त वर्ष 2012 में ₹7.25 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2017 में ₹824.64 करोड़ हो गई। वित्त वर्ष 2018 में, जारी किए गए शेयरों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई और कुल ₹2,213.39 करोड़ हो गए। बाद के वर्षों में उतार-चढ़ाव रहा, और महामारी के कारण वित्त वर्ष 20 और वित्त वर्ष 21 में गतिविधि कम रही।
हालांकि, महामारी के बाद आर्थिक सुधार के साथ, कई SMEs ने पूंजी बाजार में प्रवेश किया। वित्त वर्ष 2024 में तेजी आई, जिसमें 204 नए इश्यू खुले और कुल ₹5,971.19 करोड़ का फंड जुटाया गया।
एसएमई आईपीओ में इस तेजी का मुख्य कारण खुदरा निवेशकों की मजबूत रुचि है।
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स्टडी में खुलासा हुआ है कि, “भारतीय शेयर बाजार अब युवाओं के दबदबे में है, जिनकी उम्र 30 वर्ष से कम है। मार्च 2019 में यह उम्र समूह कुल निवेशक आधार का केवल 22.6 फीसदी था। जुलाई 2025 तक इसका हिस्सा बढ़कर 38.9 फीसदी हो गया, जो शेयर बाजार में युवाओं की भागीदारी में तेजी को दर्शाता है।”
स्टडी ने एक और महत्वपूर्ण ट्रेड उजागर किया है। वित्त वर्ष 2024 और वित्त वर्ष 2025 में SME आईपीओ बाजार में दोनों वर्षों में नए पूंजी इश्यू (fresh capital issue) का वर्चस्व देखा गया, जो कुल इश्यू का 90 फीसदी से ज्यादा था। इसका मतलब है कि कंपनियां ग्रोथ और ऑपरेशन संबंधी जरूरतों के लिए फंड जुटा रही हैं, न कि मौजूदा शेयरधारकों को बाहर निकलने का मौका देने के लिए।
स्टडी के अनुसार, वित्त वर्ष 2024 और वित्त वर्ष 2025 में SMEs द्वारा फंड जुटाने का प्रमुख कारण पूंजी बढ़ाना या वर्किंग कैपिटल की जरूरतें थी। इसका मतलब है कि कंपनियां लिक्विडिटी सुधारने और संचालन संबंधी आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त फंड सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। स्टडी में कहा गया कि दूसरा सबसे बड़ा उद्देश्य विस्तार, नए प्रोजेक्ट या प्लांट और मशीनरी में निवेश था, जो विकास और क्षमता निर्माण पर जोर को दर्शाता है।
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स्टडी में यह भी बताया गया कि सामान्य कॉरपोरेट उद्देश्यों के लिए आवंटित फंड ने कंपनियों को विविध व्यावसायिक जरूरतों (miscellaneous business needs) के लिए लचीलापन प्रदान किया, जबकि एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण हिस्सा फाइनैंशियल लीवरेज कम करने के लिए इस्तेमाल हुआ, जो फंडिंग स्रोतों को डायवर्स बनाने के प्रयासों को उजागर करता है।