अमेरिका स्थित परिसंपत्ति प्रबंधन कोष ओकट्री कैपिटल दिवालिया आवासीय वित्तीय कंपनी डीएचएफएल के लिए सबसे अधिक बोली लगाने वाली कंपनी के रूप में उभरकर सामने आई है। इसने पूरी कंपनी के लिए 36,646 करोड़ रुपये की पेशकश की है जिसमें कर्जदाताओं के लिए 11,646 करोड़ रुपये की अग्रिम राशि और विलंबित भुगतान भी शामिल हैं।
हालांकि पीरामल समूह ने पूरी कंपनी के लिए अग्रिम राशि में 10,000 करोड़ रुपये की पेशकश की है और विलंबित भुगतान में शेष 35,550 करोड़ रुपये का प्रस्ताव रखा है। कंपनी ने 26,500 करोड़ रुपये की दर से केवल खुदरा पोर्टफोलियो के लिए एक अन्य पेशकश भी की है। अलबत्ता अदाणी समूह ने चौथे दौर में आक्रामक बोली नहीं लगाई और इस दौड़ में तीसरे स्थान पर रहा।
ये सभी प्रस्ताव कई शर्तों के साथ तैयार किए गए हैं और बैंकों को इन प्रस्तावों का शुद्ध वर्तमान मूल्य लेते हुए इन सभी पेशकशों पर ध्यान देना होगा। उम्मीद की जा रही है कि कर्जदाता दिसंबर के तीसरे सप्ताह में शीर्ष दो प्रस्तावों पर मतदान करने के लिए
बैठक करेंगे।
इस घटनाक्रम की करीब से जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने कहा कि इन प्रस्तावों के अनुसार ओकट्री डीएचएफएल द्वारा आयोजित जीवन बीमा हिस्सेदारी को एक ट्रस्ट में रखेगी और बिक्री से होने वाली 1,000 करोड़ रुपये की प्राप्ति के लिए विनियामक की मंजूरी मिलने के बाद यह कर्जदाताओं के पास जाएगी। पिरामल समूह ने कर्जदाताओं को 200 करोड़ रुपये की बीमा हिस्सेदारी की बिक्री प्राप्ति के प्रस्ताव का फैसला किया है।
एक कर्जदाता सूत्र ने कहा कि पीरामल और ओकट्री की पेशकशों के बीच बहुत ज्यादा अंतर नहीं है, क्योंकि दोनों ही डीएचएफएल के बही में नकदी पर अर्जित 3,000 करोड़ रुपये का ब्याज शामिल कर रहे हैं।
इसके अलावा, जहां एक ओर पीरामल समूह पूरी कंपनी के लिए 32,350 करोड़ रुपये की पेशकश कर रहा है, वहीं दूसरी ओर ओकट्री 32,646 करोड़ रुपये की पेशकाश कर रही है। इन दोनों में से किस के साथ सौदा किया जाए, इस बात का फैसला करना बैंकों के लिए मुश्किल काम है। डीएचएफएल के पास अपने बही पर 12,000 करोड़ रुपये की नकदी है और अग्रिम नकदी के सभी प्रस्ताव इसी नकदी के आधार पर तैयार किए गए हैं।
हालांकि अदाणी समूह ने तीसरे दौर की 29,860 करोड़ रुपये की बोली के मुकाबले कम बोली लगाने का फैसला किया है। एससी लोवी, जिसने कॉरपोरेट ऋण पोर्टफोलियो के लिए 2,300 करोड़ का सशर्त प्रस्ताव दिया था, उसने चौथे दौर में कोई प्रस्ताव नहीं दिया।
एक कर्जदाता सूत्र ने कहा कि उन्हें सभी प्रस्तावों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करना होगा, क्योंकि ओकट्री जो विदेशी कंपनी है, उसने विलंबित भुगतान किया है। सूत्र ने कहा कि हमें यह देखना होगा कि अगर कल को ओकट्री भारत से बाहर निकलने का फैसला करती है, तो उसकी ओर से क्या गारंटी दी जा रही है। पीरामल और अदाणी के मामले में कर्जदाताओं के पास अन्य उपाय हैं, क्योंकि वे स्थानीय कंपनियां हैं।
