लार्सन ऐंड टुब्रो (एलऐंडटी) के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक एस एन सुब्रह्मण्यन ने कहा है कि कंपनी डेटा केंद्र और रक्षा विनिर्माण के क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ा रही है। साथ ही परमाणु और ताप विद्युत क्षेत्र में उभरते अवसरों पर भी उसकी सतर्क नजर है।
इंजीनियरिंग और निर्माण क्षेत्र की इस दिग्गज कंपनी ने डेटा केंद्रों में लगभग 2,200 करोड़ रुपये का निवेश किया है। इनमें से 32 मेगावॉट क्षमताएं पहले से ही चालू हैं। तमिलनाडु के कांचीपुरम में 30 मेगावॉट क्षमता वाली एक साइट भी इनमें शामिल है जो भारत में अपनी तरह की सबसे बड़ी साइटों में से एक है। कंपनी थर्ड-पार्टी स्टोरेज और क्लाउड इन्फ्रास्ट्रक्चर की बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए इसे लगभग 100 मेगावॉट तक करने की योजना बना रही है।
सुब्रह्मण्यन ने रविवार को एक साक्षात्कार में कहा, ‘ज्यादातर भारतीय कंपनियां अपने परिसर में ही डेटा संग्रहित करती रही हैं। अब विकल्प यह है कि इसे बाहरी डेटा केंद्रों पर जमा किया जाए और एमेजॉन, गूगल या माइक्रोसॉफ्ट की क्लाउड सेवाओं का उपयोग किया जाए।’ उन्होंने कहा, ‘हमारे पास थर्ड-पार्टी कंपनियों के लिए लगभग 32 मेगावॉट क्षमता के डेटा केंद्र हैं और 30 मेगावॉट क्षमता वाला कांचीपुरम सबसे बड़ा केंद्र है।’
कंपनी ने अमेरिकी चिप निर्माता एनवीडिया कॉर्प के साथ काम करने वाले एक भारतीय स्टार्टअप ई2ई में हिस्सेदारी के जरिये ग्राफिक प्रोसेसिंग यूनिट (जीपीयू)-आधारित क्लाउड सेवाओं में भी प्रवेश किया है। सुब्रह्मण्यन ने कहा, ‘चेन्नई में हमारे पास एनवीडिया जीपीयू से लैस एक डेटा सेंटर की दो या तीन मंजिलें हैं जो ग्राहकों को क्लाउड सेवाएं मुहैया कराती हैं। यह अभी भी एक बहुत ही नया व्यवसाय है। लेकिन हमने इसमें लगभग 2,200 करोड़ रुपये का निवेश किया है और हम इसे मजबूत नेतृत्व के साथ आगे बढ़ा रहे हैं।’
एलऐंडटी वैश्विक क्षमता केंद्रों (जीसीसी) में आ रही तेजी का लाभ उठाने के लिए भी खुद को तैयार कर रही है क्योंकि वैश्विक कंपनियां भारत में अपने तकनीकी परिचालन का विस्तार कर रही हैं। सुब्रह्मण्यन ने कहा, ‘पहले, कंपनियां आईटी सेवा प्रदाताओं को काम सौंपती थीं। अब कई सीआईओ, खासकर अमेरिका में रहने वाले भारतीय, अपने प्रबंधन से कह रहे हैं कि तीसरे पक्षों पर निर्भर क्यों रहें? हम अपने खुद के ही जीसीसी बनाएं।’उन्होंने कहा कि एलऐंडटी निर्माण के अलावा भी इस तरह के केंद्रों का सह-विकास कर सकती है। उन्होंने कहा, ‘कभी-कभी हम जीसीसी स्थापित करने में उनकी मदद के लिए सहयोग करते हैं और समय के साथ वे इसे अपने हाथ में ले सकते हैं या हमारे साथ मिलकर चला सकते हैं। ये ऐसे व्यावसायिक मॉडल हैं जो उभर रहे हैं और हम इनका लाभ उठाने की उम्मीद करते हैं।’
अध्यक्ष ने कहा कि रक्षा और एयरोस्पेस एलऐंडटी की विकास रणनीति के केंद्र में बने हुए हैं। कंपनी ने अपनी रक्षा शाखा का नाम बदलकर ‘प्रिसिजन इंजीनियरिंग’ कर दिया है ताकि न केवल सैन्य कार्यक्रमों में बल्कि भारत के अंतरिक्ष अभियानों में भी उसकी भागीदारी को दर्शाया जा सके। हालांकि भारत ने परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को निजी भागीदारी के लिए खोलने में दिलचस्पी दिखाई है। लेकिन सुब्रह्मण्यन का कहना है कि मौजूदा कानून अभी भी बाधा बने हुए हैं। उन्होंने कहा, ‘मौजूदा समय में परमाणु संयंत्र केवल परमाणु ऊर्जा निगम ही लगा सकता है। कानून में एक लायबिलिटी का प्रावधान है जिससे किसी भी निजी बैलेंस शीट के लिए जोखिम उठाना असंभव है।’उन्होंने कहा कि सुधारों पर चर्चा चल रही है, लेकिन अभी भी अनिश्चितता बरकरार है।