पूरे विश्व की कुल ऊर्जा का 40 प्रतिशत उपयोग मकानों में होता है और अगर अप्रत्यक्ष तौर पर सीमेंट के इस्तेमाल को भी जोड़ दिया जाए तो यह हिस्सा बढ़कर आधा से ज्यादा हो जाएगा।
बिजनेस फॉर इनवॉयरनमेंट (बी4ई) के अंतिम दिन इस तरह के वक्तव्य दिए गए।पूरे विश्व की आधी आबादी शहरों में रहती है और ये शहरी क्षेत्र पूरे कार्बन का तीन-चौथाई हिस्सा उत्सर्जित करते हैं। ज्यादातर उत्सर्जन मकानों और यातायात से होता है। इसके बावजूद बिल्डिंग उद्योग से जुड़े शिल्पकार, मेकेनिकल इंजीनियर, डेवलपर और यहां तक कि उपभोक्ता भी इस ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं।
विशेषज्ञों की राय है कि इस पर काबू करने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे। यूरोपीय संघ के दो सदस्य फ्रांस और जर्मनी ने इस संबंध में उल्लेखनीय कार्य किए हैं। इन दोनों देशों ने एक उपयुक्त मानक तय किए हैं तथा मकानों और वाहनों में गैस गजलर्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। इन देशों ने ऐसी नीतियां बनाई हैं जिससे अगले दशक तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित करने वाले वाहनों को पूरी तरह से हटा लिया जाएगा।
इस सम्मेलन में एक और सुझाव दिया गया कि जब 2012 में क्योटो प्रोटोकॉल का पहला चरण पूरा हो जाएगा तो उद्योगों को जो कार्बन क्रेडिट दिया जाएगा उसके तहत कार्बन गैसों के उत्सर्जन को कम करने की प्रक्रिया शुरु होगी और इसे बिल्डिंग उद्योग के संदर्भ में आसानी से लागू किया जाना चाहिए। इस कार्बन क्रे डिट की योजना के तहत 2000 परियोजनाएं चल रही है लेकिन बिल्डिंग क्षेत्र की मात्र 10 परियोजनाएं ही इसके अंतर्गत आ पाई है।
सम्मेलन में इस बात का भरोसा जताया गया कि आने वाले समय में अक्षय ऊर्जा स्रोत की मांग बढ़ जाएगी। इस सम्मेलन के सह प्रायोजक ,संयुक्त राष्ट्र इनवॉयरनमेंट प्रोग्राम, के कार्यकारी निदेशक एकीम स्टीनर ने कहा कि वर्ष 2007 में अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में 160 अरब डॉलर का निवेश हो चुका है। डेनमार्क जैसे देश अपनी कुल ऊर्जा जरूरतों का पांचवां भाग पवन ऊर्जा से प्राप्त कर रही है।
मेरिल लिंच ने 3 अरब डॉलर का एक ग्रीन फंड जारी किया। इससे पता चलता है कि ये वित्तीय क्षेत्र किस तरह इन क्षेत्रों में एक बेहतर भविष्य की तलाश कर रहे हैं।हालांकि इस सम्मेलन में यह कहा गया कि बिजली के क्षेत्र में दी जा रही सब्सिडी के कारण बाजार में अक्षय ऊर्जा स्रोत का रास्ता थोड़ा मुश्किल जरूर है।
इस तरह के वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के संदर्भ में उपभोक्ता और बनाने वाले के बीच भी एक समन्वय का अभाव होता है और यही वजह है कि सौर, पवन, ज्वार-भाटीय और समुद्रीय ऊष्मीय ऊर्जा जैसे अक्षय ऊर्जा स्रोत उतने ज्यादा लोकप्रिय नहीं हो रहे हैं।
इस सम्मेलन में भाग लेने वाले विशेषज्ञों क ो इस बात पर हैरानी हो रही थी कि बायो-ईंधन पर इतना ध्यान क्यों दिया जा रहा है जबकि यह ऊर्जा संक ट का समाधान नही है। विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया कि किस तरह एक मीटर तरंग ऊर्जा, पवन ऊर्जा से कई हजार गुना ताकतवर है।जबकि बेकार हो चुके सेल्युलोज से बायो एथनॉल को भविष्य का ऊर्जा स्रोत माना जा रहा है लेकिन यह सफल नहीं हो पाएगा।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कार्बन क्रेडिट के बदले कार्बन कर की व्यवस्था की जानी चाहिए। यूएन ग्लोबल इंपैक्ट के कार्यकारी निदेशक जॉर्ज केल ने कहा कि इन कार्यक्रमों का सही तरीके से सफल नही होने के पीछे सरकार की अकर्मण्यता जिम्मेवार है।
उन्होंने कहा कि इस वैश्विक समस्या का समाधान वैश्विक स्तर पर ही निकालना होगा। लेकिन उनका मानना है कि संयुक्त राष्ट्र का यह तंत्र अपनी संरचना को लेकर ही मजबूत है और देश की सरकारों को इसे सफल बनाने के लिए ईमानदार पहल करने की जरूरत है।
नई कोशिश
पूरे विश्व की आधी आबादी शहरों में रहती है और ये शहरी क्षेत्र पूरे कार्बन का तीन-चौथाई हिस्सा उत्सर्जित करते हैं।
बायोईंधन ऊर्जा संकट का समाधान नहीं, फिर भी ज्यादातर देशों का इस ओर झुकाव है विशेषज्ञों की चिंता का कारण