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चिकित्सा अनुसंधान में आईआईटी ने किया नई तकनीक का प्रयोग

Last Updated- December 12, 2022 | 2:38 AM IST

मई 2021 में मद्रास के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान ने मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के सहयोग से 3डी-पिं्रटिड बायोरिएक्टर की मदद से ऑर्गनॉइड्स नामक मानव मस्तिष्क के ऊतकों के विकास की घोषणा की थी। इस परियोजना का उद्देश्य यह निरीक्षण करना था कि ये ऊतक कृत्रिम वातावरण में किस तरह बढ़ते हैं तथा कैंसर जैसे रोगों और अल्जाइमर तथा पार्किन्संस जैसे तंत्रिका संबंधी विकारों के लिए चिकित्सा संबंधी खोजों में संभावित रूप से तेजी लाने के लिए कोई तकनीक विकसित करनी थी।
इस तकनीक के बारे में बताते हुए आईआईटी मद्रास के इनक्यूबेटेड स्टार्टअप इस्मो बायो-फोटोनिक्स के मुख्य कार्याधिकारी इकराम खान एसआई ने कहा कि यह आविष्कार कोशिकाओं को ऊष्मायन कक्ष से कल्पना करने वाले कक्ष में भौतिक रूप से स्थानांतरित करने की जरूरत को खत्म कर देता है, जैसा कि मौजूदा सेल कल्चर प्रोटोकॉल के मामले में है। आईआईटी मद्रास के पूर्व छात्र ने कहा कि यह उन्हें निर्बाध रूप से बढऩे में सक्षम बनाता है, जिससे अधिक सटीक परिणाम मिलते हैं और संदूषण खत्म हो जाता है।

उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति अल्जाइमर कोशिकाओं की सैकड़ों प्रतियां बना सकता है और इस बात को ध्यान में रखते हुए कि अलग-अलग रोगी एक ही बीमारी के लिए अलग-अलग दवाओं के लिए अलग-अलग प्रतिक्रिया करते हैं, किसी खास मरीज के लिए सबसे उपयुक्त दवा तक पहुंचने के लिए उसका सौ अलग-अलग दवाओं पर नियोजन किया जा सकता है। इसके अलावा मई में आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने कोविड -19 वायरस में एक प्रमुख प्रोटीन की संरचना के एक हिस्से पर प्रकाश डाला, जो इसके कार्य के तरीके, रोग के प्रसार और गंभीरता तथा एंटीवायरल चिकित्सका विकास में इसकी भूमिका को समझने में मदद करता है। और जून में आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज में एसोसिएट प्रोफेसर, पी. मंडल के नेतृत्व में एक टीम ने अत्यधिक चीनी के उपभोग और फैटी लीवर रोग के बीच अंतर्निहित जैव रासायनिक संबंध को स्थापित करने के लिए चूहों के मॉडल के साथ अनुपूरक प्रयोगात्मक दृष्टिकोण का इस्तेमाल किया था। यह अंतनिर्हित जैव रासायनिक संबंध एक-तिहाई भारतीय आबादी को प्रभावित करता है और अगर समय पर ध्यान नहीं दिए जाने पर सिरोसिस का कारण बन सकता है।
आईआईटी मद्रास के जैव-प्रौद्योगिकी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर हिमांशु सिन्हा के नेतृत्व में एक टीम ने हरियाणा के गुरुग्राम में 8,000 महिलाओं में समय से पूर्व बच्चों के जन्म के जोखिम को कम करने और पूर्वानुमान लगाने के लिए फरीदाबाद के ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट की शिंजिनी भटनागर के साथ सहयोग किया। इसमें शामिल महिलाओं का उनकी पहली तिमाही – गर्भावस्था के पहले तीन महीने – से नामांकन किया गया था और प्रसव के बाद छह महीने तक अल्ट्रासाउंड, प्रसूति और क्लीनिकल ​​​​रिपोर्ट जैसे चिकित्सा आंकड़ों के साथ-साथ परिवार के आकार और आय जैसे सामाजिक-आर्थिक मानकों का उपयोग करते हुए उनकी निगरानी की जा रही थी। डेटा विज्ञान और मशीन लर्निंग (एमएल) पर आधारित एक प्रारूप तैयार करने के लिए पोषण स्तर पर भी नजर रखी गई थी। यह प्रारूप सामान्य प्रसूति अस्पताल में पारंपरिक अल्ट्रासाउंड के मुकबाले महिलाओं में समय से पूर्व प्रसव के जोखिम की पहचान करेगा और प्रसव की तारीख में देरी होने पर मार्गदर्शन प्रदान करेगा। आईआईटी और देश के अन्य इंजीनियरिंग संस्थानों द्वारा किए जा रहे व्यापक चिकित्सा अनुसंधान के ये केवल कुछेक उदाहरण हैं।
भोपाल के भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान के शोधकर्ताओं ने ऐसी तकनीक का आविष्कार किया है, जो प्रोटीन के विशिष्ट वर्गों में सक्रिय अणुओं को पहुंचा सकती है। यह नवाचार, जो पिछले कुछ वर्षों के दौरान प्रोटीन के अणुओं की इंजीनियरिंग पर किए जाने वाले अध्ययन का परिणाम, ने इन आणविक मशीनों की रासायनिक विशेषताओं में विस्तृत ज्ञान प्राप्त किया है। इस ज्ञान के साथ उन्होंने प्रोटीन की सटीक इंजीनियरिंग के लिए पहला मॉड्यूलर प्लेटफॉर्म तैयार किया है। तो, भारत के इंजीनियरिंग कॉलेज उस क्षेत्र में कैसे कदम रख रहे हैं, जिसे भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) जैसे बड़े संस्थानों के संरक्षक और सीएमसी वेलूर, एम्स, मुंबई के केईएम जैसे बड़े अस्पतालों और कई निजी स्वास्थ्य देखभाल करने वाले अस्पतालों के मेजबान के रूप में माना जाता है? सिन्हा कहते हैं कि चिकित्सा अनुसंधान सबसे चुनौतीपूर्ण डेटा पेश करता करता है और कृत्रिम मेधा (एआई), मशीन लर्निंग (एमएल) तथा इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) जैसी नए जमाने की तकनीकों के अनुप्रयोग के लिए उपजाऊ जमीन प्रदान करता है। वे बताते हैं कि क्लीनिकल ​​अनुसंधान संस्थान बड़ी मात्रा में आंकड़े सृजित करते हैं, लेकिन वे उन आंकड़ों की गहराई से न्याय करने में सक्षम नहीं हैं। इसमें एआई और एमएल एल्गोरिदम जैसी प्रौद्योगिकियां उन स्वरूपों की पहचान करती हैं, जिसमें पारंपरिक तकनीकों को दिक्कत होती है।
वित्त पोषण और मुद्रीकरण

सिन्हा का कहना है कि कुछेक चिकित्सा अनुसंधानकर्ताओं को केंद्र सरकार से पैसा मिलता है। उदाहरण के लिए समय पूर्व प्रसव परियोजना को भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की गई है इसे पांच अटल जय अनुसंधान बायोटेक मिशनों – उन्नति (अंडरटेकिंग नैशनली रेलेवैंट टेक्नोलॉजी इनावेशन) में से एक के रूप में नामित किया गया है। इस कार्यक्रम के तहत विकसित किए गए प्रारूपों पर मान्यता मिलने के बाद मुद्रीकरण के लिए विचार किया जा सकता है।
पिछले साल आईआईटी मद्रास से स्नातक करने वाले खान कहते हैं कि मानव मस्तिष्क के ऊतकों पर उनकी परियोजना को आईआईटी मद्रास में सेंटर फॉर कम्प्यूटेशनल ब्रेन रिसर्च (सीसीबीआर) के लिए फंड के माध्यम से इन्फोसिस के सह-संस्थापक क्रिस गोपालकृष्णन द्वारा समर्थन किया गया है। परिणामों के सत्यापन की दिशा में एमआईटी से भी काफी वित्तीय सहायता मिली है। वर्ष 2019 में शुरू हुई यह परियोजना वर्ष 2020 की शुरुआत में पूरी हुई थी।

मुद्रीकरण के संबंध में खान कहते हैं कि उनका नजरिया यह है कि पहले प्रौद्योगिकी को विदेश ले जाया जाए और एक बार जब यह वहां व्यावसायिक रूप से स्थापित हो जाए, तो वह इसे भारत लाने पर विचार करेंगे। उन्होंने कहा कि वह पहले से ही यूनिवर्सिटी ऑफ बफेलो और कुछ अन्य लोगों के साथ बातचीत कर रहे हैं।
 

First Published - July 17, 2021 | 2:25 AM IST

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