भारतीय बीमा क्षेत्र के उदारीकरण के करीब ढाई दशक बाद शनिवार को अपने आठवें बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश के बीमा क्षेत्र को 100 प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) के लिए खोलने की घोषणा की। इस समय भारत के बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा 74 फीसदी है।उद्योग के सूत्रों का मानना है कि इस कदम से विदेशी बीमा कंपनियों को अब देश में अपनी मौजूदगी के लिए आसान रास्ता मिल जाएगा। उन्हें पहले भारत में कारोबार के लिए किसी भारतीय इकाई के साथ साझेदारी करनी पड़ती थी।
अपने भाषण में सीतारमण ने कहा, ‘यह बढ़ी हुई सीमा उन कंपनियों के लिए लागू होगी जो अपना पूरा प्रीमियम भारत में ही निवेश करेंगी। विदेशी निवेश से जुड़ी मौजूदा सुरक्षा और शर्तों की समीक्षा की जाएगी और उन्हें सरल बनाया जाएगा।’ निवेश मानदंडों के अनुसार भारत की बीमा कंपनियां आमतौर पर अपने धन का निवेश भारत में ही करती हैं। हालांकि उनके पास विदेशों में निवेश करने का भी एक विकल्प होता है।
उद्योग के जानकारों का कहना है कि इसकी वजह से फाइन प्रिंट की व्यापक समीक्षा (विशेष रूप से इस सिलसिले में कि पूरा प्रीमियम भारत में ही निवेश करना होगा) आवश्यक है।
बीमा उद्योग को 100 प्रतिशत एफडीआई के लिए खोलने का निर्णय ऐसे समय लिया गया है जब बीमा नियामक वर्ष 2047 तक ‘सभी के लिए बीमा’ की जरूरत पर जोर दे रहा है। इसके लिए नई कंपनियों के प्रवेश या मौजूदा कंपनियों में पूंजी विस्तार के माध्यम से इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण पूंजी प्रवाह की आवश्यकता है।
पीडब्ल्यूसी में इंडिया
फाइनैंशियल सर्विसेज एडवाइजरी के पार्टनर ऐंड लीडर जयदीप के रॉय ने कहा, ‘भारतीय बाजार में आने की संभावना तलाश रहीं विदेशी बीमा कंपनियों को अब भारतीय साझेदार की तलाश नहीं करनी पड़ेगी और वे सीधे ही अपना कारोबार स्थापित कर सकेंगी। इससे भारतीय बीमा बाजार में उनके प्रवेश करने में लगने वाला समय कम से कम दो वर्ष कम हो जाएगा। साथ ही संयुक्त उद्यम के लिए बातचीत और हस्ताक्षर में लगने वाला समय भी बच जाएगा।’
दिसंबर 2014 में सरकार ने इस क्षेत्र में एफडीआई सीमा 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी की थी। करीब सात साल बाद सरकार ने यह सीमा फिर से बढ़ाते हुए इसे 74 फीसदी करने की अनुमति दी थी। इस बात पर मतभेद हैं कि क्या इस कदम से अपेक्षित निवेश आया है। उद्योग विशेषज्ञों के अनुसार व्यवसाय संचालन पर पूर्ण स्वायत्तता के बिना और कंपनी की संस्कृति और लोकाचार के साथ तालमेल रखने वाले भारतीय भागीदार को खोजने की चुनौतियों को देखते हुए इस क्षेत्र में निवेश आकर्षित करना मुश्किल हो गया है।
सरकारी आंकड़े के अनुसार, वर्ष 2015 से बीमा क्षेत्र को एफडीआई के तौर पर 54,000 करोड़ रुपये की रकम प्राप्त हुई। वर्ष 2015 में सरकार ने इस क्षेत्र में एफडीआई नियमों में बदलाव किया था।