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सिल्क सिटी भागलपुर के रेशम का घुट रहा दम, ट्रंप टैरिफ से बढ़ी गर्दिश

भागलपुर की पहचान तो रेशम से ही हुई थी, जिसके बाद यहां सिल्क की साड़ियां बनने लगीं। मगर अब यहां पर्दे, सोफा कवर, चादर और कुर्ते से लेकर लिनेन की शर्ट तक सब कुछ बन रहा है।

Last Updated- October 26, 2025 | 10:15 PM IST

देश-दुनिया में अपने रेशम के लिए बिहार का भागलपुर इतना मशहूर है कि इसे सिल्क सिटी का नाम ही दे दिया गया है। मगर पिछले कुछ साल में इसके सिल्क की चमक धुंधली पड़ी है क्योंकि कारोबार लगातार घटता जा रहा है। न तो पहले जैसा कारोबार है और न ही निर्यातक हैं, जिससे भागलपुर का यह उद्योग बिचौलियों के चंगुल में आ गया है।

कड़ी टक्कर के बीच काफी कारोबार दूसरे राज्यों में चला गया और शुल्क बढ़ाने के अमेरिकी फैसले ने तो इस सिल्क सिटी के बुनकरों और उद्यमियों की दुर्दशा ही कर दी है। शुल्क बढ़ने से उत्पाद महंगे हो गए और भागलपुर के सिल्क की मांग अमेरिका में काफी कम हो गई। अब भागलपुर से अमेरिका को निर्यात लगभग ठप हो गया है और करोड़ों रुपये के निर्यात ऑर्डर अटक गए हैं। इसका फायदा उठाकर अमेरिकी खरीदार भागलपुर के निर्यातकों से भारी छूट मांग रहे हैं। उन्हें देखकर दूसरे देशों के खरीदार भी ऐसी ही फरमाइश कर रहे हैं।

रेशम का टूट रहा दम

भागलपुर के सिल्क उद्योग में काफी गिरावट आ चुकी है। बिहार बुनकर कल्याण समिति के सदस्य अलीम अंसारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि करीब 20 साल पहले भागलपुर में हर साल 2,500 से 3,000 करोड़ रुपये के सिल्क का कारोबार होता था। सिल्क और दूसरे माल के दामों में बढ़ोतरी के हिसाब से कारोबार सालाना 5,000 करोड़ रुपये हो जाना चाहिए था। मगर यह घटकर 750 से 1,000 करोड़ रुपये के बीच रह गया है। भागलपुर से रेशम के कपड़े और दूसरे सामान का निर्यात भी 500 करोड़ रुपये पर सिमट गया है, जो कभी 2,000 करोड़ रुपये दिलाता था।

भागलपुर के बुनकर मोहम्मद अंसार ने कहा कि पहले बड़े खरीदार सीधे भागलपुर के बुनकरों को ऑर्डर देते थे मगर अब काम रह ही नहीं गया। जो मिल रहा है वह भी बिचौलियों से आ रहा है। सिल्क उद्यमी भी बताते हैं कि पहले भागलपुर से बहुत माल निर्यात होता था और यहां 70 से ज्यादा निर्यातक थे मगर अब बमुश्किल 10 रह गए हैं।

ट्रंप टैरिफ से बढ़ी गर्दिश

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने ट्रंप यानी टैरिफ बढ़ाकर भागलपुर के सिल्क को और भी गर्दिश में पहुंचा दिया है। यहां के निर्यातकों के ऑर्डर रुक गए हैं। भागलपुर की निर्यातक फर्म जेड आर एक्सपोर्ट्स के जियाउल रहमान ने बताया कि यहां के सिल्क का सबसे बड़ा खरीदार अमेरिका ही है मगर भारत के उत्पादों पर 50 फीसदी टैरिफ लगने से भागलपुर का सिल्क महंगा हो गया है। चीन से पहले ही टक्कर झेल रहे भागलपुरी रेशम का अब बाजार में टिकना मुश्किल हो गया है। इसलिए ऑर्डर रुक गए हैं और नए ऑर्डरों पर छूट के लिए जमकर मोलभाव हो रहा है। इसलिए इस साल भागलपुर के सिल्क निर्यात में 60 फीसदी से ज्यादा कमी आने का अंदेशा है।

भागलपुर के निर्यातक अरशद शमीम के मुताबिक अमेरिका से खरीदार पुराने ऑर्डर ही नहीं ले रहे हैं, नए ऑर्डर की तो बात ही दूर है, इसलिए निर्यात आधा ही रह सकता है। अलीम अंसारी ने कहा, ‘अमेरिकी खरीदारों को 10 डॉलर में मिलने वाला रेशमी कपड़ा टैरिफ की वजह से 15 डॉलर प्रति मीटर हो जाएगा। इतने महंगे रेशम को कौन खरीदेगा।’

भागलपुर के सिल्क उद्यमियों का दावा है कि ट्रंप टैरिफ के कारण उनका 80 से 100 करोड़ रुपये का माल अटक गया है। साथ ही यहां से सिल्क का काफी कारोबार कर्नाटक, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल भी चला गया है।

आधी क्षमता से चलते लूम

सिल्क कारोबार में कमी का सीधा आसर भागलपुर के पावरलूम और हैंडलूम पर पड़ा है। हजारों की संख्या में मौजूद इन लूम पर काम काफी घट गया है, जिससे ये आधी क्षमता से ही चल रहे हैं। अलीम अंसारी ने बताया कि भागलपुर के 12,000 से ज्यादा लूमों पर बुनकरों को 12 महीने के बजाय 6 महीने ही काम मिल रहा है। मोहम्मद का कहना है कि इस काम से अब महीने में 12-13 हजार रुपये की कमाई ही हो पा रही है, जिससे ज्यादा कमाई तो दिहाड़ी काम करने पर हो जाती है। पुश्तैनी काम होने की वजह से बुनकर अब भी इससे जुड़े हैं और परिवार की महिलाओं की मदद भी ले लेते हैं।

सिल्क से लिनेन तक

भागलपुर की पहचान तो रेशम से ही हुई थी, जिसके बाद यहां सिल्क की साड़ियां बनने लगीं। मगर अब यहां पर्दे, सोफा कवर, चादर और कुर्ते से लेकर लिनेन की शर्ट तक सब कुछ बन रहा है। अलीम अंसारी कहते हैं कि सिल्क के कपड़े और उससे बनी साड़ियों के साथ भागलपुर की चादरें भी काफी मशहूर हो गईं। साथ ही घर में इस्तेमाल होने वाले पर्दे, सोफा कवर, तकिया के गिलाफ भी भागलपुर में खूब बन रहे हैं। अब यहां से लिनेन की शर्ट की खूब मांग है, जिनका उत्पादन 3-4 साल में काफी बढ़ गया है। यह शर्ट जूट से तैयार कपड़े से बनती है, जिसकी कीमत 2,000 रुपये से 2,500 रुपये तक होती है।

जीएसटी घटने से राहत

ट्रंप टैरिफ और बढ़ती लागत से जूझ रहे भागलपुर सिल्क उद्योग के लिए हाल में हुई जीएसटी कटौती राहत साबित हो सकती है। अलीम अंसारी ने कहा कि सिल्क पर जीएसटी की दर 18 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी करना बहुत अच्छा फैसला है और ट्रंप टैरिफ की चोट पर इससे मरहम लगेगा। मोहम्मद अंसार ने कहा कि छोटे उद्यमी जीएसटी पंजीकरण नहीं होने के कारण मजबूरी में बिचौलियों को माल बेच रहे हैं। इसलिए सरकार बुनकरों को पूरी तरह जीएसटी मुक्त कर दे, जिससे भागलपुर के डूबते सिल्क उद्योग को मदद मिलेगी। अंसारी ने कहा कि छोटे बुनकरों के लिए सिल्क बैंक या कोकून बैंक बनने चाहिए और किफायती दर पर माल बुनकरों को मिलना चाहिए।

क्यों प्रसिद्ध है भागलपुर का सिल्क उद्योग

सिल्क सिटी भागलपुर अपने टसर सिल्क और भागलपुरी साड़ी के लिए पूरे देश में मशहूर है। टसर सिल्क नरम और फीकी सुनहरी चमक वाला होता है, जो सिंथेटिक सिल्क से काफी अलग होता है। यह हल्का, हवादार और आरामदेह भी होता है, जिससे इसे पहनने और रखने में बहुत आसानी होती है। सिल्क की दूसरी किस्मों के मुकाबले यह मजबूत और टिकाऊ भी होता है तथा लंबे समय तक चलता है। टसर सिल्क को बार-बार ड्राईक्लीन कराने की जरूरत भी नहीं पड़ती। भागलपुर के सिल्क उद्योग को 2013 में जीआई टैग (भौगोलिक संकेतक) मिला था और अब यह एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना में भी शामिल हो गया है।

First Published - October 26, 2025 | 10:15 PM IST

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