स्विट्जरलैंड की सिंजेन्टा की भारत में लंबे समय से दमदार मौजूदगी रही है। संजीव मुखर्जी के साथ बातचीत में कंपनी के मुख्य कार्य अधिकारी जेफ रोवे ने कंपनी की कुछ विकास योजनाओं के बारे में बताया। प्रमुख अंश …
भारत में आपकी मौजूदगी काफी विविध है, ठीक? क्या आप यहां विनिर्माण करते हैं?
हमारे पास थर्ड-पार्टी वाला विनिर्माण कार्य है। हम फॉर्मूलेशन करते हैं, हम कुछ प्रजनन कार्य करते हैं। हमारे पास कुछ इकाइयां हैं, लेकिन हमारा उद्योग बहुत ही स्थानीय है। हमें वैश्विक मौजूदगी और वैश्विक नेटवर्क बनाना होगा और हमें स्थानीय किसानों के लिए भी प्रासंगिक होना होगा।
‘मेक इन इंडिया’ के लिए आपकी क्या योजनाएं हैं? आपके कुछ सहयोगियों ने कल एक कार्यक्रम में इसके बारे में बात की थी।
प्रधानमंत्री कंपनियों को भारत में सामान बनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। हम यहां थर्ड-पार्टी विनिर्माण करते हैं। फॉर्मूलेशन करते हैं। हम यहां पौधों का प्रजनन करते हैं। उनका चयन करते हैं। हम कुछ बीज उत्पादन भी करते हैं। इसलिए भारत में मेड-इन-इंडिया के मामले में हमारी पहले से ही बहुत महत्वपूर्ण मौजूदगी है। अब निश्चित रूप से हम बड़ी कंपनी हैं। हमारे पास बहुत सी अलग-अलग आपूर्ति श्रृंखलाएं हैं। इसलिए हम भारत में आयात भी कर रहे हैं। इसलिए यह आयात और मेड-इन-इंडिया का संयोजन है।
तो क्या आप भारत में मेक-इन-इंडिया वाले हिस्से को बढ़ाने की योजना बना रहे हैं?
हां, मेरा मतलब है कि जैसे-जैसे कारोबार बढ़ता है, यह सामान्य बात है कि मौजूदगी और विनिर्माण भी बढ़ना चाहिए और यह वह प्रवृत्ति है जो हमें दोबारा दिख रही है, खास तौर पर सक्रिय अवयवों के विनिर्माण और फसल सुरक्षा में। हम देख रहे हैं कि भारत बहुत अधिक महत्वपूर्ण विनिर्माता बन गया है।
तो वैश्विक स्तर पर क्या आप किसी देश में थर्ड पार्टी वाले विनिर्माता से स्थानीय स्तर पर विनिर्माण की दिशा में बढ़े हैं?
नहीं, हम थर्ड पार्टी विनिर्माण से बदलाव नहीं कर रहे हैं। मैं यह कह रहा हूं कि जैसे-जैसे हमारा कारोबार बढ़ेगा और हम भारतीय विनिर्माताओं तथा थर्ड पार्टी भारतीय विनिर्माताओं के साथ साझेदारी करेंगे, भारत में विनिर्माण क्षेत्र में हमारी मौजूदगी और भी बड़ी होती जाएगी।
भारत में एक बड़ी चुनौती कई सारे नियामकीय मसले हैं। आप इससे कैसे निपटते हैं?
यह बड़ी समस्या है, केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी यह समस्या है। यह ऐसी चीज है जिस पर मुझे लगता है कि सरकारों को ज्यादा ध्यान देना शुरू कर देना चाहिए क्योंकि नए उत्पादों को मंजूरी दिलाने की प्रक्रिया बहुत लंबी और बोझिल होती है।
और अगर आप उन किसानों से बात करें जो इन समस्याओं से जूझ रहे हैं तो किसान के लिए इससे ज्यादा निराशाजनक स्थिति नहीं होगी, जब उन्हें पता चले कि ऐसा समाधान भी है जिसे दूसरे किसान अपना रहे हैं। नियामक प्रणालियों में देरी के कारण इसे इस देश या दूसरे देशों में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
क्या आपको लगता है कि डिजिटलीकरण उन नियामकीय बाधाओं को दूर करने में मदद कर सकता है?
हां, मुझे ऐसा लगता है। मेरे खयाल से डिजिटलीकरण मदद कर सकता है। हम डिजिटलीकरण पर काम कर रहे हैं। अपने डेटा संग्रह की गुणवत्ता और रफ्तार तथा विनियामकीय प्रक्रिया में अपने डेटा पेश करने में सुधार के लिए आर्टिफिशल इंटेलिजेंस जैसी चीजों का इस्तेमाल कर रहे हैं। मुझे यह भी लगता है कि नियामकीय पक्ष के संबंध में डेटा विश्लेषण, डिजिटलीकरण और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस भी प्रक्रिया की रफ्तार बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।
बहुत से लोग प्राकृतिक कृषि की बात कर रहे हैं। क्या आपको लगता है कि यह खाद्य सुरक्षा की जरूरतों को पूरा करने का समाधान हो सकती है?
मैं इसे विशिष्ट क्षेत्र के रूप में कहूंगा। इस तरह की खेती के लिए विशिष्ट क्षेत्र हैं। अगर हम खाद्य सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन को लेकर एक समाज के रूप में गंभीर हैं, तो आपको प्रत्येक हेक्टेयर या एकड़ जमीन पर ज्यादा उत्पादन करने में सक्षम होना चाहिए।