स्विगी में कस्टमर चैट सपोर्ट एग्जीक्यूटिव के तौर पर काम कर रहे राकेश यादव (बदला हुआ नाम) बताते हैं, “यहां हर किसी की रैंकिंग होती है — आप, मैं, सभी।” उनके मुताबिक, ग्राहक कितनी बार ऑर्डर करते हैं और कितनी बार रिटर्न या रिफंड मांगते हैं, इसके आधार पर उनकी रैंक तय होती है। वहीं, डिलीवरी पार्टनर्स की रैंकिंग इस बात पर निर्भर करती है कि उन्होंने कितनी डिलीवरी की और कितनी तेजी से की।
यादव यह जानकारी क्विक-कॉमर्स कंपनियों जैसे स्विगी, जोमैटो के स्वामित्व वाली ब्लिंकिट और जेप्टो जैसे प्लेटफॉर्म्स के इंटरनल सिस्टम्स के बारे में दे रहे हैं। इन प्लेटफॉर्म्स पर ग्राहक और डिलीवरी स्टाफ को खास मानकों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। इसका असर सीधे ग्राहक को मिलने वाली सेवा की गुणवत्ता और डिलीवरी कर्मियों को मिलने वाले फायदे व इंसेंटिव्स पर पड़ता है।
ऑनलाइन फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म Swiggy अपने ग्राहकों को उनकी खरीदारी की आदतों के आधार पर तीन श्रेणियों में बांटता है—हाई-वैल्यू, मीडियम-वैल्यू और लो-वैल्यू ग्राहक। कंपनी के एक अधिकारी के मुताबिक, यह वर्गीकरण इस बात पर निर्भर करता है कि ग्राहक कितनी बार ऑर्डर करता है।
हाई-वैल्यू ग्राहक को बेहतर रिफंड सुविधा और तेज ग्राहक सेवा मिलती है, जबकि लो-वैल्यू ग्राहक वे होते हैं जो या तो नए हैं या बहुत कम ऑर्डर करते हैं।
इसके अलावा, Swiggy कुछ ग्राहकों को ‘फ्रॉड यूजर’ के तौर पर भी चिह्नित करता है। अधिकारी के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति बार-बार हर ऑर्डर पर शिकायत करता है और रिफंड मांगता है, तो उसका खाता विशेष निगरानी में आ जाता है।
ऐसे दो-तीन मामलों के बाद ग्राहक को ईमेल के जरिये शिकायत भेजने को कहा जाता है। फिर मेल टीम उस पैटर्न की समीक्षा करती है और यदि लगातार गड़बड़ी नजर आती है, तो खाते को ‘फ्रॉड’ की श्रेणी में डाल दिया जाता है।
Swiggy के सपोर्ट स्टाफ को किसी भी शिकायत के दौरान ग्राहक की प्रोफाइल दिखती है, जिसमें बीते तीन महीनों में रिफंड की गई कुल राशि की जानकारी भी शामिल होती है। यदि ग्राहक उस दौरान निष्क्रिय रहा या उसने कोई रिफंड नहीं मांगा, तो ये रिकॉर्ड तिमाही आधार पर रीसेट हो जाते हैं।
ब्लिंकइट का कस्टमर हैंडलिंग सिस्टम एक स्तर आधारित (tier-based) मॉडल पर काम करता है। कंपनी से जुड़े एक व्यक्ति (नाम बदला गया) श्याम सिंह के अनुसार, हर नया ग्राहक सबसे निचले स्तर से शुरुआत करता है — जैसे ‘सिल्वर’, ‘गोल्ड’ आदि श्रेणियों में बांट कर यूजर्स को वर्गीकृत किया जाता है। यह रैंकिंग ग्राहक के ऑर्डर की संख्या और उनकी वैल्यू पर निर्भर करती है।
श्याम सिंह बताते हैं कि यह स्थिति स्थायी नहीं होती — ग्राहक की हालिया गतिविधियों के आधार पर इसमें समय-समय पर बदलाव होता रहता है।
इस मॉडल का असर रिफंड और मुआवजे की नीतियों पर साफ नजर आता है। निचले स्तर के ग्राहकों को केवल गंभीर गलती होने पर ही रिफंड या मुआवजा मिलता है। इसके विपरीत, ऊंचे स्तर पर पहुंच चुके यूजर्स को आम तौर पर ज्यादा उदार रिफंड मिलते हैं — कभी-कभी पूरे ऑर्डर की रकम भी लौटा दी जाती है, साथ में वाउचर या कूपन जैसे लाभ भी दिए जाते हैं।
वहीं, बीच के स्तर पर आने वाले यूजर्स को मामला दर मामला देखकर आंशिक रिफंड या सांत्वना के तौर पर कुछ मुआवजा दिया जा सकता है।
डिलीवरी पार्टनर की जिंदगी जितनी आसान बाहर से दिखती है, अंदर से उतनी ही पेचीदा और दबाव से भरी होती है। स्विगी, ज़ेप्टो और ब्लिंकइट जैसे प्लेटफॉर्म्स पर काम करने वाले डिलीवरी पार्टनर्स को एक रैंकिंग सिस्टम से गुज़रना होता है, जिससे उनकी कमाई और सुविधाएं तय होती हैं।
स्विगी में डिलीवरी पार्टनर्स को ‘पार्टनर क्लब’ के तहत गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज रैंक दी जाती है। शुरुआत में 100 ऑर्डर पूरे करने होते हैं, फिर हर हफ्ते उनके प्रदर्शन के आधार पर रैंक तय होती है। ‘परफेक्ट डिलीवरी’ के लिए तय मानकों पर खरा उतरना जरूरी होता है — जैसे समय पर पहुंचना, ग्राहक को ज्यादा कॉल न करना और ऑर्डर को सही सलामत पहुंचाना।
उधर, ज़ेप्टो में ‘Zepto Star’ नाम से टियर सिस्टम है। इसमें रैंक बढ़ने पर नई सुविधाएं मिलती हैं। हर डिलीवरी पर तय किलोमीटर के हिसाब से पैसे मिलते हैं, लेकिन रिटर्न ट्रिप पर कम भुगतान होता है। ज़ेप्टो के डिलीवरी पार्टनर बताते हैं कि इंसेंटिव पाने के लिए रोज़ाना कुछ स्लॉट पूरे करने जरूरी होते हैं — जैसे दो पीक टाइम स्लॉट और एक नॉन-पीक टाइम स्लॉट।
पार्टनर्स को एक तय समय के लिए एक्टिव रहना होता है। पार्ट टाइम डिलीवरी पार्टनर को दो घंटे और फुल टाइम वालों को चार घंटे के स्लॉट मिलते हैं। हर दो घंटे पर 10 मिनट का ब्रेक मिल सकता है, लेकिन कंपनी की तरफ से ये सलाह दी जाती है कि शिफ्ट के दौरान लगातार एक्टिव रहें।
स्विगी हो या ज़ेप्टो — दोनों में इंसेंटिव तभी मिलता है जब आप केवल ऑर्डर पूरे न करें, बल्कि तय घंटों तक प्लेटफॉर्म पर एक्टिव भी रहें। अगर कोई डिलीवरी पार्टनर बीमार हो जाए या पारिवारिक परेशानी की वजह से काम न कर सके, तो उसकी रैंक गिर सकती है और ज़रूरत के समय उसे फायदे नहीं मिलते।
ब्लिंकइट में भी इसी तरह की रैंकिंग है — डिलीवरी की स्पीड, ऑर्डर की संख्या, रद्द करने की दर और ग्राहक की रेटिंग के आधार पर रैंक तय होती है। यहां चार रैंक होती हैं — डायमंड, गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज। रैंक के हिसाब से बीमा और स्लॉट की सुविधा मिलती है।
डिलीवरी पार्टनर्स बताते हैं कि इंसेंटिव पाने के लिए वे लगातार एक्टिव रहते हैं और कई बार जोखिम भी उठाते हैं — जैसे तेज गाड़ी चलाना, ब्रेक न लेना या बीमार होने पर भी काम करना। यह खासतौर पर उन युवाओं के लिए मुश्किल है जो आर्थिक मजबूरी में यह काम करते हैं।
हालांकि कंपनियों की तरफ से कुछ ट्रेनिंग दी जाती है, जैसे कि ऐप का इस्तेमाल कैसे करें या ग्राहक से कैसे बात करें, लेकिन ब्रेक लेने की कोई तय नीति नहीं है। अगर कोई पार्टनर लॉग ऑफ करता है, तो उसे इंसेंटिव नहीं मिल सकता
दिल्ली में ज़ेप्टो, ब्लिंकिट और स्विगी इंस्टामार्ट जैसे बड़े ब्रांडों के डार्क स्टोर्स का जायज़ा लेने पर एक जैसी ही स्थिति देखने को मिली। इन स्टोर्स में ग्राहक या बाहरी व्यक्ति को सिर्फ पिकअप ज़ोन तक ही जाने दिया गया। उसके आगे जाने की इजाज़त नहीं थी। स्टोर के अंदर काम करने वालों से जुड़ी कोई जानकारी या नियमों की जानकारी भी कहीं नहीं दिखाई दी।
हर स्टोर में कुछ आम सुविधाएं मौजूद थीं—जैसे कि बैठने की जगह, पीने का पानी और कूलर। डिलीवरी पार्टनर्स ने बताया कि वहां शौचालय की सुविधा भी दी गई है।
लेकिन डिलीवरी करने वालों का कहना है कि इन सुविधाओं की संख्या कम है और अक्सर भीड़भाड़ के कारण उन्हें बाहर की गलियों में खड़ा होना पड़ता है। कई बार वे अपने बैग पर ही बैठकर ऑर्डर का इंतज़ार करते हैं। इस दौरान उन्हें इस बात की चिंता भी बनी रहती है कि उनका रेटिंग स्कोर अच्छा बना रहे।