बीते कुछ वर्षों से भारत में सूक्ष्म, लघु व मझौले उद्यमियों (MSME) की औपचारिक ऋण तक पहुंच बढ़ रही है। जिससे अनुसूचित (scheduled) बैंकों के माध्यम से लोन प्राप्त करने में MSME की हिस्सेदारी में अच्छी खासी बढ़ोतरी हुई है। इस बात का उल्लेख नीति आयोग द्वारा आज ‘भारत में एमएसएमई की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने’ पर जारी रिपोर्ट में किया गया है। इस रिपोर्ट को नीति आयोग ने प्रतिस्पर्धात्मकता संस्थान (आईएफसी) के सहयोग से तैयार किया है। रिपोर्ट में वित्तपोषण, कौशल, नवाचार और बाजार पहुंच में व्यवस्थित सुधारों के माध्यम से भारत के एमएसएमई की अकूत संभावनाओं को उजागर करने के लिए एक विस्तृत ब्लूप्रिंट प्रस्तुत किया गया है।
नीति आयोग की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि एमएसएमई की औपचारिक ऋण तक पहुंच में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। वर्ष 2020 और 2024 के बीच अनुसूचित बैंकों के माध्यम से ऋण प्राप्त करने वाले सूक्ष्म और लघु उद्यमों की हिस्सेदारी 14 प्रतिशत से बढ़कर 20 प्रतिशत हो गई। इसी अवधि के दौरान मध्यम उद्यमों में अनुसूचित बैंकों के माध्यम से लोन लेने वाले मध्यम उद्योगों की हिस्सेदारी 4 प्रतिशत से बढ़कर 9 प्रतिशत हो गई है।
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इन सुधारों के बावजूद रिपोर्ट से पता चलता है कि एक बड़ा ऋण गैप अभी भी बरकरार है। वित्त वर्ष 17 में एमएसएमई क्षेत्र की ऋण मांग 69.3 लाख करोड़ रुपये थी। इसमें 10.9 लाख करोड़ रुपये की औपचारिक स्रोत से और 58.4 लाख करोड़ रुपये की पूर्ति अनौपचारिक स्रोत से हुई। इस तरह ऋण गैप 58.4 करोड़ रुपये रहा। वित्त वर्ष 21 तक एमएसएमई ऋण मांग का केवल 19 प्रतिशत औपचारिक रूप से पूरा किया गया था। वित्त वर्ष में एमएसएमई की ऋण मांग 99 लाख करोड़ रुपये दर्ज की गई। जिसमें 19 लाख करोड़ रुपये की औपचारिक स्रोत से एमएसएमई को मिले।
जाहिर है कि वित्त वर्ष 17 और वित्त वर्ष 21 के बीच एमएसएमई के लिए ऋण गैप 58.4 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 80 लाख करोड़ रुपये हो गया। माइक्रो और स्मॉल एंटरप्राइजेज के लिए क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट का काफी विस्तार हुआ है लेकिन अभी भी इसकी सीमाएं हैं। ऋण गैप को खत्म करने के लिए रिपोर्ट में संस्थागत सहयोग और अधिक लक्षित सेवाओं द्वारा समर्थित एक नए माइक्रो और स्मॉल एंटरप्राइजेज की मांग की गई है।
नीति आयोग की इस रिपोर्ट में एमएसएमई क्षेत्र में कौशल की कमी पर भी चर्चा की गई है। कार्यबल के एक बड़े हिस्से में औपचारिक व्यावसायिक या तकनीकी प्रशिक्षण का अभाव है, जो उत्पादकता को प्रभावित करता है और एमएसएमई की प्रभावी रूप से स्केल करने की क्षमता को सीमित करता है। कई एमएसएमई अनुसंधान और विकास (आरएंडडी), गुणवत्ता सुधार या नवाचार में पर्याप्त निवेश करने में विफल रहते हैं। जिससे राष्ट्रीय और वैश्विक बाजारों में मुकाबला करना मुश्किल हो जाता है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एमएसएमई को बिजली की भारी कमी, कमजोर इंटरनेट कनेक्टिविटी और उच्च कार्यान्वयन लागत के कारण आधुनिक तकनीकों को अपनाने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। एमएसएमई के लिए बनाई गई राज्य सरकार की योजनाओं के बावजूद कई उद्यम या तो उनके बारे में नहीं जानते हैं या उन तक पहुंचने में असमर्थ हैं। क्लस्टरों के अपने विश्लेषण में पुरानी तकनीकों को अपग्रेड करना और मार्केटिंग और ब्रांडिंग क्षमताओं में सुधार करना प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार के लिए महत्वपूर्ण है।
नीति आयोग की रिपोर्ट का एक निष्कर्ष यह भी है कि एमएसएमई को समर्थन देने वाली विभिन्न नीतियों और केंद्रीय बजट के माध्यम से एमएसएमई को हाल ही में दिए गए प्रोत्साहन के बावजूद कम जागरूकता के कारण इनकी प्रभावशीलता में कमी आई है। नीति प्रभाव को बढ़ाने के लिए रिपोर्ट में राज्य-स्तरीय मजबूत डिजाइन और कार्यान्वयन की सिफारिश की गई है। जिसमें नीति विकास में निरंतर निगरानी, बेहतर डेटा एकीकरण और बेहतर हितधारक सहभागिता पर जोर दिया गया है। भारत के एमएसएमई लक्षित हस्तक्षेपों पर ध्यान केंद्रित करके, मजबूत संस्थागत सहयोग का निर्माण करके और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाकर सतत आर्थिक विकास के प्रमुख चालक बन सकते हैं।
इसमें डिजिटल मार्केटिंग प्रशिक्षण, लॉजिस्टिक्स प्रदाताओं के साथ साझेदारी और प्रत्यक्ष बाजार संपर्कों के लिए प्लेटफार्म बनाने के माध्यम से एमएसएमई के लिए बेहतर समर्थन की मांग की गई है। खासकर भारत के पूर्वोत्तर और पूर्वी बेल्ट जैसे उच्च विकास क्षमता वाले क्षेत्रों में। इसमें राज्य स्तर पर एक मजबूत और क्लस्टर-आधारित नीति ढांचे की मांग की गई है जो नवाचार, प्रतिस्पर्धात्मकता और एमएसएमई को समावेशी आर्थिक परिवर्तन को आगे बढ़ाने में सक्षम बनाता है।