बात 2017 की है जब देश की प्रौद्योगिकी राजधानी कर्नाटक पहला ऐसा भारतीय राज्य था जिसने इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के लिए एक विशेष नीति बनाई। जनवरी 2021 तक कम से कम 15 राज्यों ने किसी न किसी रूप में ईवी नीति तैयार कर ली थी और अप्रैल 2025 तक ऐसे राज्यों की संख्या बढ़कर 25 हो गई है।
मंगलवार को महाराष्ट्र की नई ईवी नीति सुर्खियों में रही ऐसे में इस उद्योग के विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, दिल्ली और तमिलनाडु जैसे राज्यों को अपनी शुरुआती नीतियों का सबसे ज्यादा फायदा मिल रहा है और इन राज्यों में बिक्री उन राज्यों की तुलना में दोगुनी है जिन्होंने बाद में ईवी नीति बनाई।
उदाहरण के तौर पर कर्नाटक का ही मामला लें। नीति लागू होने के एक साल बाद वर्ष 2018-19 में इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों की बिक्री महज 0.01 प्रतिशत, चार पहिया वाहनों की 0.16 प्रतिशत और तिपहिया वाहनों की बिक्री 0.35 प्रतिशत थी। लेकिन वर्ष 2024-25 तक यह बढ़कर क्रमशः 11.25 प्रतिशत, 4.42 प्रतिशत और 12.73 प्रतिशत हो गया।
इस बीच राज्य ने समय-समय पर अपनी नीति में सुधार किया लेकिन सबसे ताजा बदलाव फरवरी 2025 में हुआ जिसमें 50,000 करोड़ रुपये का निवेश, एक लाख रोजगार के मौके तैयार करने और 2,600 ईवी चार्जिंग स्टेशन बनाने का लक्ष्य रखा गया। सीईईडब्ल्यू ग्रीन फाइनैंस सेंटर (सीईईडब्ल्यू-जीएफसी) के द्वारा साझा किए गए आंकड़े के मुताबिक यह ऐसे समय में हो रहा है जब देश के ईवी बाजार में पिछले पांच वर्षों में 14 गुना वृद्धि और बिक्री में 9 गुना वृद्धि देखी गई है।
सीईईडब्ल्यू ग्रीन फाइनैंस सेंटर के निदेशक गगन सिद्धु कहते हैं, ‘वित्त वर्ष 2025 में भारत में 19.6 लाख ईवी की बिक्री हुई। सीईईडब्ल्यू-जीएफसी के पहले के एक अध्ययन में यह पाया गया कि जिन राज्यों में ईवी नीतियां हैं उन्होंने बिना ईवी नीति वाले राज्यों की तुलना में लगभग दोगुनी बिक्री की है। फिलहाल 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने विशेष ईवी नीतियों की अधिसूचना दी है जिसमें उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, दिल्ली और तमिलनाडु सबसे अधिक ईवी की बिक्री कर रहे हैं।’
जिन राज्यों ने वर्ष 2017 और 2020 के बीच अपनी ईवी नीति जारी कीं, उनमें दिल्ली, केरल, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना शामिल थे। इसके अलावा बिहार, चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, असम और हिमाचल प्रदेश ने जनवरी 2021 तक अपने ईवी नीतियों के मसौदे तैयार कर लिए थे।
आईपीई ग्लोबल में जलवायु परिवर्तन और स्थिरता में रणनीतिक साझेदारी और सहयोग प्रमुख धृति खरबंदा ने कहा, ‘यूरोप की तरह ही भारत में भी विद्युतीकरण के लिए नीति आधारित राह तैयार की जा रही है जिसके लिए कर प्रोत्साहन देने, ऋण रियायतों से लेकर पार्किंग नियमों में छूट आदि जैसे कदमों से देश भर में ईवी को अपनाने के लिए सक्रिय प्रयास जारी हैं।’
उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र का ही मामला लें। राज्य की नई नीति न केवल उपभोक्ताओं के लिए खरीद प्रोत्साहन दे रही है बल्कि राज्य में ईवी विनिर्माण, इसे अपनाए जाने और चार्जिंग बुनियादी ढांचे के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए पांच वर्षों की अवधि तक के लिए 11,373 करोड़ रुपये की कुल वित्तीय प्रोत्साहन राशि भी देती है। इसमें टोल टैक्स में छूट भी शामिल है।
सीईईडब्ल्यू-जीएफसी के आंकड़ों के मुताबिक इस राज्य ने सितंबर 2021 में अपनी पिछली ईवी नीति की पेशकश की थी और उस वक्त से तिपहिया ईवी वाहनों की बिक्री 1.91 प्रतिशत से बढ़कर 10.41 प्रतिशत, दोपहिया ईवी 3.19 फीसदी से बढ़कर 10.17 फीसदी और चार पहिया ईवी (निजी) 1.84 फीसदी से बढ़कर 3.46 फीसदी हो गई है।
खरबंदा ने कहा, ‘इन अध्ययनों से अंदाजा मिलता है कि नीतिगत समर्थन के कारण ही इन राज्यों की सरकारी और निजी गाड़ियों में ईवी अब मुख्यधारा में शामिल हो रही है। अब तक तिपहिया ईवी के लिए सबसे बेहतर रुझान देखे गए हैं। इन गाड़ियों के लिए नीतिगत, राजनीतिक और वित्तीय प्रोत्साहन बेहद उत्साहजनक है और भारत को कुछ और प्रयास करने की आवश्यकता है। मसलन चार्जिंग स्टेशनों के लिए रियायती दर पर जमीन मुहैया कराना और बुनियादी ढांच के अंतर को पाटने के लिए सार्वजनिक-निजी साझेदारी (पीपीपी) मॉडल का लाभ उठाना जरूरी है जो ईवी को अपनाए जाने की राह में एक बड़ी बाधा रही है।’