अमेरिका ने भारतीय दवा उद्योग को बड़ा झटका देते हुए ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाओं पर 100% टैरिफ लगाने का फैसला किया है। यह नया नियम अक्टूबर 2025 से लागू होगा। इस फैसले का असर खासतौर पर उन भारतीय कंपनियों पर पड़ेगा जो अमेरिका को ब्रांडेड दवाएं निर्यात करती हैं। हालांकि, जेनेरिक यानी सामान्य बिना ब्रांड वाली दवाएं इस टैक्स के दायरे में शामिल नहीं की गई हैं। चूंकि भारत की ज्यादातर दवा निर्यात जेनेरिक उत्पादों की होती है, इसलिए फिलहाल इसका बड़ा नकारात्मक असर सीमित माना जा रहा है।
Choice Broking की रिपोर्ट के मुताबिक, जिन कंपनियों का कारोबार मुख्य रूप से जेनेरिक दवाओं पर आधारित है, वे इस नई नीति से लगभग अप्रभावित रहेंगी। इनमें AJP, ALKEM, GRAN और MRKS जैसी कंपनियां शामिल हैं। इनका प्रोडक्ट मिक्स ऐसा है कि इनकी आमदनी का बड़ा हिस्सा उन दवाओं से आता है जिन पर अमेरिकी टैक्स नहीं लगाया गया है। इस वजह से आने वाले समय में इनकी राजस्व और मुनाफे पर ज्यादा दबाव की संभावना नहीं है।
दूसरी ओर, SUN Pharma, Dr. Reddy’s, Cipla, Zydus Lifesciences और Lupin जैसी बड़ी भारतीय फार्मा कंपनियां ब्रांडेड और जेनेरिक दोनों तरह की दवाएं अमेरिका को निर्यात करती हैं। इन पर नई नीति का मध्यम स्तर का असर पड़ने की उम्मीद है। रिपोर्ट के अनुसार, इन कंपनियों के राजस्व और मुनाफे में कुछ कमी देखी जा सकती है, लेकिन इनका असर सीमित रहेगा क्योंकि इनमें से कई कंपनियों की अमेरिका में पहले से ही अपनी उत्पादन इकाइयां हैं। यही स्थानीय उत्पादन उन्हें बढ़े हुए टैक्स से कुछ राहत देगा।
SENORES कंपनी के लिए यह फैसला बड़ा फायदेमंद साबित हुआ है। कंपनी अमेरिका में जो भी दवाइयां बेचती है, वह वहीं के अपने प्लांट में बनाती है। इसी वजह से उस पर नया टैक्स (टैरिफ) लागू नहीं होगा। रिपोर्ट के मुताबिक, इस वजह से SENORES को अपने मुकाबले वाली कंपनियों पर मजबूत और लंबे समय तक रहने वाला फायदा मिलेगा। इस नीति में बदलाव से कंपनी की पकड़ अमेरिकी बाजार में और मजबूत हो सकती है।
ब्रांडेड दवाओं का निर्यात करने वाली भारतीय कंपनियों को अब अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा। एक रास्ता यह है कि वे अमेरिका में ही अपनी उत्पादन इकाइयां स्थापित करें, ताकि भविष्य में टैक्स का बोझ न पड़े। दूसरा रास्ता यह हो सकता है कि वे बिक्री के लिए नए बाजारों की तलाश करें और अमेरिका पर अपनी निर्भरता कम करें। कंपनियां एशिया, यूरोप या अन्य क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए मर्जर और एक्विजिशन जैसी रणनीतियां भी अपना सकती हैं।
जहां अमेरिका ने सुरक्षा और स्थानीय उद्योग को प्राथमिकता देते हुए टैरिफ बढ़ाया है, वहीं चीन ने इसके उलट भारतीय दवा उद्योग को राहत दी है। चीन ने भारतीय फार्मा उत्पादों पर 30% आयात शुल्क हटा दिया है। यह कदम ऐसे समय पर आया है जब भारतीय कंपनियों को नए बाजारों की तलाश की जरूरत महसूस हो रही है। GRAN, Cipla और GNP जैसी कंपनियां, जिनका चीन में पहले से रणनीतिक इंटरेस्ट या नेटवर्क मौजूद है, इस नीति परिवर्तन का सीधा फायदा उठा सकती हैं।
कुल मिलाकर देखा जाए तो अमेरिकी टैरिफ का तुरंत असर बहुत बड़ा नहीं होगा, क्योंकि भारत का फार्मा निर्यात मुख्य रूप से जेनेरिक उत्पादों पर आधारित है। लेकिन जिन कंपनियों की कमाई में ब्रांडेड दवाओं का बड़ा हिस्सा है, उनके लिए यह नीति लॉन्गटर्म में चुनौती बन सकती है। इन कंपनियों को अमेरिकी बाजार में टिके रहने के लिए उत्पादन क्षमता बढ़ानी होगी या फिर नए बाजारों में आक्रामक तरीके से कदम बढ़ाने होंगे। चीन की तरफ से मिले आयात शुल्क में राहत इन कंपनियों के लिए एक नया अवसर भी पेश कर रही है।