वित्त विधेयक में आयकर की धारा 179 में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है, जो प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों के निदेशकों की कर देनदारी से संबंधित है और यह 1 अप्रैल 2022 से प्रभावी होगा। इस प्रावधान की भाषा काफी विस्तृत है और इस धारा का शीर्षक परिसमापन वाली प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों के निदेशकों की देनदारी तक सीमित है। यह विधेयक प्रावधान के साथ शीर्षक के जुड़ाव का प्रस्ताव करता है, जिससे सुनिश्चित होगा कि इस धारा के तहत आदेश तब भी जारी किए जा सकते हैं जब वह कंपनी परिसमापन के दायरे में न हो।
विधेयक में कहा गया है, क्लाउज 55 आयकर अधिनियम की धारा 179 में संशोधन के लिए है, जो परिसमापन वाली निजी कंपनियोंं के निदेशकों की देनदारी को लेकर है। इसमें निजी कंपनी के निदेशकों से बकाया कर वसूलने का प्रावधान है, अगर ऐसा कर बकाया कंपनी से न वसूला जा सके। इस धारा का शीर्षक परिसमापन वाली निजी कंपनी के निदेशकों की देनदारी है। हालांकि इस धारा के प्रावधान परिसमापन वाली कंपनियों से डील नहीं करते। इसलिए परिसमापन शब्द को इस धारा के शीर्षक से हटाने का प्रस्ताव है। शीर्षक में विस्तार के जरिए सरकार ने कर अधिकारियोंं को स्पष्ट किया है कि इस प्रावधान का इस्तेमाल निजी कंपनियों के निदेशकों के खिलाफ किया जा सकता है, चाहे वह कंपनी परिसमापन मेंं हो या न हो। यह निदेशकों का जोखिम बढ़ा सकता है, खास तौरसे छोटी व मझोली कंपनियों के निदेशकोंं का, जहां अलग से कर प्रमुख या मुख्य वित्त अधिकारी नहींं होते। विशेषज्ञों ने ये बातें कही।
भुटा शाह ऐंड कंपनी के पार्टनर यशीश अशर ने कहा, तकनीकी तौर पर इस धारा का शीर्षक किसी खास धारा की विस्तृत व्याख्या तय नहीं करता। हालांकि धारा 179 के प्रावधानों को कंपनी के परिसमापन से जोड़कर देखा जाता है। यह संशोधन व्याख्या को लेकर मसले व कानूनी संघर्ष घटाने के लिए किया गया है। इससे आयकर विभाग का इरादा भी स्पष्ट होता है कि वह वैसी निजी कंपनियों के निदेशकों को भी कर न चुकाने पर जबावदेह बनाएगा, चाहे कंपनी परिसमापन में न भी हो।
अशर ने कहा, परिवार के स्वामित्व वाले कारोबारों व एसएमई पर इसका सीधा असर पड़ सकता है, जहां मालिक ही कंपनी के निदेशक होते हैं और कंपनी के कर्ताधर्ता भी और वह कंपनी के कर बकाए के भुगतान न होने पर खुदको अलग करने में सक्षम नहींं होंगे।
इससे पहले 1 जून, 2013 को धारा 179 में संशोधन हुआ था और तब कर बकाए पर ब्याज व जुर्माना शामिल किया गया था। इस बकाए में अब शुल्क भी शामिल किया जाएगा। कर बकाया कंपनी से रिकवर किया जाएगा, इसमें नाकामी पर यह कंपनी के निदेशकों से वसूला जा सकता है।
