फ्यूचर समूह के चेयरमैन किशोर बियाणी को अपनी सबसे बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ राह है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा शुक्रवार को फ्यूचर समूह के खिलाफ फैसला दिए जाने के बाद वह रिलायंस रिटेल के साथ समूह के विलय संबंधी लेनदेन को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
हालांकि समूह ने कहा कि वह सभी कानूनी विकल्पों पर गौर करेगा और उपयुक्त विकल्प के साथ आगे बढ़ेगा। अपने कमजोर वित्तीय प्रदर्शन के कारण फ्यूचर समूह किसी भी अधिग्रहणकर्ता द्वारा अधिग्रहण के लिए आकर्षक लक्ष्य नहीं रह गया है। वित्त वर्ष 2020-21 में समूह ने 11,723 करोड़ रुपये की बिक्री पर 5,943 करोड़ रुपये का घाटा दर्ज किया जो वित्त वर्ष 2020 के मुकाबले 66 फीसदी अधिक है। इस दौरान समूह का कुल ऋण बोझ 7 फीसदी बढ़कर 20,742 करोड़ रुपये हो गया।
समूह की कंपनियों की रफ्तार मार्च 2020 में कोविड प्रेरित लॉकडाउन की घोषणा होने से ठीक पहले सुस्त होने लगी थी और वित्त वर्ष 2021 की शेष अवधि में उन्हें उल्लेखनीय कारोबार गंवाना पड़ा।
समूह के चेयरमैन 59 वर्षीय बियाणी मुंबई में महज एक स्टोर के साथ कंपनी की स्थापना की थी और धीरे-धीरे भारत की सबसे बड़ी ऑफलाइन रिटेल कंपनी बन बई। लेकिन ऑनलाइन कंपनियों से तगड़ी प्रतिस्पर्धा और भारी ऋण बोझ के कारण उन्होंने पिछले साल अगस्त में अपना कारोबार रिलायंस रिटेल को बेचने का निर्णय लिया। प्रमुख ई-कॉमर्स कंपनी एमेजॉन ने इस सौदे का विरोध किया क्योंकि फ्यूचर समूह की कंपनी फ्यूचर कूपन्स के साथ उसका पहले इनकार करने के अधिकार के साथ समझौता हुआ था। बाद में मामला अदालत में पहुंचने पर यह सौदा अटक गया। विश्लेषकों ने कहा, ‘सर्वोच्च न्यायालय ने आज इस बात पर सहमति जताई है कि रिलायंस सौदे को बचाने के लिए बियाणी को बातचीत के अपने सभी कौशल का उपयोग करना होगा।’
विश्लेषकों ने कहा कि फ्यूचर समूह की कंपनियों में भारतीय लेनदारों का काफी बकाया है। कंपनी अपने ऋण की अदायगी में चूक पहले ही कर चुकी है और अब रिलायंस रिटेल के साथ सौदा उसके लिए एकमात्र उम्मीद बची थी। फ्यूचर समूह की कंपनियों में बैंक ऑफ इंडिया का 5,750 करोड़ रुपये का बकाया है जबकि ऐक्सिस बैंक का 1,250 करोड़ रुपये और बैंक ऑफ बड़ौदा का 750 करोड़ रुपये।
फ्यूचर समूह की प्रमुख कंपनी फ्यूचर रिटेल ने पिछले साल सितंबर में 6 अगस्त 2020 को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी दिशानिर्देशों के तहत एकमुश्त ऋण पुनर्गठन के लिए आवेदन किया था। पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू होने के बाद उसने कोई ऋण अदायगी नहीं की है।