सर्वोच्च न्यायालय ने पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों के मामले में आयुष मंत्रालय की अधिसूचना पर मंगलवार को रोक लगा दी है। अदालत ने मंत्रालय की 1 जुलाई की अधिसूचना पर रोक लगाई है, जिसमें पतंजलि भ्रामक विज्ञापन मामले में औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम 1945 के नियम 170 को हटा दिया गया।
अदालत ने कहा कि 1945 नियमों का नियम 170, जो आयुर्वेद, सिद्ध या यूनानी औषधियों के भ्रामक विज्ञापन पर रोक से संबंधित है, अगले आदेश तक वैधानिक पुस्तक में बना रहेगा। न्यायालय ने अगली सुनवाई के दौरान मंत्रालय को इस मामले में अपना जवाब देने का आदेश दिया है। न्यायालय ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रमुख आरवी अशोकन के अखबार में माफीनामा प्रकाशित करने के तरीके की भी कड़ी निंदा की है। न्यायालय ने कहा कि यह माफीनामा अस्पष्ट है और बहुत छोटे फॉन्ट में है।
न्यायमूर्ति कोहली ने कहा, ‘आपने छपी सामग्री का आकार भी देखा है…हमने कहा है कि हम इसे पढ़ भी नहीं सकते हैं। यह 0.1 सेंटीमीटर से भी छोटा है, यदि आपको कोई आपत्ति है तो हमें बताइए। हम इसे पढ़ भी नहीं सकते हैं।’न्यायालय ने आईएमए प्रमुख की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस पटवालिया से पूछा कि क्या यह माफीनामा अन्य अखबारों में भी प्रकाशित हुआ है।
न्यायमूर्ति कोहली ने स्पष्ट जवाब नहीं मिलने पर कहा, ‘हम आपसे तीन बार पूछ चुके हैं। क्या यह कहीं और भी छपा था?’ इस पर पटवालिया ने कहा कि नहीं। उन्होंने बताया कि आईएमए अध्यक्ष ने साक्षात्कार के दौरान दिए गए अपने बयान पर माफी मांगी है। उन्होंने बताया कि यह साक्षात्कार ‘केवल ऑनलाइन’ था।
न्यायमूर्ति हीमा कोहली और संदीप मेहता ने कहा कि ‘वह माफी मांग कर किसी पर एहसान नहीं कर रहे हैं।’ न्यायालय ने अशोकन को निर्देश दिया है कि वे द हिंदू के 20 संस्करणों में छपे माफीनामे की प्रतियां पेश करें। पीठ ने कहा कि हमें माफीनामे का जो अंश मिला है वह पढ़ा नहीं जा पा रहा है। इसका फॉन्ट बेहद छोटा है।